चुनाव आयोग के अनुसार ऐसे मतदाताओं की संख्या करीब 12 लाख से अधिक थी। लेकिन इस विकल्प का ज्यादा उपयोग हुआ नहीं। बहरहाल, मतगणना शुरू होने से पहले गिने गए डाकमतों की कुल संख्या 5.64 लाख बताई गई। इन वोटों ने एआईएडीएमके को काफी चोट पहुंचाईं।
746 वोटों से जीत दुरै मुरुगन
बतौर उदाहरण डीएमके के वयोवृद्ध नेता और महासचिव दुरै मुरुगन को हांफते हुए जीत नसीब हुई। ईवीएम काउंटिंग में उनको 83 हजार 243 जबकि निकटतम प्रतिद्वंद्वी एआईएडीएमके के वी. रामू को 83 हजार 675 वोट मिले थे। रामू अपनी जीत मान रहे थे लेकिन दुरै मुरुगन को मिले 1897 डाकमतों ने उनकी जीत तय कर दी। रामू को केवल 719 डाकमत ही मिले और वे 746 वोट के अंतर से हार गए।
शायद जीत जाते मंत्री केसी वीरमणि
जोलारपेट से वाणिज्यिक कर मंत्री केसी वीरमणि को 1091 मतों के अंतर से हार मिली। वे डीएमके प्रत्याशी के. देवराजी से ईवीएम की गिनती में 872 वोट से पीछे थे। डाकमतों में देवराजी की जीत का अंतर और बढ़ गया उनको 1253 जबकि वीरमणि को 1034 वोट ही मिले। निवर्तमान सीएम पलनीस्वामी के अलावा निवर्तमान उपमुख्यमंत्री ओ. पन्नीरसेल्वम हो, एसपी वेलुमणि हो अथवा केए सेंगोट्टयन किसी भी मंत्री को विपक्षी उम्मीदवार की तुलना में डाकमत कम मिले।
सरकारी कर्मचारियों की नाराजगी
विपक्षी दलों के प्रत्याशियों को अधिक डाकमत मिलने का आशय स्पष्ट है कि राज्य सरकार से सरकारी कर्मचारी असंतुष्ट थे। पिछले पांच सालों में बिजली विभाग, परिवहन विभाग, शिक्षकों व आंगनबाड़ी कर्मचारियों सहित अन्य महकमों के कर्मचारियों ने कई बार प्रदर्शन किया। परिवहन विभाग के सेवानिवृत्त कर्मचारियों को उनको परिलाभ तक सरकार नहीं चुका पाई थी। परिवहन मंत्री रहे एमआर विजयभास्कर की बड़ी हार के पीछे एक कारण यह भी था।