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महावीर जयंती पर एक्यूपंचर शिविर

locationचेन्नईPublished: Apr 24, 2019 12:43:49 am

श्री जैन महासंघ द्वारा चेन्नई दादावाड़ी में आयोजित महावीर के २६१८वें जन्म कल्याणक समारोह के अवसर पर निशुल्क एक्यूपंचर चिकित्सा शिविर…

Acupuncture camp on Mahavir Jayanti

Acupuncture camp on Mahavir Jayanti

चेन्नई।श्री जैन महासंघ द्वारा चेन्नई दादावाड़ी में आयोजित महावीर के २६१८वें जन्म कल्याणक समारोह के अवसर पर निशुल्क एक्यूपंचर चिकित्सा शिविर लगाया गया। इस शिविर में डॉक्टर दिलीप कुमार ने 483 मरीजों का एक्यूपंक्चर चिकित्सा पद्धति से उपचार किया जिनमें मधुमेह, घुटने का दर्द, रक्तचाप आदि समेत कई रोगों का उपचार किया गया। शिविर में काफी संख्या में समाज के लोगों ने स्वयंसेवक के रूप में सेवाएं दी।

डॉक्टरों ने नवजात को मृत बता थरमॉकोल के बॉक्स में किया सील, 8 घंटे बाद निकली जिंदा

कहते हैं जिंदगी ऊपर वाले के हाथ होती है और वह चमत्कार भी कर सकता है। ऐसा ही एक मामला चेन्नई में सामने आया है। यहां एक प्री-मेच्योर बच्ची के जन्म के बाद डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। अस्पताल में उसे बॉक्स के अंदर पैक करके घरवालों को दे दिया गया। लगभग आठ घंटे बाद परिजनों ने बच्ची के अंतिम सस्कार के लिए उसे रखा तो वह रोने लगी। हैरानी वाली बात यह है कि बच्ची बिना ऑक्सिजन और बिना किसी लाइफ सपॉर्ट के उस बॉक्स में आठ घंटे तक जिंदा रही। इतना ही नहीं, उसके बाद भी बच्ची को अस्पताल ले जाने में लगभग तीन घंटे का समय लगा। बच्ची तीन महीने की हो चुकी है और पूरी तरह से स्वस्थ्य है।

बच्ची अब एक किलो की हो चुकी है। वह आवाज सुनकर खिलखिला उठती है। अस्पताल की डॉ. दीपा हरिहरन ने कहा, किसी भी प्री-मेच्योर बच्चे जन्म लेने के तुरंत बाद उसे अतिरिक्त गर्माहट की जरूरत होती है। उसे तुरंत ऑक्सीजन पर रखा जाता है। लाइफ सपॉर्ट दिया जाता है। इस बच्ची का जिंदा होना एक चमत्कार ही है। उन्होंने कहा कि इस केस पर अब वे लोग रिसर्च कर रहे हैं।

डॉक्टरों ने बताया कि आंध्र प्रदेश की रहने वाली सुरेशा को 6 जनवरी को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उसके प्रसव की 8 अप्रैल तारीख दी गई थी लेकिन उसने सामान्य प्रसव से एक बच्ची को जन्म दिया। जन्म के बाद बच्ची रोई नहीं। डॉक्टरों ने जांच की तो बच्ची के दिल की धडक़न भी नहीं चल रही थी। उन्होंने बच्ची के पिता संदीप नायडू से बच्ची के जिंदा न होने की बात कही।

डॉक्टरों ने बच्ची को एक बॉक्स में पैक करके उन्हें दे दिया। संदीप ने बताया कि उन्होंने बॉक्स कार की डिक्की में रखा और फिर अपने गांव आ गया।

गांव में आकर उन लोगों ने बच्ची के अंतिम संस्कार की तैयारी शुरू कर दी। कुछ देर बाद उन्हें बच्ची के रोने की आवाज सुनाई दी। उन्होंने बॉक्स खोला तो हैरान रह गए। घरवाले बच्ची को अस्पताल ले गए। यहां से बच्ची को चेन्नई अस्पताल रेफर कर दिया गया। ऐंबुलेंस में बच्ची को दिए जाने के लिए कोई सुविधा नहीं था। बच्ची के चेन्नई के अस्पताल ले जाया गया।

डॉक्टरों ने बताया कि तीन महीने पहले बच्ची को जब अस्पताल लाया गया तो उसका ब्लड प्रेशर लो था। प्लस बहुत धीमी चल रही थी। वह ठीक से सांस भी नहीं ले पा रही थी। फेफड़े परिपक्व नहीं थे और उसका पूरा शरीर पीला पड़ा था। बच्ची के बचने की कोई उम्मीद नहीं थी।

सुरेखा ने बताया कि उन्हें बच्ची के इलाज के लिए अपनी सारी जमा पूंजी खर्च कर देनी पड़ी। कुछ जमीन भी बेचनी पड़ी लेकिन वह खुश हैं कि उनकी बच्ची जिंदा है। डॉक्टरों ने बताया कि बच्ची अब तीन महीने की हो गई है। उसके दिमाग के कई लगातार स्कैन किए गए हैं जो सामान्य है। ईएनडी स्पेशलिस्ट ने भी उसे सामान्य बताया है। उसकी आंखों की दृष्टि भी अच्छी है।

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