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चेन्नई

Madras HC ने क्यों माना सोशल मीडिया को जिम्मेदार

Madras HC said social media companies cannot avoid responsibility for its harm : Tamilnadu
अदालत ने कहा, जिससे कानून-व्यवस्था खराब हो सकती है। यह मंच इसके इस्तेमाल से होने वाले नुकसान की जवाबदेही से नहीं बच सकता।

चेन्नईSep 23, 2019 / 06:21 pm

shivali agrawal

Madras HC said social media companies cannot avoid responsibility for its harm : Tamilnadu

Madras HC said social media companies cannot avoid responsibility for its harm : Tamilnadu

चेन्नई. मद्रास HC ने कहा कि सोशल मीडिया कंपनियां उनके मंच से प्रसारित की जा रही झूठी खबरों और अफवाहों के कारण से समाज को होने वाले नुकसान की जिम्मेदारी से बच नहीं सकती।

 

उपयोगकर्ताओं की ओर से साझा की जा रही सामग्री के लिए मंच की जिम्मेदारी तय करने का महत्व रेखांकित करते हुए अदालत ने कहा, झूठी खबर, भ्रामक सूचना और नफरत फैलाने वाले भाषण थोडे समय में सैकड़ों लोगों तक पहुंचते हैं और इसका लोगों पर मनोवैज्ञानिक असर होता है जिससे अशांति फैलती है।


अदालत ने कहा, जिससे कानून-व्यवस्था खराब हो सकती है। यह मंच इसके इस्तेमाल से होने वाले नुकसान की जवाबदेही से नहीं बच सकता।

एंटोनी क्लीमेंट रुबीन की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति एम. सत्यनारायणन और न्यायमूर्ति एन. शेषशायी की खंडपीठ ने यह टिप्पणी की।

जब मामला सुनवाई के लिए आया तो रुबीन ने अनुरोध किया कि साइबर अपराध को रोकने के लिए सोशल मीडिया अकाउंट को आधार से या किसी अन्य सरकार द्वारा सत्यापित पहचान पत्र से जोडऩे का अनुरोध करने वाली उनकी याचिका में बदलाव की इजाजत दी जाए। हालांकि, अदालत ने इसे स्वीकार नहीं किया।
व्हाट्सऐप की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एन. एल. राजा ने सोशल मीडिया अकाउंट को किसी पहचान पत्र से जोडऩे का विरोध करते हुए कहा कि यह निजता के अधिकार के खिलाफ होगा।

उन्होंने कहा, पहचान का दुरुपयोग हो सकता है। अगर कोई व्यक्ति गलत फोन नंबर, आधार नंबर और पहचान पत्र देता है तो निर्दोष व्यक्ति को परेशानी हो सकती है। ऐसे में हम उसका कैसे पता लगाएंगे।

इस पर अदालत ने जोर देकर कहा कि निजता का मूल अधिकार भारत में पूर्ण नहीं है। निजता का सिद्धांत समाज की शांति पर पडऩे वाले असर से अधिक महत्वपूर्ण नहीं हो सकता। बोलने की आजादी के साथ कुछ जिम्मेदारी भी होती है।

इससे पहले सोशल मीडिया के वकीलों ने मामले की सुनवाई इस आधार पर स्थगित करने की मांग की कि पहले ही विभिन्न उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों को शीर्ष अदालत में स्थानांतरित करने की याचिका उच्चतम न्यायालय स्वीकार कर चुका है।

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