आत्मा ही वैतरणी, कामधेनु और कल्पवृक्ष
उन्होंने कहा जो स्वयं का नाथ नहीं है वह किसी अन्य का नाथ बनने के योग्य नहीं होता। स्वयं की आत्मा का स्वामी छह काय जीव त्रस, स्थावर प्राणियों का रक्षक बनने से होता है। आत्मा ही वैतरणी, कामधेनु और कल्पवृक्ष है। सुखों और दुखों की कर्ता व भोक्ता, स्वयं का मित्र और शत्रु भी है। जो साधक संयम के अनुसार आचरण नहीं करता वह दीक्षा लेने के बाद भी अनाथ है।
जीव जब तक पाप करेगा बंधनों में बंधता रहेगा। बंधनों से बचना है तो संयम पथगामी होना है। तीर्थंकर प्रभु ने समय-समय पर जगह-जगह पर साधुचर्या की चर्चा की है। धर्मसभा में उपस्थिति सभी जनों ने चिन्मयसागर को श्रद्धासुमन अर्पित किए। श्री मधुकर उमराव अर्चना चातुर्मास समिति द्वारा दो दिवसीय निशुल्क एक्यूपंक्चर चिकित्सा शिविर का शुभारंभ साध्वीवंृद के सान्निध्य में किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में लोगों ने स्वास्थ्य लाभ लिया। प्रात: पुच्छिशुणं सम्पुट साधना में भाग लेने वालों के लिए ड्रा निकाला गया।