अनुच्छेद 142 के तहत हुई रिहाई
जस्टिस एल नागेश्वर राव और बीआर गवई की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा, जेल में उनके संतोषजनक आचरण, मेडिकल रिकॉर्ड, जेल में हासिल की गई शैक्षणिक योग्यता और दिसम्बर 2015 से तमिलनाडु के राज्यपाल के समक्ष अनुच्छेद 161 के तहत दायर उनकी दया याचिका की लंबित होने के कारण शक्तियों का प्रयोग करते हुए अनुच्छेद 142 के तहत हम याचिकाकर्ता को मुक्त होने का निर्देश देते हैं।
कोर्ट ने आगे कहा कि पिछले साल 25 जनवरी को पेरारिवलन की दया याचिका को राष्ट्रपति के पास भेजने के राज्यपाल के फैसले का कोई संवैधानिक समर्थन नहीं था। पीठ ने कहा, राज्यपाल राज्य मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से बंधे हैं। उन्होंने कहा, मारु राम मामले (1980) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार राष्ट्रपति को याचिका सौंपने के फैसले का कोई संवैधानिक समर्थन नहीं है, जिसमें राज्यपाल ने कहा था कि राज्यपाल राज्य मंत्रिमंडल की सहायता और सलाह का पालन करना होगा और यदि वह निर्णय के लिए सहमत नहीं है, तो राज्यपाल को मामले को पुनर्विचार के लिए राज्य को वापस भेजना होगा।
पेरारिवलन को जून 1991 में गिरफ्तार किया गया था। इस साल 9 मार्च को शीर्ष अदालत ने जमानत पर रिहा कर दिया था। पेरारिवलन के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने तर्क दिया था कि दया याचिका संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत दायर की गई थी, जो क्षमादान देने की राज्यपाल की शक्ति से संबंधित है। उन्होंने अपनी दलील में कहा कि अगर इस तरह के तर्क को स्वीकार किया जाना है तो यह राज्यपाल द्वारा अतीत में दिए गए क्षमा के सभी फैसलों पर सवाल उठने लगेंगे। पेरारिवलन ने 30 दिसम्बर, 2015 को तमिलनाडु के राज्यपाल के समक्ष दया याचिका दायर की थी और उन्होंने कहा कि पांच साल तक राज्यपाल ने ऐसी कोई आपत्ति नहीं जताई। उन्होंने अपनी क्षमादान पर फैसला करने में देरी को लेकर 2016 में शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था।
क्या हुआ था 1991 में
बता दें कि राजीव गांधी की चेन्नई के पास श्रीपेरुम्बदूर में एक चुनावी अभियान रैली के दौरान हुए बम विस्फोट में जान चली गई थी। विस्फोट के सटीक विवरण आज तक अस्पष्ट हैं। हालांकि जांच में यही सामने आया कि ब्लास्ट उस समय हुआ, जब राजीव गांधी मंच पर जा रहे थे और रास्ते में शुभचिंतकों और समर्थकों से मिल रहे थे।