चेन्नई

15 साल बाद मिला न्याय

Justice : हिरासत में यातना मामले एसआइ के खिलाफ जांच के आदेश, भाजपा नेता की याचिका, रिट याचिका का निपटारा करते हुए कहा court ने कहा कि जो सामग्री उपलब्ध है उसे प्रथम दृष्ट्या लगता है कि याची के साथ हिरासत में हिंसा हुई थी।

चेन्नईNov 08, 2019 / 05:35 pm

MAGAN DARMOLA

15 साल बाद मिला न्याय

चेन्नई. भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन कृषि इकाई जिला अध्यक्ष जिनके साथ कथित रूप से १५ साल पहले हिरासत में पुलिसकर्मियों ने हिंसा की थी को न्यायालय से इंसाफ मिला है। हाईकोर्ट ने उनकी अर्जी स्वीकारते हुए पुलिस महानिरीक्षक सेंट्रल जोन को हिंसा के आरोपी पेरम्बलूर जिले के इरुम्पुलीकुरिची पुलिस थाना उपनिरीक्षक जी. कोशलराम के खिलाफ जांच करने को कहा है।

न्यायाधीश वी. भारतीदासन ने अरियलूर जिले के जी. तमिलअळगन की रिट याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि जो सामग्री उपलब्ध है उसे प्रथम दृष्ट्या लगता है कि याची के साथ हिरासत में हिंसा हुई थी। इस परिप्रेक्ष्य में याची की शिकायत पर जांच होनी चाहिए ताकि सचाई सामने आ सके।

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सेंट्रल जोन के पुलिस महानिरीक्षक याची की शिकायत पर एसआइ जी. कोशलराम के खिलाफ जांच कराएं। जांच के दौरान दोनों पक्षों की सुनवाई कर उचित आदेश जारी करें। चूंकि यह मामला २००४ का है इसलिए याची को निर्देश दिया जाता है कि वे चार सप्ताह के भीतर पुलिस महानिरीक्षक सेंट्रल जाने के पास नई अर्जी लगाएं। उसके बाद आईजी जांच करें तथा आठ सप्ताह के भीतर फैसला सुनाएं।

इससे पहले याची के वकील ने न्यायालय को बताया कि मुवक्किल का उसके भाई द्वारा किए गए अपराध से कोई संबंध नहीं था। इसके अलावा अरियलूर सरकारी अस्पताल के डॉक्टर के एक्सीडेंट रजिस्टर में उल्लेख है कि याची के शरीर के कई अंगों पर गहरी चोट के निशान थे जो साक्ष्य है कि पुलिस ने उसको पीटा। जज भारतीदासन ने भी अस्पताल द्वारा जारी वुंड सर्टिफिकेट को साक्ष्य माना और फैसला सुनाया।

२४ अगस्त २००४ सुबह साढ़े पांच बजे आरोपी एसआइ अपनी टीम के साथ याची के घर उसके भाई की तलाश में गया। उसका भाई घर नहीं था। पूछताछ में याची को उसके परिजनों के सामने मारा गया। फिर कथित रूप से अंडरवियर में एक किमी तक पूरे गांव में उसे पैदल घुमाते हुए विक्रीमंगलम थाने ले जाकर खूब पीटा गया। इसके अलावा उस पर आपराधिक मुकदमा दर्ज कर अरियलूर पुलिस स्टेशन छोड़ दिया गया। बाद में याची का अरियलूर जीएच में उपचार हुआ तथा न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर न्यायिक हिरासत में भेज दिया। याची ने २६ अगस्त को न्यायिक मजिस्ट्रेट से हिरासत में हिंसा की शिकायत की लेकिन एसआइ पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। २ सितम्बर २००४ को पीडि़त को जमानत मिल गई और उसने सभी उच्चाधिकारियों से आपबीती सुनाई लेकिन उसे इंसाफ नहीं मिला।

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