आईवीएफ की सफलता दर अभी भी 35 फीसदी से कम है। मां बनाने का लोभ देकर जेनेटिक डिफेक्ट के बहाने आईवीएफ सेंटर बेहिचक जेंडर टेस्ट कर लड़का पाने की चाह रखने वाले दंपतियों से तीन गुना रुपए वसूलते हैं। यह सब गैरकानूनी है मगर धड़ल्ले से हो रहा है। आईवीएफ सेंटर अपनी साख के लिए दंपतियों को सौ फीसदी भरोसा देकर कभी सहमति तो कभी असहमति से अन्य पुरुषों के स्पर्म के उपयोग से भी नहीं चूकते हैं।
इंडियन मेडिकल रिसर्च सेंटर (आईसीएमआर) की गाइडलाइन के मुताबिक 21 से 55 वर्ष का पुरुष स्पर्म तो 23 से 35 वर्ष की एक बच्चे की मां अंडाणु दान कर सकती है। स्पर्म या अंडाणु की क्वालिटी जितनी बेहतर होती है उतनी ही कीमत में वे बिकते हैं। डोनर की लंबाई, रंग, शैक्षिक योग्यता, आंखों का रंग, चेहरा गोल या लंबा, लाइलाज बीमारियोंं से मुक्त और विशेष ब्लड गु्रप वाले प्रोफाइल की कीमत 20 से 40 हजार तक होती है।
दुनियाभर में अब तक आईवीएफ तकनीक से 90 लाख बच्चों का जन्म हो चुका है। भारत में हर साल 1800 आईवीएफ क्लीनिकों में करीब 2.5 लाख महिलाओं का ट्रीटमेंट (प्रजनन चक्र) हो पाता जबकि जरूरत 6 लाख महिलाओं को होती है। देश के शीर्ष 8 शहरों- मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलुरु, हैदराबाद, अहमदाबाद और पुणे में हर साल कुल आईवीएफ के 55 फीसदी मामलों का ट्रीटमेंट होता है।
घटी प्रजनन दर तो बढ़ा आईवीएफ बाजार
देश में घटती प्रजनन दर आईवीएफ बाजार के फलने फूलने की बड़ी वजह है। सुविधा और जरूरत के अनुसार माता-पिता बनने के फैसले और बच्चा गोद लेने की जटिल प्रक्रियाओं से बचने के लिए भी लोग आईवीएफ, एग या स्पर्म डोनेशन का सहारा ले रहे हैं। पढ़े-लिखे संपन्न दंपती स्पर्म या एग लेने को बुरा भी नहीं मानते हैं।
– डॉ. अरुणा कालरा, सीनियर ऑब्स्टट्रिशन, सी. के. बिरला हॉस्पिटल, गुरुग्राम