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चेन्नई

40 सालों से गधे ढो रहे चुनावी सामग्री

पहले मतपेटिकाएं और अब ईवीएम भी

चेन्नईApr 17, 2019 / 09:24 pm

P S VIJAY RAGHAVAN

Election materials carrying donkeys for 40 years

40 सालों से गधे ढो रहे चुनावी सामग्री

चेन्नई. स्ट्रांग रूम में से मतदान केंद्रों और मतदान के बाद इनकी सुरक्षित वापसी को ट्रेक करने के लिए जहां चुनाव आयोग वाहनों में जीपीएस लगा रहा है, वहीं राज्य के पहाड़ी गांवों में आज भी मूक पशुओं के माध्यम से ईवीएम ढोया जा रहा है। तमिलनाडु के पिछड़े हुए जिलों में शुमार धर्मपुरी के पहाड़ी इलाकों के गांवों के लोगों का आज भी सड़क मयस्सर नहीं है। यही वजह है कि आधुनिकता के इस दौर में भी दूरदराज के पहाड़ी ग्रामीणों को लोकतंत्र के महापर्व में शामिल कराने के लिए गधों का इस्तेमाल होता है। गत चालीस सालों से ऐसा ही हो रहा है।

निर्वाचन आयोग सौ फीसदी मतदान का लक्ष्य हासिल करने के लिए विविध उपाय कर रहा है। मतदाता जागरूकता कार्यक्रमों के अलावा मतदाताओं को चुनाव केंद्रों के बारे में सहज जानकारी देने, नि:शक्त के अनुकूल मतदान केंद्रों की तैयारी, मतदान केंद्रों पर आवश्यक सुविधाएं देने जैसे उपाय किए गए हैं। आयोग द्वारा दूरदराज के पहाड़ी गांवों में मतदान केंद्र स्थापित करना इसी लक्ष्य के तहत है। ये ऐसे गांव हैं जहां आज तक पक्के मार्ग नहीं बनाए जा सके हैं। इन गांवों तक गधों व घोड़ों से ईवीएम पहुंचाए गए।

 

Election materials carrying donkeys for 40 years

धर्मपुरी जिले के पेन्नागरम के निकट वड़वनहल्ली ग्राम पंचायत क्षेत्र के कोटूर, येरीमलै व अलकटू पहाड़ी गांवों के लोगों को चुनाव प्रक्रिया में शामिल करने की जुगत में वहां मतदान केंद्र स्थापित किए गए हैं। इन गांवों में बड़ी संख्या में मतदाता बसे हैं। इन गांवों तक पहुंचने के लिए १४ किमी का पहाड़ी सफर तय करना होता है। तलहटी से गधे पर मतदान केंद्र के लिए जरूरी सभी सामग्री, वस्तुएं व उपकरण लादकर ले जाए गए।

गधों के मालिक चिन्नराज बताते हैं कि वे १९७० से चुनावी सामग्री की आवाजाही कर रहे हैं। उनके पांच गधों को चुनाव आयोग ने प्रतिदिन दो-दो हजार रुपए के भाड़े पर लिया है। चुनाव के बाद इन गधों से ही ईवीएम वापस आएंगे। इन पहाड़ी गांवों के चुनाव केंद्रों के लिए विशेष अधिकारी नियुक्त हैं जिनकी निगरानी में ईवीएम की आवाजाही होती है। चुनाव के वक्त इस तरह चिन्नराज सामग्री का यातायात कर दो से तीन हजार रुपए कमा लेता है।

 

Election materials carrying donkeys for 40 years

कोटूर गांव के मतदाता पचपन वर्षीय पी. मुनिअम्माल का कहना है कि हम प्रत्येक चुनाव में पक्की सड़क की मांग करते हैं लेकिन यह आज भी अधूरी है। हमारे गांव के मतदाता इस आस में फिर से मतदान को तैयार हैं कि नया सांसद उनकी मांग को पूरा करेगा।
ए. आनंदन नाम के ग्रामीण ने बताया कि पहले हमने मतदान के बहिष्कार का निर्णय किया था। फिर चुनाव अधिकारियों ने यकीन दिलाया कि चुनाव बाद सड़क का काम शुरू होगा। लिहाजा हमने यह निर्णय टाल दिया है। उनके गांव की आबादी १५०० के करीब है और लगभग ७०० से अधिक मतदाता है।

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