माना जाता है कि इस मूर्ति को तमिलनाडु के एक मंदिर से चुराया गया था। जिसके बाद संत तिरुमानकई अलवार की यह मूर्ति वर्ष 1967 के साउथबेई की नीलामी में नीलाम की गई और इस तरह आखिरकार यह प्रतिमा ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के एश्मोलीन संग्रहालय पहुंची। इस नीलामी में जेआर बेलमॉन्ट नाम के एक ब्रिटिश कलेक्टर के कलेक्शन की नीलामी की गई थी।
रिपोट्र्स के अनुसार एश्मोलीन संग्रहालय ने कहा कि उसे इस प्राचीन मूर्ति के मूल स्थान के बारे में एक स्वतंत्र शोधकर्ता ने पिछले साल नवंबर में सतर्क किया, जिसके बाद उसने भारतीय उच्चायोग को इस बारे में जानकारी दी।
एश्मोलीन संग्रहालय द्वारा सोमवार को जारी एक बयान में कहा गया, (इंस्टीट्यूट फ्रैंकाइस डी पांडिचेरी एंड द इकोल फ्रैंकाइश डी एक्सट्रीम-ओरिएंट) के फोटो अभिलेखागार में शोध में यही कांस्य प्रतिमा वर्ष 1957 में तमिलनाडु के श्री सौंदरराजनपेरुमाल कोविल मंदिर में नजर आई। हालांकि, इस मूर्ति के बारे में आधिकारिक रूप से कोई दावा नहीं किया गया था।
संग्रहालय ने गत वर्ष ही आधिकारिक रूप से इस मामले में भारतीय उच्चायोग का ध्यान आकर्षित किया था और उनसे इस बारे में पुलिस रिकॉर्ड समेत अन्य जानकारियां थी।
ब्रिटेन में भारतीय उच्चायुक्त रुचि घनश्याम ने संग्रहालय द्वारा उठाए गए कदम पर संज्ञान लिया और आगे की कार्रवाई के लिए मामले को भारतीय अधिकारियों के समक्ष भेजा। इसके बाद इस महीने के शुरू में संग्रहालय से इस मूर्ति को लौटाने को लेकर औपचारिक अनुरोध किया गया। भारत की तरफ से इस बारे में और जानकारी दिए जाने के बाद संग्रहालय अब आगे की जांच कर रहा है।