डिस्ट्रिक्ट चाइल्ड प्रोटेक्शन यूनिट (डीसीपीयू) के एक सदस्य ने बताया, जब बच्चा हमें मिला उस समय वह सिर्फ इतना ही बता पा रहा था कि वह मदरसे में रह रहा था। बाद में उसकी जेब में मिली चिट से कोडंगयूर के मदरसे उस्मान बिन अफ्फान का पता चला। मदरसा स्टाफ ने भी यह माना कि लड़का वहां पढ़ा है और रहा है लेकिन उसके नामांकन से जुड़ा कोई दस्तावेज और परिवार की जानकारी मदरसे में नहीं मिली। लड़के के शिक्षकों में से एक ने किसी युवक के बारे में बताया जो खुद को बच्चे का चाचा बताते हुए जुलाई की शुरुआत में उसका नामांकन करवाने आया था।
डीसीपीयू स्टाफ ने कहा कि शिक्षकों से आईडी कार्ड के बारे में पूछा गया तो उनमें से कोई भी कार्ड नहीं दिखा सका। बच्चे को तीन दिन तक खुले में रहना पड़ा। उसके द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर अधिकारियों ने बिहार के दियोलिया में उसके परिवार का पता लगाया। बिहार से लड़के का भाई होने का दावा करते हुए एक युवक आया। इसके बाद आधार कार्ड व दस्तावेजों का मिलान करते हुए बच्चे को वापस उसके घर भेज दिया गया। इसके बाद चाइल्ड वेलफेयर कमेटी ने कहा कि मदरसे में जल्द ही जांच की जाएगी जहां अलग-अलग राज्यों बिहार, असम, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल के करीब 60 बच्चे रह रहे हैं। चेन्नई में मदरसों और वेद पाठशालाओं से भागे करीब 25 बच्चे पहले ही मिल चुके हैं। इनमें से ज्यादातर की उम्र 9 से 13 साल के बीच है और सभी गरीब परिवार से हैं। कई को उनके घर वापस भेजा गया है। इससे मदरसों और पाठशालाओं की भूमिका भी सवालों के घेरे में आ गई है। अब इनकी जांच करने और रिपोर्ट तैयार करने की योजना बनाई जा रही है।