जीवन एक बाजी के समान
साध्वी धर्मलता ने कहा जीवन एक वृक्ष की तरह है। बचपन पत्तों और यौवन फल-फूलों की संयुक्त शाखाओं के समान और बुढ़ापा ठूंठ के समान है।
चेन्नई. ताम्बरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा जीवन एक वृक्ष की तरह है। बचपन पत्तों और यौवन फल-फूलों की संयुक्त शाखाओं के समान और बुढ़ापा ठूंठ के समान है। अंत में जीवन की कहानी खत्म हो जाती है। जीवन एक बाजी के समान है। हार-जीत तो हमारे हाथ में नहीं है लेकिन बाजी खेलना हमारे हाथ में है। जीवन एक कला है। पशु भी जीवन जीता है और मनुष्य भी, असुर भी जीता है और सुर भी। धनवान और निर्धन, बुद्धिमान और बुद्धिहीन, रूपवान और रूपहीन तथा बलशाली और बलहीन सभी जीवन जीते हैं। लेकिन जीवन जीने की जो कला जानता है उसी का जीवन सार्थक होता है। साध्वी ने कहा मृत्यु से पहले हमारे सारे दोष नष्ट हो जाएं, ऐसा जीवन जीना है। कथनी और करनी एक हो जाए एवं जीवन इतना पवित्र बना लें, यदि कोई तुम्हारी निंदा भी करे तब भी लोग उसकी बात पर विश्वास न करे। जीवन में दो भाग चिंतन और एक भाग प्रवृत्ति होगी तो भगवान श्रीराम की तरह मर्यादित हो जाएगा और राजा जनक और भरत चक्रवर्ती की तरह अनासक्त बन जाए। जीवन का कुछ लक्ष्य बनाकर चलना है। धनवान और निर्धन, बुद्धिमान और बुद्धिहीन, रूपवान और रूपहीन तथा बलशाली और बलहीन सभी जीवन जीते हैं। लेकिन जीवन जीने की जो कला जानता है उसी का जीवन सार्थक होता है। साध्वी ने कहा मृत्यु से पहले हमारे सारे दोष नष्ट हो जाएं, ऐसा जीवन जीना है। कथनी और करनी एक हो जाए एवं जीवन इतना पवित्र बना लें, यदि कोई तुम्हारी निंदा भी करे तब भी लोग उसकी बात पर विश्वास न करे। जीवन में दो भाग चिंतन और एक भाग प्रवृत्ति होगी तो भगवान श्रीराम की तरह मर्यादित हो जाएगा और राजा जनक और भरत चक्रवर्ती की तरह अनासक्त बन जाए। जीवन का कुछ लक्ष्य बनाकर चलना है।