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चेन्नई

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, सुनवाई के लिए तय करें जज

राज्य के मंत्रियों संबंधी स्वत: संज्ञान मामलों में मद्रास हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को निर्देश

चेन्नईFeb 05, 2024 / 09:31 pm

Santosh Tiwari

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, सुनवाई के लिए तय करें जज

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, सुनवाई के लिए तय करें जज

चेन्नई. उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को मद्रास हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को निर्देश दिया कि वे तमिलनाडु के मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार मामलों में शुरू किए गए स्वत: संज्ञान केसों की सुनवाई के लिए एक जज तय करें।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश ऋषिकेश रॉय और प्रशांत कुमार मिश्रा की सदस्यता वाली न्यायिक पीठ ने डीएमके के राजस्व व आपदा प्रबंधन मंत्री केकेएसएसआर रामचंद्रन की अपील पर सुनवाई की। यह अपील मद्रास हाईकोर्ट के न्यायाधीश एन. आनंद वेंकटेश के स्वत: संज्ञान समीक्षा आदेशों पर थी, जो उन्होंने अपीलकर्ता के अलावा तमिलनाडु के वित्त मंत्री तंगम तेन्नअरसु के खिलाफ, सुनाए थे।
शीर्ष न्यायालय ने कहा, मुख्य न्यायाधीश फैसला करेंगे। वे अपने विवेकाधीन जज को सुनवाई के लिए नियुक्त करेंगे। चीफ जस्टिस ही ‘ मास्टर ऑफ रोस्टर’ होते हैं, न्यायाधिकार क्षेत्र संबंधी निर्णय निश्चित रूप से उनके कार्यालय से होना चाहिए।
दोनों पक्षों की दलीलें

सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने सुप्रीम कोर्ट को सूचना दी कि इस मामले में मुख्य न्यायाधीश की अनुमति मिल चुकी है। मंत्री के अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने इसका विरोध करते हुए कहा कि रिपोर्ट के अनुसार स्वत: संज्ञान समीक्षा के अधिकार के उपयोग से पहले अनुमति नहीं ली गई थी। जवाब में जस्टिस रॉय ने कहा कि हम इस पर निर्णय हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पर छोड़ते हैं। हम इस पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते हैं।
सीजे के पास अधिकार
हालांकि न्यायाधीश ने यह भी माना कि आदर्श तो यही होता कि जज (जस्टिस वेंकटेश) स्वत: संज्ञान मामले को आवंटित करने की सीजे से मांग करते, लेकिन इसके बजाय केस को सूचीबद्ध कर दिया गया। हमारा विचार है कि स्वत: संज्ञान मामलों पर मुख्य न्यायाधीश को विचार करना चाहिए। चाहें तो वे स्वयं इसकी सुनवाई कर सकते हैं अथवा किसी जज को नियुक्त कर सकते हैं। उसके बाद केस के गुण-दोषों के आधार पर कार्यवाही चलेगी। हमारे उक्त विचार को संबंधित जज पर टिप्पणी नहीं समझा जाए।
मामले की पृष्ठभूमि

तेन्नअरसु और रामचंद्रन दोनों ही द्रमुक शासनकाल में 2006 से 2011 तक मंत्री थे। वे मुख्यमंत्री स्टालिन की कैबिनेट के सदस्य भी हैं। पूर्व अवधि में मंत्री रहते दोनों पर पद का दुरुपयोग कर आय से अधिक सम्पत्ति अर्जित करने का आरोप है, जबकि दोनों ने इसका खंडन किया है। दोनों ही मंत्रियों को पिछले साल निचली अदालत ने बरी कर दिया था, जिस पर जस्टिस एन. आनंद वेंकटेश ने स्वत: संज्ञान समीक्षा शुरू की थी।

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