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निजी कंप्यूटर में तांकझांक पर सरकार ने किया बचाव, सुप्रीम कोर्ट में बताए नियम

सरकार ने 10 एजेंसियों को इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशंस पर नजर रखने के लिए किया नियुक्त।
दो संस्थाओं और चार लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी याचिका।
सरकार ने याचिकाकर्ताओं को सुप्रीम कोर्ट के सामने दिया जवाब।

Mar 15, 2019 / 12:13 pm

Ashutosh Verma

Electronic Snooping

निजी कंप्यूटर में तांकझांक पर सरकार किया बचाव, सुप्रीम कोर्ट में किया नियमों का खुलासा

नई दिल्ली। पिछले साल दिसंबर माह में सरकार ने उन 10 सिक्योरिटी एजेंसी और प्राधिकरणों के बारे में जानकारी दी थी, जो देश में चल रहे किसी भी कंप्यूटर में सेंधमारी कर जासूसी कर सकते हैं। यह सभी एजेंसियां किसी भी व्यक्ति के कंप्यूटर में जेनरेट, ट्रांसमिट, रिसीव और स्टोर किए गए किसी दस्तावेज को देख सकते हैं। इन एजेंसियों को इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट 2000 के तहत अनुमति दी गई थी। इस मसले पर जब सरकार की आलोचना हुई तो उसने कहा कि आइटी एक्ट के तहत मिलने वाली निगरानी की अनुमति कुछ ही एजेंसियों को दी गई है। इन्हें 2009 में सबऑर्डिनेट नियमों के तहत भी सुविधा दी गई है।

क्या था मामला
जनवरी 2019 में कुछ लोगों और संस्थाओं ने इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। अपनी तरफ से दलील देने के लिए उन्होंने आइटी एक्ट के सेक्शन 69(1) का सहारा लिया था। इस सेक्शन के तहत सरकार को अनुमति है कि वो कंप्यूटर रिसोर्स के जरिए किसी भी जानकारी को जुटाने के लिए निर्देश दे सकती है। लेकिन याचिकाकर्ताओं का कहना था कि इस नियम में जरूरी सुरक्षा का प्रावधान नहीं है। ऐसे में संविधान व निगरानी नियमों का उल्लंघन किया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि आईटी एक्ट के तहत सुरक्षा के जो भी प्रावधान हैं, वो सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले जो कि एस पुटटास्वामी वर्सेज यूनियन ऑफ इंडिया 2017, 2018 में सुनाए गए फैसले के प्रावाधानों से मेल नहीं खाता है। साथ ही श्रीकृष्णा कमेटी दवारा बीते साल एक रिपोर्ट पेश की गई थी, जिसमें भारतीय नागरिकों को निजता के उल्लंघन से बचने का प्रावधान था। इन नियमों को भी ध्यान में नहीं रखा गया है। इन याचिकाकर्ताओं में दों संस्थाएं जिनका नाम इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन व पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज है। साथ ही चार व्यक्तियों ने भी याचिका दायर की थी, जिनका नाम एमएल शर्मा, अमित साहनी, महुआ मित्रा और श्रेया सिंह है।

सरकार ने दिया जवाब
अब सरकार ने इन याचिकाओं के जवाब में स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर यानी एसओपी का जिक्र किया है। एसओपी में निगरानी के दौरान जानकारी एकत्र करना, मेंटेंन करना के बारे में प्रावधान हैं। इन्हें सीक्रेट प्रोटोकॉल के तहत साल 2011 में बनाया गया था। इस एसओपी के माध्यम से सरकार ने दावा किया है कि सुरक्षा का जो भी प्रावधान है उससे किसी भी नियम को उल्लंघन नहीं होता है और न ही किसी के निजता को खतरा है। आपको बता दें कि एसओपी के तहत जो भी प्रावधान है वो फोन टैपिंग के लिए टेलीग्राफ एक्ट के समान ही हैं। इसमें टॉप ब्यूरोक्रेसी को ये जांच करने का मौका होता है कि निगरानी के दौरान सुरक्षा नियमों का पालन किया गया है या नहीं। यह व्यवस्था सीक्रेट रखी जाती है इसके बारे में किसी को जानकारी नहीं दी जाती।

यूपीए सरकार में भी आया था प्लान
आपको बता दें कि इससे पहले भी यूपीए सरकार के दौरान वाइड एंगल मॉनिटरिंग प्लान को लाने का प्रयास किया गया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती के बाद वापस ले लिया गया था। ऐसे में सरकार ने एक बात तो साफ कर दिया है कि यूपीए सरकार द्रवारा बनाए गए प्रावधानों के आधार पर ही फैसला लिया गया है। मौजूदा एनडीए सरकार ने बस उन नियमों का पालन किया है। लेकिन, सरकार ने एसओपी के जिक्र के साथ यह भी साफ कर दिया है कि सुरक्षा के जो भी नियम व प्रावधान है वो पुट्टास्वामी के फैसले के पहले हैं जिनमें निजता व आधार के बारे में जिक्र किया गया था।

देश का पहला ऐसा मामला
भारत में यह फैसला व श्रीकृष्णा कमेटी की रिपोर्ट इंटरनेट सुरक्षा को लेकर अपने आप में पहला ऐसा मामला था जिनमें प्राइवेट सेक्टर को निजता के नियमों का पालन करने के लिए बाध्य किया था। सरकार का मानना है कि करीब एक दशक पहले ही बनाए गए नियम पर्याप्त हैं। याचिकाकर्ताओं ने सरकार के इस जवाब को अभी तक चुनौती नहीं दी है। न ही नागरिकों के निजता के उल्लंघन के बारे में भी कुछ कहा है।

इन एजेंसियों को मिली है अनुमति
गृह मंत्रालय के आदेश के मुताबिक इंटेलिजेंस ब्यूरो, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय, सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्स, डायरेक्टरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस, सीबीआई, एनआईए, कैबिनेट सेक्रेटेरिएट (रॉ), डायरेक्टरेट ऑफ सिग्नल इंटेलिजेंस और दिल्ली के कमिश्नर ऑफ पुलिस को देश में चलने वाले सभी कंप्यूटर की जासूसी की मंजूरी दी गई है।

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