प्रतिशोध की आग में जलना तुच्छता की निशानी है। जहां समता है वहां अहिंसा है। अहिंसा में ही विश्व की समस्या का समाधान है। प्रभु महावीर की अहिंसा का तात्पर्य है कि किसी के प्रति आक्रामक नहीं बनना और क्रूरतापूर्ण बर्ताव नहीं करना। प्राणिमात्र के अस्तित्व को सम्मान के साथ स्वीकार करना चाहिए। भगवान महावीर के अनेकान्त सिद्धान्त के परिपालन से घर, परिवार और समाज के वातावरण में समरसता और खुशहाली लाई जा सकती है।
जहाँ एकांतवादी दृष्टिकोण है वहां स्वयं को सही और अन्य को गलत समझने की वृत्ति है जो कि संघर्ष और हिंसा का प्रमुख कारण है। दूसरों के विचारों को सहन करना और समादर करना ही अहिंसक जीवन जीने की अनिवार्य शर्त है। व्यक्ति को वैचारिक सहिष्णुता के सद्गुण का विकास करना चाहिए । भगवान महावीर को अपने आराध्य के रूप में मानने वालों को उनके सिद्धांत के अनुरूप अपनी जीवन शैली बनानी चाहिए।