गाड़ी के टायरों पर ही उसका कंट्रोल, माइलेज, बैलेंस और हैंडलिंग जैसी बातें निर्भर करती हैं तो ये बहुत ज्यादा मायने रखता है कि आपकी गाड़ी में कैसे टायर लगे हैं और वो वर्तमान में किस स्थिति में हैं। आपने देखा होगा कि टायर के किनारों पर एक कोड लिखा होता है, जिसपर टायर की पूरी जानकारी दी गई होती है। जैसे टायर की लंबाई, चौड़ाई, व्यास, वजन उठाने की क्षमता, अधिकतम स्पीड लिखी गई होती हैं।
आमतौर पर टायर दो प्रकार के होते हैं पहले ट्यूब वाले टायर और दूसरे ट्यूबलेस टायर। वर्तमान में लगभग सभी ऑटोमोबाइल कंपनियां नए वाहनों में ट्यूबलेस टायर लगाकर ही दे रही हैं। आप चाहें तो ट्यूब वाले टायर डिमांड करके लगवा सकते हैं। ट्यूबलेस टायर ट्यूब वाले टायरों के मुकाबले थोड़े महंगे आते हैं, लेकिन इन दोनों टायरों के बीच काफी ज्यादा अंतर है। ट्यूबलेस टायरों में पंचर ट्यूब वाले टायरों के मुकाबले कम होते हैं। अगर रास्ते में टायर से हवा बाहर भी निकल जाए तो आप गाड़ी को काफी दूरी तक चला सकते हैं, क्योंकि इसमें हवा धीरे-धीरे निकलती है और इसकी मोटाई भी ज्यादा होती है। ट्यूबलेस टायरों को एलॉय व्हील और स्टील रिम पर भी लगाया जा सकता है ये दोनों पर ही अच्छे काम करते हैं।
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ऐसी होगी नई Hyundai Santro, लॉन्चिंग की डेट हुई लीक आमतौर पर ये कहा जाता है कि 40,000 किमी चलाने के बाद टायर को बदल देना चाहिए, लेकिन अगर आपको लगता है कि आपकी गाड़ी के टायर ठीक स्थिति में हैं तो उन्हें 10 हजार किमी और ज्यादा भी चलाया जा सकता है। इससे अधिक टायर चलाने पर वो सुरक्षा के तौर पर ठीक नहीं होते हैं और रास्ते में आपको कभी भी धोखा दे सकते हैं। अगर आपकी गाड़ी कम चलती है तो भी 5 साल से ज्यादा चलाने के बाद टायरों को चेक करवाएं और उसके बाद उन्हें इस्तेमाल में लें। आज के समय में आनलॉइन और ऑफलाइन दोनों तरह से टायर खरीदे जा सकते हैं, इसलिए जब भी टायर खरीदें तो हमेशा वारंटी के साथ ही खरीदें।