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चेन्नई

पानी का अवैध दोहन बंद नहीं हुआ तो अफसर अपनी जेब से भरेंगे पैसा

लाइसेंस लिए बगैर भूजल का अवैध दोहन जारी रहता है तो संबंधित अफसर इसके लिए जवाबदेह होंगे, मद्रास हाईकोर्ट (Madras High Court) ने तमिलनाडु सरकार को निर्देश दिया कि वह भूजल पर आधारित जल शुद्धिकरण इकाइयों की संख्या को लेकर समग्र नीति पेश करे।

चेन्नईFeb 08, 2020 / 09:27 pm

MAGAN DARMOLA

पानी का अवैध दोहन बंद नहीं हुआ तो अफसर अपनी जेब से भरेंगे पैसा

पानी का अवैध दोहन बंद नहीं हुआ तो अफसर अपनी जेब से भरेंगे पैसा

चेन्नई. मद्रास उच्च न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया है कि अगली सुनवाई तक प्राधिकारियों से लाइसेंस लिए बगैर भूजल का अवैध दोहन जारी रहता है तो संबंधित अफसर इसके लिए जवाबदेह होंगे। इन इकाइयों को बंद नहीं किए जाने की सूरत में उनको अपनी जेब से कोर्ट की रजिस्ट्री में निश्चित राशि जमा करानी पड़ सकती है ताकि न्यायालय के निर्देशों की भविष्य में पालना सुनिश्चित हो सके।

यह मामला नीट इंडिया ऑर्गनाइजेशन के एमवी शिवमुत्तु की जनहित याचिका से जुड़ा है। याचिका में ऐसे उद्योगों पर दण्डात्मक कार्रवाई की मांग की गई है जो चेन्नई महानगर भूजल नियमन एक्ट, १९८७ के तहत लाइसेंस लिए बिना भूजल का अनुचित दोहन कर रहे हैं।

न्यायाधीश विनीत कोठारी और न्यायाधीश आर. सुरेश कुमार की न्यायिक पीठ ने इस याचिका को सुनते हुए लोक निर्माण विभाग के प्राधिकारियों को निर्देश दिया था कि वह पीडबल्यूडी और चेन्नई मेट्रो वाटर सीवेज बोर्ड से अनापत्ति प्रमाणपत्र हासिल किए बगैर संचालित जल शुद्धिकरण इकाइयों को बंद कर पालना रिपोर्ट पेश की जाए।

शुक्रवार को इस याचिका पर फिर से हुई सुनवाई में लोक निर्माण विभाग के चीफ इंजीनियर एस. प्रभाकरण हाईकोर्ट में पेश हुए और स्थिति रिपोर्ट पेश की। उनके साथ राज्य भूजल व जल संसाधन डेटा सेंटर के प्रभारी उपनिदेशक एस. राजा व चेन्नई मेट्रो वाटर के जल विशेषज्ञ पी. सुब्रमण्यन भी पेश हुए।

बेंच में पेश रिपोर्ट के अनुसार २०१७ में हुए सर्वे के तहत ११६६ फिरका में से ४६२ अतिदोहित जोन, ७९ क्रिटिकल, १६३ सेमीक्रिटिकल, ४२७ सुरक्षित और ३५ खराब गुणवत्ता जोन में हैं। सरकार के अधिवक्ता पी. ज्योतिराज ने हाईकोर्ट को बताया कि चेन्नई छोड़ राज्य के ३१ जिलों में ५६७ कंपनियों के पास एनओसी है जबकि २६१ बगैर अथवा लाइसेंस का नवीनीकरण कराए बिना जल उपचार के कार्य में लगे हैं।

पीठ ने रिपोर्ट पर गौर करने के बाद तिरुवल्लूर और कांचीपुरम में जल इकाइयों की संख्या और उनके नवीनीकरण नहीं कराने के मामलों को रेखांकित करते हुए अपने ९ जनवरी २०२० के निर्देश का स्मरण कराया कि वह पहले ही हिदायत दे चुकी है कि ऐसी अवैध इकाइयों को बंद किया जाए जो भूजल दोहन में लगी है। अगली सुनवाई में अगर हमें आदेश की पालना नहीं होने के संबंध में जानकारी मिलती है तो संबंधित अधिकारी भी साथ में अनिवार्य रूप से पेश रहें। बेंच ने स्पष्ट कर दिया कि वह उक्त मामले में जिला कलक्टरों व पीडबल्यूडी के चीफ इंजीनियरों पर निजी उत्तरदायित्व तय करना चाहती है। संबंधित जिला कलक्टर जमीन से अनुचित दोहन कर रही तथा अवैध लाइसेंस वाली इकाइयों पर कार्रवाई करेंगे।

जल इकाइयों संबंधी नीति मांगी

हाईकोर्ट ने तमिलनाडु सरकार को निर्देश दिया कि वह भूजल पर आधारित जल शुद्धिकरण इकाइयों की संख्या को लेकर समग्र नीति पेश करे। न्यायालय ने कहा कि अगर ऐसी कोई नीतिगत निर्णय नहीं हुआ है तो राज्य में जल संसाधनों की कमी को देखते हुए इसे लिया जाना चाहिए। संबंधित सक्षम प्राधिकारी ऐसे निर्णय करें तथा कोर्ट की अगली तारीख पर अवगत कराएं। इस निर्देश के साथ पीठ ने सुनवाई २६ फरवरी २०२० के लिए टाल दी।

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