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चेन्नई

मानव जीवन दुर्लभ अवसर है चेतना के परिष्कार का

कपिल मुनि ने कहा इस संसार में मनुष्यत्व, धर्म श्रवण, श्रद्धा और संयम में पराक्रम इन चार चीजों का मिलना बेहद कठिन है।

चेन्नईOct 31, 2018 / 01:21 pm

Ritesh Ranjan

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मानव जीवन दुर्लभ अवसर है चेतना के परिष्कार का

चेन्नई. गोपालपुरम स्थित भगवान महावीर वाटिका में विराजित कपिल मुनि ने कहा इस संसार में मनुष्यत्व, धर्म श्रवण, श्रद्धा और संयम में पराक्रम इन चार चीजों का मिलना बेहद कठिन है। इस मनुष्य जीवन रूपी किनारे पर पहुँचना तभी संभव है जब व्यक्ति ने पुण्यार्जन किया हो। सभी ग्रंथ, पंथ और संतों का मनुष्य जीवन की दुर्लभता के कथन का अभिप्राय यही है कि व्यक्ति कहीं इस जीवन की उपलब्धि को तुच्छ घटना मानकर सिर्फ खाने कमाने और आमोद प्रमोद में सिमट कर जीवन को दांव पर न लगा बैठे । इस दुर्लभ जीवन का उद्देश्य इंद्रियों के विषय सुख की प्राप्ति नहीं बल्कि शाश्वत आत्म सुख को प्राप्त करना है। जीवन निर्वाह की कला का ज्ञान तो सृष्टि के प्राणिमात्र को हासिल है मगर जीवन निर्माण की कला का ज्ञान तो सिर्फ मनुष्य जीवन में ही संभव है। संसार की सभी कलाओं में धर्म कला सर्वोपरि है । इस कला के अभाव में पशु और मनुष्य में कोई ख़ास फर्क नहीं रह जाता है। जीवन में प्रत्येक प्रवृत्ति होश और सावधानी पूर्वक की जाए तो कर्म बंधन से बचा जा सकता है। मनुष्य जीवन एक विराट अवसर है चेतना के परिष्कार और उध्र्वारोहण का। जीवन और संसार में दुख है। यह कोई निराशावादी घोषणा नहीं बल्कि प्रगट रूप में संसार का जो स्वरूप है, यह उसी का चित्रण और वर्णन है। सोए हुए लोगों का संसार यानि जो मनुष्य शरीर धारण करने मात्र से ही स्वयं को मनुष्य तो मान बैठे हैं, किन्तु दुखी व व्याकुल हैं लेकिन एक मार्ग है इस दुख से मुक्ति पाने का। जीवन के प्रत्येक पल को सावधानी पूर्वक जीते हुए यदि हम एक जागृतिपूर्ण जीवन जीते हैं तो दुख मिट सकता है। जीवन उत्थान और योग्यता के विकास की एक सम्यक प्रक्रिया ही धर्म है। धर्म आंख खोलने की विधि है। यदि आंखें खुली हों तो मार्ग स्वत: बन जाता है। खुली आंखों से यह देख पाना संभव है कि जीवन न सुख है, न दुख। जीवन की व्यर्थता का वर्णन करने या उसे धिक्कारने से कुछ न होगा। ऐसा करके तो हम केवल उस आनंद से वंचित होंगे। हमारे जीवन में जो हमें मिलना चाहिए, यदि वह हमें प्राप्त हो जाता है तो हमें अपने जीवन का अर्थ मिल जाता है। सेवाभाव का सौंदर्य हमारे अंदर सदा रहता है, हमें केवल उसे खोज कर उजागर करना होता है। निजी स्वार्थ और नाम की भूख से मुक्त हुए धर्म आचरण और समाज सेवा नहीं की जा सकती। संचालन मंत्री राजकुमार कोठारी ने किया।

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