पूजन भक्ति के पावन भाव आत्मा को परमात्मा से जोडऩे वाले होते हैं। बीणा का तार किसी भी छोर से टूट जाए तो संगीत पैदा नहीं हो सकता। इसी प्रकार भक्ति रूपी वीणा का तार आत्मा से टूट जाए तो परमात्मा से अध्यात्म साधना का आत्मीय संगीत पूर्ण नहीं होगा। उन्होंने विधान कर्ता परिवारों, विधान संयोजकों, इंद्र-इंद्राणियो एवं धर्म प्रभावना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वालों को साधुवाद देते हुए कहा आप सबके सद्प्रयास से भगवान शांतिनाथ के दिव्य एवं पावन दरबार में शांतिनाथ महामंडल विधान के माध्यम से जो धर्म का प्रकाश जन-जन तक पहुंचा है वह आज का सद्प्रयास कल का दिव्य प्रकाश बनेगा। जिनका वर्तमान अतीत से प्रेरणा लेकर आज को सार्थक करता है उन्हीं का कल सुखद एवं प्रकाशमान एवं सुन्दर होता है।
उन्होंने कहा विकृतियों पर प्रहार कर संस्कृति का सत्कार करना धर्म एवं धर्मात्मा का ध्येय होना चाहिए। इसी ध्येय की सिद्धि में मानवता सुख शांति पाती है। विधान पूर्ण हो गया पर जीवन से धर्म नहीं जाना चाहिए क्योंकि धर्म के जाते ही जीवन प्राण हीन एवं दुखी हो जाता है। भगवान को सोने चांदी की वेदी में विराजमान करना आसान है, पर दिल की वेदी में विराजमान करना आसान नहीं है। इस विधान में भक्तों के दिल की वेदी पर भगवान विराजमान हुए यही इस विधान की विशेषता है।