जस्टिस एम. वी. मुरलीधरन ने हाईकोर्ट रजिस्ट्री को १८ दिसम्बर २०१८ को अंतरिम आदेश जारी किया था कि राज्यभर में मजिस्ट्रेट के आदेश से बंद किए गए केसों का विवरण पेश किया जाए। अ
विनाशी न्यायिक दण्डाधिकारी के एक आदेश से ८७ एफआइआर को बंद कर दिए जाने का पता चलने पर एकल जज ने ऐसे ही अन्य मामलों का विवरण मांगा था। न्यायिक मजिस्ट्रेट ने ये मामले इसलिए बंद किए थे पुलिस ने विधिसम्मत निर्धारित अवधि में चार्जशीट फाइल नहीं की थी।
एकल जज ने मजिस्ट्रेट और पुलिस के आचरण की आलोचना की और लोक अभियोजक ए. नटराजन और अपर महाधिवक्ता पी. एच. अरविन्द पांडियन को आदेश दिया कि वे निजी तौर पर संबंधित पुलिस थानों से बंद की गई ८७ प्राथमिकियों के बारे में पड़ताल करें।
एकल जज के पूर्व निर्देश पर हाईकोर्ट रजिस्ट्री ने सुनवाई के दौरान रिपोर्ट पेश की कि राज्य में पांच सालों में २ लाख १४ हजार ९०१ एफआइआर चालान दायर नहीं होने की वजह से बंद कर दी गई। ऐसे मामलों में कांचीपुरम (२८,५७३), मदुरै (२६,५३१) व कडलूर (१४, ३१०) सूची में अव्वल है जबकि चेन्नई में ऐसी १३ हजार ८३६ प्राथमिकियां मजिस्ट्रेट कोर्ट ने बंद कर दी।
इस रिपोर्ट पर आश्चर्य जताते हुए जस्टिस मुरलीधरन ने पूछा कि क्या तमिलनाडु पुलिस काम कर भी रही है? अपराध आचार संहिता के तहत मजिस्ट्रेट कोर्ट को इस तरह केस बंद करने का अधिकार प्राप्त है लेकिन वह बिना यह जाने कि पुलिस क्यों चार्जशीट दायर नहीं कर सकी इस तरह इतनी बड़ी तादाद में एफआइआर बंद करने के आदेश,नहीं दे सकती।
हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए इस मामले में गृह सचिव और डीजीपी को भी जवाबी पक्ष के रूप में शामिल करते हुए उनसे २५ जनवरी तक स्पष्टीकरण मांगा है।
गौरतलब है कि इतनी बड़ी संख्या में एफआईआर बंद किए जाने का मामला तिरुपुर निवासी के. शशिकुमार की २०१० में हुई मृत्यु से जुड़ा है। इस मामले में पीडि़त परिवार ने अस्पताल में लापरवाहीवश उसकी मृत्यु को लेकर याचिका लगाई थी। अपील याचिका पर सुनवाई के दौरान ६ दिसम्बर को जस्टिस मुरलीधरन को उत्तुकुलै पुलिस ने बताया था कि अविनाशी न्यायिक दण्डाधिकारी की कोर्ट ने ८ जून २०१६ को यह एफआइआर क्लोज कर दी थी क्योंकि तय समय में चार्जशीट दायर नहीं हुई थी।
जब हाईकोर्ट ने और अधिक विवरण मांगा तो पता चला कि मजिस्ट्रेट ने उक्त आधार पर २००६-१४ के बीच ८७ प्राथमिकियां बंद कर दीं।