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चेन्नई

सूर्या को बड़ी राहत, हाईकोर्ट ने अवमानना कार्रवाई से किया इनकार

कोर्ट ने कहा कि अभिनेता ने जिस पृष्ठभूमि में कोर्ट प्राधिकारी और जजों के कार्य समर्पण की भावना और महामारी के वक्त उनकी वर्चुअल सुनवाई करने के तरीकों पर टिप्पणी की है उसे अवहेलनात्मक दृष्टि से भी देखा जा सकता है। लेकिन इसका निर्धारण करने से पहले यह भी परखा जाना चाहिए कि यह सही आलोचना थी अथवा नहीं।

चेन्नईSep 18, 2020 / 07:09 pm

MAGAN DARMOLA

सूर्या को बड़ी राहत, हाईकोर्ट ने अवमानना कार्रवाई से किया इनकार

सूर्या को बड़ी राहत, हाईकोर्ट ने अवमानना कार्रवाई से किया इनकार

चेन्नई. सुप्रीम कोर्ट के कोविड-१९ के वक्त नीट परीक्षा आयोजन की अनुमति देने पर अभिनेता सूर्या की टिप्पणी विवादों में आ गई थी। मद्रास हाईकोर्ट के मौजूदा जज के इस टिप्पणी पर न्यायिक अवमानना की अनुशंसा की गई थी। मुख्य न्यायाधीश एपी शाही की अध्यक्षता वाली न्यायिक पीठ ने शुक्रवार को अभिनेता को बड़ी राहत उनके खिलाफ न्यायिक अवमानना की कार्रवाई से इनकार कर दिया।

मद्रास हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एपी शाही और जस्टिस सेंथिल कुमार राममूर्ति की न्यायिक पीठ ने एडवोकेट जनरल विजय नारायण की दलील को तर्कसंगत माना कि अभिनेता सूर्या के खिलाफ न्यायिक अवमानना की कार्रवाई की सहमति नहीं दी जानी चाहिए। अवमानना कार्रवाई में एडवोकेट जनरल की सहमति आवश्यकता होती है लेकिन कोर्ट के पास स्वत: संज्ञान लेते हुए ऐसा करने का अधिकार भी है।

बेंच ने कहा कि अभिनेता ने जिस पृष्ठभूमि में कोर्ट प्राधिकारी और जजों के कार्य समर्पण की भावना और महामारी के वक्त उनकी वर्चुअल सुनवाई करने के तरीकों पर टिप्पणी की है उसे अवहेलनात्मक दृष्टि से भी देखा जा सकता है। लेकिन इसका निर्धारण करने से पहले यह भी परखा जाना चाहिए कि यह सही आलोचना थी अथवा नहीं। यह प्रतिक्रिया भी उस व्यक्ति की है जो समाजसेवी बताया गया है और जनहितैषी कार्य में समर्पित है।

अनुच्छेद 215

न्यायिक बेंच ने स्पष्ट किया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत गलत को गलत कहना और अनियंत्रित बयानी करना दो अलग-अलग स्वरूप हैं। भारतीय संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार में उचित आलोचना की भी गारंटी दी गई है। लेकिन इसी संविधान में न्यायिक प्रशासन को अपमानित करने से बचाने के प्रावधान भी अनुच्छेद २१५ में हैं।

भाषा और उच्चारण

जजों ने कहा हमने अभिनेता के बयान को पढ़ा जिसे न्यायाधीश एस. एम. सुब्रमण्यम ने भेजा था और इस संबंध में अन्य पत्र भी देखे। भाषा को भी भले ही सटीक माना जाए लेकिन जब यह उत्तेजनापूर्ण तरीके से उच्चरित होती है तो सकल रूप से गलत हो सकती है। यह असम्मानजनक भी हो सकती है, अपमान से कमतर भी लग सकती है और आलोचना की सीमा को छूने वाली भी हो सकती है।

संयमित भाषा

न्यायाधीशों ने माना कि लोक व्यवहारों में पर्याप्त एहतियाती बरती जानी चाहिए। खासकर जब आप कोर्ट, जज और उनकी कार्यप्रणाली के बारे में कुछ कह रहे हैं। हां यह बात और है कि उन पर प्रतिक्रिया अगर सही और संयमित आलोचना है तो वह अवमानना नहीं है।

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