कड़ा संघर्ष कर रुबीना बनी डीएसपी, चक्की चलाने वाली महिला ने बंद करा दिया मृत्यु भोज
महिला दिवस विशेष

बुरहानपुर. आज की महिलाएं किसी भी क्षेत्रमें पीछे नहीं है, पुलिस से लेकर प्रशासन के बड़े पदों पर आज महिलाएं कार्य कर रही हैं। ऐसी एक महिला है डीएसपी रूबिना मिजवानी। देवास के मध्यमवर्गीय परिवार की बेटी को पिता ने चूडिय़ां बेच कर पढ़ाया और शादी के बाद ससुराल वालों ने भी साथ दिया तो वह डीएसपी बन गई। दूसरी कहानी है गांधी चौक निवासी एक साधारण से परिवार की महिला संगीता अग्रहरी की, जिन्होंने समाज में प्रदेश अध्यक्ष की जवाबदारी मिलने के बाद मृत्यु भोज बंद कराने का बड़ा फैसला लिया। जबकि एक युवती कड़ी मेहनत कर इंजीनियर बन गई।
निंबोला थाना प्रभारी डीएसपी रूबिना मिजवानी कहती है कि अगर आपके पास टैलेंट है तो वह छिप नही सकता। बचपन से ही अफसर बनने की मेरी चाह आज डीएसपी अधिकारी बनकर पूरी हुई। पिता ने चूडिय़ा बेंच कर पढ़ाया और शादी के बाद ससुराल वालों ने भी साथ दिया और में डीएसपी हूं। मैं पुलिस में आकर अपने आप को सौभाग्यशाली समझती हूं। मुझे जनता की समस्या सुनकर उसका निराकरण कर अपने जीवन को सफल मानती हूं। पिता सलीम शेख और मां जेबुन्निशा ने बहुत ही कम शिक्षा प्राप्त की थी। पिता चूडिय़ां और कंगन स्टोर चलाकर मुझे पढ़ाया। कक्षा 10वीं में 80.4 प्रतिशत और 12वीं कक्षा में 94 अंक प्राप्त किया। ग्रेजुएशन के प्रथम इयर के बाद पति अरबाज हुसैन मिजवानी से शादी हो गई। शादी के कुछ साल बाद ससुराल वालों ने फिर से पढ़ाई के लिए हिम्मत दी और पीएससी की तैयारियां शुरू कर दी। पीएससी की परीक्षा पास होकर प्रभारी बाल विकास परियोजना अधिकारी सहित ब्लॉक की महिला सशक्तिकरण अधिकारी बनीं। इसके बाद सहकारिता विस्तार अधिकारी के पद पर कार्य किया। उप पुलिस अधीक्षक के पद पर चयन होकर कठीन ट्रेनिंग के बाद बुरहानपुर के डीएसपी के पद पर पदस्थ है।
8 घंटे चक्की चलाने वाली महिला ने प्रदेश भर में बंद करा दिया मृत्यु भोजन
बड़ी मंडी चौक में हर दिन आटा चक्की चलाने वाली साधारण महिला ने बड़ा काम कर दिखाया। मध्यप्रदेश अग्रहरी वैश्य समाज की महिला अध्यक्ष संगीता ओमप्रकाश अग्रहरी निवासी गांधी चौक को प्रदेश में समाज की कमान संभालने के बाद सबसे बड़ा निर्णय में मृत्यु भोज बंद कराने का लिया। इसके बाद उन्होंने 15 सार्वजनिक प्याऊ खुलवाए। संगीता अग्रहरी खुद का व्यवसाय कर हर दिन आठ घंटे गेहूं पिसाई का काम करने के बाद समाज की जिम्मेदारी और घर की जिम्मेदारी भी संभालनती है। उनकी दो बेटियां एक बेटा भी है। खुद ने बीकॉम की पढ़ाई कर परिवार की जिम्मेदारी भी संभाली और संबल बनकर दिखाया। पति ओमप्रकाश गुप्ता समाज के केंद्र स्तर पर पदाधिकारी है।
रशिका ने मेहनत से पाया बड़ा मुकाम
मेहनत और लगन से कोई काम किया जाए तो सपनों को उड़ान भरने में समय नहीं लगता। यही कर दिखाया बालाजी नगर निवासी रशिका प्रवीण चौकसे ने। घर में मम्मी-पापा का लाड़ प्यार और चकाचौंध सुविधा मिलने के बाद भी अपने करियर को उड़ान देने के लिए रशिका अपने घर से तीन साल दूर रहकर खूब मेहनत की और आर्किटेक इंजीनियर बन गई। अब वह लोगों के सपनों के आशियाने को आकार देने का काम कर रही है। रशिका चौकसे के पिता प्रवीण चौकसे भी इंजीनियर हैं। माता रश्मी चौकसे गृहिणि है। छोटी बहन धु्रविका चौकसे 12वीं में अध्ययनरत है। रशिका कहती है कि मन में कोई लक्षय का निर्धारण कर लो और उसे पाने में मेहनत करो तो सफलता जरूर मिलती है। इंदौर में तीन साल रहकर खूब मेहनत की। पढ़ाई के बाद ऑफिस में प्रेक्टिस भी की।
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