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बुरहानपुर

20 साल बाद फिर पार्षद चुनेंगे महापौर, जाने बुरहानपुर की राजनीति

– पहले कांग्रेस का रहा दबदबा, फिर सीधे जनता ने एक कांग्रेस, तीन भाजपा के महापौर चुने – बदलेंगे राजनीतिक समीकरण- २०१० को छोड़े तो हमेशा कांग्रेस पार्षदों की रही संया ज्यादा- भाजपा बोलीं यह जनता के हित में नहीं

बुरहानपुरSep 26, 2019 / 06:29 pm

ranjeet pardeshi

 After 20 years, the councilor will again elect the mayor, knowing the politics of Burhanpur

After 20 years, the councilor will again elect the mayor, knowing the politics of Burhanpur

बुरहानपुर. अगले साल 2020 में वाले नगरीय निकाय में महापौर का चुनाव सीधे नहीं होगा। चुनाव में जीतकर आए पार्षद अब महापौर और नगरपालिका अध्यक्ष का चुनेंगे। कैबिनेट ने नगरीय निकाय एक्ट में इस बदलाव पर मुहर लगा दी है। सरकार के नगरीय निकाय एक्ट में बदलाव के फैसले से शहर की राजनीति में बड़ा बदलाव आएगा। भाजपा ने इस फैसले का विरोध किया कहा कि यह जनता के हित में नहीं है।
राज्य सरकार के इस फैसले से राजनीतिक हलचल तेज हो गई। भाजपा ने तो इस फैसले का विरोध शुरू कर दिया। यहां तक भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि इसके लिए आंदोलन तक करने की बात कही।इसके लिए पार्टी अब अपनी तैयारियां शुरू करेंगी।
अब तक ऐसा रहा राजनीतिक उतार चढ़ाव
१९८१ में पहली बार नगर निगम अस्तित्व में आई। उस समय ४१ वार्ड थे, जहां कांग्रेस पार्षदों की संया अधिक थी। उस समय महापौर के लिए चुनाव लडऩा जरूरी नहीं था। पार्षद महापौर चुनते थे। उस समय महापौर का कार्याकाल एक साल का था। १९८३ से महापौर चुनना शुरू हुआ। लगातार तीन साल ठाकुर महेंद्रसिंह महापौर बने। ८६ में डॉक्टर प्रल्हाद राव वैद्य महापौर बने। वे भी कांग्रेस समर्थित थे। फिर १९९५ में नियम बदला और पार्षद चुनाव लडऩे के बाद ही महापौर बनना तय हुआ, इसके लिए भी पार्षदों को महापौर चुनना था। १९९५ में डॉक्टर फिरोजा अली आजाद वार्ड से पार्षद बनी और महापौर चुनी गई। यह भी कांग्रेस पार्टी से थी। फिर २००० में नया एक्ट आया इसमें सीधे जनता को महापौर चुनना था। इस समय कांग्रेस के ही मोहमद हारुन मोहमद अमीन महापौर चुने गए। उन्होंने भाजपा के सुहास पाटीदार को हराया। इसके बाद लगातार तीन बार भाजपा के महापौर चुने गए। २००५ में भाजपा के अतुल पटेल ने कांग्रेस के अजय रघुवंशी को हराया। २०१० में भाजपा की माधुरी पटेल जीती। उन्होंने साहिस्ता अंसारी को हराया। २०१५ में फिर जनता ने भाजपा का महापौर चुना। अनिल भोसले ने इस्माइल अंसारी को हराया।
कांग्रेस पार्षदों की संया रही ज्यादा
शहर की राजनीति पर नजर डाले तो यहां २०१० को छोड़ दे तो हमेशा कांग्रेस के पार्षदों की संया ज्यादा रही। ८३ में नगर पालिका निगम अस्तित्व में आईतो उस समय ४१ वार्ड थे। उस समय कांग्रेस के पार्षद ज्यादा रहे। इसलिए तीन बार महेंद्रसिंह महापौर चुने गए। ८७ में भाजपा ने जोर लगाया और ४१ में से १८ सीट जीती। उस समय भी कांग्रेस पार्षदों की संया ज्यादा रही। लेकिन पहली बार भाजपा की बड़ी संया में सीट आईथी। ९४ में ४८ वार्डों में से ९ भाजपा के ही पार्षद बन सके। ९९ में भाजपा की संया १५ हुई। २०१० में पहली बार भाजपा पार्षद ४८ वार्डों में से २५ सीट पर जीती। यह इतिहास रहा। इसके बाद फिर संया कम हो गई। २०१५ में भाजपा के १६ पार्षद जीते। कांग्रेस के २५ और ७ निर्दलीय
जीते।
अब तक महापौर
१९८३-८६ तक ठाकुर महेंद्रसिंह
१९८६-८७ तक पीजी वैद्य
१९९५-२००० तक ठाकुर फिरोजा अली
२०००-२००५ तक मोहमद हारुन
२००५-२०१० तक अतुल पटेल
२०१०-२०१५ तक माधुरी पटेल
२०१५ से अब तक अनिल भोसले

