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चेन्नई

Tamilnadu: नवकार महामंत्र है सभी समस्याओं का समाधान

आयंबिल ओली की आराधना शुरू, सजोड़े नवकार महामंत्र जाप

चेन्नईOct 05, 2019 / 09:59 pm

ASHOK SINGH RAJPUROHIT

Navkar is the long way to the goal

Navkar is the long way to the goal

चेन्नई. एएमकेएम में विराजित साध्वी कंचनकुंवर व साध्वी डॉ.सुप्रभा ‘सुधाÓ ने कहा कि श्रीपाल और मैनासुंदरी के जीवन में अनेकों दुख, कष्ट, बाधाएं और मृत्यु तक समीप आई लेकिन पंचपरमेष्ठी नवकार महामंत्र की आराधना से वे हर बाधा को पार करते गए। यह लौकिक ही नहीं परलौकिक महाशक्ति मंत्र है जो हमें सहज मिला है। लक्ष्य तक लेकर जाने वाला दीर्घमार्ग है नवकार। यह ऊर्जावान महामंत्र सभी समस्याओं का समाधान है। भौतिक, आध्यात्मिक सभी रोगों को दूर करता है। जितनी क्षमता और समय हो इसका जाप करना चाहिए। धर्म के प्रति श्रद्धा और समर्पण होना चाहिए, धर्म को जितना जीवन में उतारना चाहिए। ङ्क्षचतन करें कि धर्म ही साथ रहेगा, सुख देगा, जीवन का विकास करेगा। जीवन में तीन बातें- वचनशुद्धि, विचार शुद्धि और व्यवहार शुद्धि हो तभी जीवन का उत्थान निश्चित है नहीं तो पतन होगा।
भारतीय संस्कृति में जिसका जीवन से सूर्य जैसा प्रकाश हो, सागर जैसी गंभीरता, चंद्र जैसा तेजस्वी हो उसे ही महत्व देती है। युवाचार्य महेन्द्रऋषि महाराज का जीवन भी ऐसा ही तेजस्वी है। उन्होंने सात वर्ष की उम्र में आचार्य आनन्दऋषि महाराज की शरण में आए और सेवा, ज्ञानार्जन, सभी कलाओं का ज्ञान प्राप्ति और दीक्षा ग्रहण कर बालमंजु भटेवरा से मुनि महेन्द्रऋषि बने। आचार्य शिवमुनि महाराज से उन्हें २०१५ में युवाचार्य पद प्राप्त हुआ। ऐसे महापुरुषों का जीवन विचार, वचन और व्यवहार शुद्धि से संपन्न है। उनके ५२वीं जयंती पर दीर्घस्वस्थ्य आयु और मंगलछाया सदैव श्रमणसंघ पर बनी रहे।
साध्वी उन्नतिप्रभा ने आयंबिल ओली आराधना पर पर पंचपरमेष्ठिी का महत्व बताते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति में जैन धर्म और नवकार महामंत्र का महत्वपूर्ण स्थान है। इसकी उपयोगिता को अन्य धर्मों और दर्शन ने भी स्वीकार कर अनुशरण किया जाता है।
नवपद की आराधना
सम्यक ज्ञान, सम्यक दर्शन और सम्यक चारित्र को मिलाकर पंच परमेष्ठी होता है। इन पंचपदों के स्मरण और जाप से आधि-व्याधि, दुख, संताप और कष्ट मिटते हैं, विपदाएं टलती है और आठ कर्मों का क्षय होकर व्यक्ति को इहलौकिक ही नहीं परलौकिक शांति मिलती है। नवपद के प्रथम पांच पदों में समस्त सिद्ध परमात्मा, अरिहंतप्रभु, आचार्यभगवंत, उपाध्याय और इस लोक समस्त साधु-साध्वियों को नमन करते हैं। शेष चार पदों में सम्यक ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप की आराधना होती है। इस प्रकार नवपद की आराधना होती है।
मैनासुंदरी के चारित्र का श्रवण
महापुरुषों का चारित्र दर्पण की तरह हमारी आत्मा में लगे दागों को दिखाकर दूर करता है, कर्मों का क्षय करता है। जब तक कर्म आबद्ध होते हैं कर्मों का खेल चलता रहता है, उस समय में भी नवपद आराधना से शूल भी फूल बन जाते हैं, सुख-संपत्ति मिलती है और रोग, शोक दूर होते हैं। भाग्य बदलना किसी के वश में नहीं है, स्वयं ही कर्म भोगने होते हैं। लेकिन जब पुण्य उदय में हो तब कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। उन्होंने श्रीपाल और मैनासुंदरी के चारित्र का श्रवण कराया। श्रीपाल के जीवन और मैनासुंदरी कर्मों के उदय से अनेकों कष्ट, विपदाओं का सामना करते हुए भी नवपद की आराधना से जीवन में आगे बढ़ते गए। साध्वी डॉ.हेमप्रभा ‘हिमांशुÓ ने पुच्छिशुणं स पुट साधना तथा विवेचन कराया।
नवकार महामंत्र की महिमा
युवाचार्य महेन्द्रऋषि महाराज के प्रति उमराव अर्चना चातुर्मास समिति के मंत्री शांतिलाल सिंघवी, गौतमचंद गुगलिया ने अपने भाव रखे। कल्याण चोरडिय़ा ने नवकार महामंत्र की महिमा भजन से सुनाई। नवकार महामंत्र का सजोड़े जाप किया गया। धर्मसभा में अनेकों श्रद्धालुओं ने उपवास, आयंबिल आदि तपस्याओं के पच्चखान लिए।

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