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चेन्नई

हाथों में मोबाइल परमाणु बम की आफत जैसा : हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै शाखा का विचार है कि पॉर्न वेबसाइट और शराब दोनों सामाजिक प्रदूषण के बड़े कारक है।

चेन्नईMar 15, 2019 / 04:27 pm

Ritesh Ranjan

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हाथों में मोबाइल परमाणु बम की आफत जैसा : हाईकोर्ट

मदुरै. मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै शाखा का विचार है कि पॉर्न वेबसाइट और शराब दोनों सामाजिक प्रदूषण के बड़े कारक है।
मदुरै जिला निवासी विजय कुमार ने हाईकोर्ट की मदुरै शाखा में जनहित याचिका दायर की कि वेबसाइट और इंटरनेट के माध्यम यह विश्व लोगों की मु_ी तक सीमित हो गया है। पहले इंटरनेट का उपयोग करने के लिए इंटरनेट सेंटर जाना पड़ता था। मोबाइल फोन के इस जमाने में अब प्रयोक्ता हर जगह बड़ी सरलता से इंटरनेट का उपयोग कर रहा है। सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए भी इसकी जरूरत होती है। लेकिन इसका दुरुपयोग भी हो रहा है। बच्चों का यौन उत्पीडऩ, पोर्न वेबसाइट, ब्लू व्हेल, वेब पुलिंग जैसे खेलों से तो लोगों की जानें गई हैं। स्कूली बच्चों में भी इसका उपयोग बढ़ता जा रहा है।
याची ने कहा कि पैरेंटल विंडो के माध्यम से अश्लील सामग्रियों व वेबसाइटों पर रोक लगाई जा सकती है। यह इंटरनेट सेवा प्रदाता का फर्ज है कि वह उपभोक्ताओं में इस विंडो के बारे में जागरूकता लाए। २०१७ में केंद्रीय टेलीकॉम मंत्रालय ने परिपत्र भी जारी किया था। हाईकोर्ट से आग्रह है कि वह पैरेंटर विंडो के बारे मेें जागरूकता लाने के इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को निर्देश जारी करें।
न्यायाधीश एन. कृपाकरण और न्यायाधीश एस .एस. सुंदर ने इस याचिका पर सुनवाई की। याची के अधिवक्ता की दलील थी कि इंटरनेट सेवाओं का सही तरीक से नियमन नहीं होना ही कई समस्याओं और चुनौतियों को जन्म दे रहा है।
हाईकोर्ट की न्यायिक पीठ ने कहा कि फेसबुक, सेलफोन का उपयोग बहुधा बढ़ रहा है। मोबाइल फोन का हाथ में होना परमाणु बम की तरह खतरनाक है। उसकी उपयोगिता और घातक परिणामों का जाने बगैर उपयोग में लाने की वजह से पोल्लाची यौन कांड जैसी घटनाएं होती है। अधिकारियों को भी इस बारे में सावचेत रहना चाहिए। यह केवल कोर्ट का कार्य नहीं है। पॉर्न वेबसाइट और शराब दोनों सामाजिक प्रदूषण के बड़े कारक है। अगर इनसे नहीं निपटा गया तो युवावर्ग अपनी स्वस्थता व उज्ज्वल भविष्य के प्रति सोच को भुला बैठेगा। अभिभावकों का भी कर्तव्य है कि वे अपने बच्चों के क्रियाकलापों पर नजर रखें।
यह विचार व्यक्त करते हुए हाईकोर्ट ने इंटरनेट सेवा प्रदाता संघ के सचिव व राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग को एक सप्ताह के भीतर जवाब देने का नोटिस जारी किया।
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