गुटबाजी भी रही हावी
शहर में राजनीतिक गुटबाजी ने भी चुनावों पर खासा असर डाला। १९९५ के चुनाव में फिरोजा अली महापौर तो चुनी गई, लेकिन इस समय खांसी गुटबाजी कांग्रेस में देखने को मिली। यह गुटबाजी २०१५ के चुनाव में भी देखने को मिली। जहां अध्यक्ष के चुनाव में कांग्रेस के २५ पार्षद और भाजपा के १६ पार्षद होने के बाद भी भाजपा नेता मनोज तारवाला को २८ वोट मिले। इससे साफ होता है कि पार्षद जो महापौर का चुनाव करेंगे ऐसे में राजनीतिक गुटबाजी भी हावी होगी।
परिसीमन हुआ तो बदलेगी तस्वीर
इधर शहर में परिसीमन को लेकर भी तैयारी चल रही है। शहर के आसपास के कईगांव इसमें जुड़ रहे हैं। इस पर मुहर लगती है, तो राजनीतिक परिदृश्य बदलेगा। प्रस्ताव में ग्राम पंचायत चिंचाला व लालबाग माल, बोरगांव खुर्द, गारबडऱ्ी छोड़कर एमागिर्द, हमीदपुरा, बाडाबुजुर्ग, शहादरा के समस्त खसरे को इसमें शामिल किया है। फतेपुर, रहीपुरा को लेते हुए उतावली नदी से होते हुए ताप्ती नदी में नागझिरी शमशान घाट तक क्षेत्र रहेगा। नागझिरी शमशान घाट से ताप्ती नदी किनारे दक्षिण की ओर से ग्राम पंचायत हतनुर, बोहरडा शामिल है। इससे लगे गव्हाना, नागुलखेड़ा शामिल नहीं है। हतनुर, बोहरडा, बहादरपुर को शामिल किया है। बहादरपुर से लगे पातोंडा, रसूलपुरा, सुल्तानपुरा तक शामिल किया है।

यह बोलीं भाजपा
भाजपा जिला अध्यक्ष विजय गुप्ता ने कहा कि भाजपा का फायदा नुकसान की बात नहीं हे। शहरवासी का नुकसान है। प्रदेश में १६ नगर निगम है जहां भाजपा के महापौर है। विकास ही विकास हो रहा है। जनता ने अच्छा काम करने वाले को चुना। अगर पार्षद महापौर चुनेंगे तो कही न कही भ्रष्टाचार होगा, खरीदी फरोत होगी। इसमें विकास कहां से होगा। सीधे जनता महापौर चुनती तो विकास पर ध्यान होता है। कांग्रेस का निर्णय जनता के हित में नहीं है। यह गलत है आंदोलन करेंगे विरोध भी करेंगे।
खुद के विवेक से निर्णय नहीं ले सकेंगे
महापौर अनिल भोसले ने कहा कि पहले बहुत अच्छी प्रक्रिया थी। जनता जो महापौर को चुनती है वह सभी को समान लेकर चलता है। इस व्यवस्था से शहर का विकास अवरुद्ध हो जाएगा। खुद के विवेक से निर्णय नहीं ले सकेंगा।
यह बोलीं कांग्रेस
जिला कांग्रेस अध्यक्ष अजय रघुवंशी ने कहा कि जिस प्रकार से सांसद प्रधानमंत्री चुनते हैं जिस प्रकार से विधायक मुयमंत्री चुनते हैं उस प्रकार से पार्षद महापौर चुनेंगे। भाजपा जो खरीदी फरोत का आरोप लगा रही है, वह तो भाजपा ही खरीद फरोत करती है। लोकतंत्र का समान हो। पार्षद और महापौर में आपसी सामान्यजस्य न होने से जनता के काम नहीं हो पाते थे, अब इस व्यवस्था से विकास होगा। पार्षद ही महापौर चुननेंगे तो महापौर भी पार्षदों के अनुरूप काम करेंगे। हम इस फैसले का स्वागत करते हैं।

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