प्रारम्भ में राजपुरोहित ट्रस्ट तिरुपल्ली स्ट्रीट साहुकारपेट के अध्यक्ष रमेशसिंह मादा ने वाजपेयी को बहुआयामी व्यक्तित्व का धनी बताते हुए उनके चार दशक की राजनीतिक यात्रा के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि वाजपेयी आज शशरीर भारतवासियों के बीच भले न हों, लेकिन उनका आचार-विचार, जीवन दर्शन भारत एवं भारत के सवा सौ करोड़ देशवासी कभी भूल नहीं पाएंगे।
मादा ने कहा कि संसद में मान-मर्यादा, गरिमा और सरोकारों की राजनीति का कई दशकों तक झंडा लहराने वाले वाजपेयी एक प्रतिष्ठित राजनेता थे। दलों की सीमाओं से कहीं दूर जन-जन के प्रिय नेता थे। जब भी वाजपेयी की जयंती या पुण्यतिथि आती है तो लोग उनकी कविताओं एवं भाषणों को जरूर याद करते हैं। हर राजनीतिक दल में उनकी स्वीकार्यता थी।
इनको अब सीमा पार भगा…
वरिष्ठ कवि एवं गीतकार ईश्वर करुण ने ‘आंख-आंख में सुन्दर सपने अधर-अधर अमरित हो, हाथों में हो श भले पर मन रामचरित हो, आयुध वाले हाथ सूत तकली पर भी कुछ कातें, नर्तन करते सुप्रभात हों, गुन-गुन करती रातें। नए वर्ष के मंगल क्षण हों, नई-नई हो बातें… सुनाकर कवि गोष्ठी में चार चांद लगा दिए। उन्होंने ‘ओ भारत के वीर नागरिक खुद में मत कोहराम मचा, देश बचा उठ देश बचा, ऊपर-ऊपर हिंसा मत कर, भीतर-भीतर आग लगा, ऊपर चिकनी-चुपड़ी बातें भीतर-भीतर करे दगा, ऐसे नेताओं ने सबको बहुत छला और बहुत ठगा, ओ भारत के वीर प्रहरी, इनको अब सीमा पार भगा… सुनाकर देशप्र्रेम की झलक दिखाई।
उस माली का अनुपम उपवन…
कवयित्री डॉ. सुधा त्रिवेदी ने ‘उस माली का अनुपम उपवन, उपवन में खिलते सरल सुमन, उसकी इक डाली से सुन्दर, दो पारिजात के पुष्प उतर, आपस में रुनझुन गले मिले, खिल-खिल विहंसे, खुल-खुल किलके, किल्लोल बोल महके, विकसे… तथा ‘सरल, स्नेहिल, तरल-मन, ज्यों डाल डोली केवड़े की, कुसुम शतदल अंजुली भर प्यार के, भुजबंध व्याकुल हो कसे, स्पर्श मोहक, तपन मादक, भाव विह्वल, उठी ग्रीवा स्वर प्रकम्पित, नमित मेरा भाल तेरी दृष्टि अपलक, याचना पुलकित निवेदन, स्तब्ध, प्राणाविष्ट, अनझिप, एकटक हो निहारते… समेत अन्य कविताओं के माध्यम से काव्य-गोष्ठी में जान फूंकी।
सदियों से रहा है देखो स्वर्गमय इतिहास…
कवि डॉ. चुन्नीलाल शर्मा ने ‘आशाओं का स्वप्न पाला है सदियों से इसे संवारा है, यह पावन भूमि हमारी है, यह हिन्दुस्तान हमारा है, तैंतीस करोड़ देवता इस भू पर विचरते थे, अप्सराओं के पग इस भू पर थिरकते थे, यहां तपस्वी ज्ञानी ध्यानी ध्यान लगाते थे, यहां शेर और बकरी मिलकर पानी पीते थे… तथा ‘सदियों से रहा है देखो स्वर्गमय इतिहास हमारा है, यह पावन भूमि हमारी है यह हिन्दुस्तान हमारा है, इस देश का विश्व ने भी किया था सम्मान, दूध की नदियां बहती थी लोग करते थे अमृतपान, विदेशी आकर भी यहां योग साधना करते थे, अतिथि देवो भव की भावना हम सब रखते थे. सुनाकर गोष्ठी को उंचाइयां दीं।
नवोदित कवि तेजराज गहलोत ने, ‘वो सिर्फ जोडऩे में विश्वास रखता था, उसने गांवों को शहरों से जोड़ा, विज्ञान को विकास से जोड़ा, एक धर्म को दूसरे धर्म से जोड़ा, राजनीति में आदर्शों को जोड़ा, नदियों को नदियों से जोडऩे की बात कही… सुनाकर खूब दाद पाई। कवि शशिलेन्द्र गुप्ता ने भी कविताओं के माध्यम से वाहवाही लूटी।
राजस्थान पत्रिका चेन्नई के मुख्य उप संपादक अशोकसिंह राजपुरोहित ने अटल बिहारी वाजपेयी की प्रमुख रचनाएं पेश की तथा कवि सम्मेेलन का संचालन किया।