पलनीस्वामी की ओर से जारी बयान में कहा गया, ‘एनईपी-2020 (NEW Education Policy) में तीन भाषाओं वाला फॉर्मूला निराशाजनक है। मैं प्रधानमंत्री (PM Modi) से अपील करता हूं कि इस पर फिर से विचार किया जाए। राज्यों को नीतियों को लागू करने दिया जाए। हम दशकों से दो भाषाओं की नीति को अपना रहे हैं। इसमें आगे कोई बदलाव नहीं होगा। पलनीस्वामी (Palaniswamy) ने पूर्व दिवंगत मुख्यमंत्रियों अण्णा दुरै, एमजीआर और जयललिता का जिक्र करते हुए हिंदी को जबरन लागू नहीं करने की बात कही। साथ ही उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस विषय पर फिर से विचार करने का भी आग्रह किया।
मुख्यमंत्री ने 1965 में तमिलनाडु में छात्रों द्वारा हिंदी के विरोध में किए गए प्रदर्शनों का भी जिक्र किया जब कांग्रेस सरकार की ओर से हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने की कोशिश की गई थी।
इससे पहले केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने रविवार को कहा था कि किसी भी राज्य पर केंद्र कोई भाषा थोपने की कोशिश नहीं करेगी। तमिलनाडु में नई शिक्षा नीति का विरोध करने वालों का कहना है कि केन्द्र सरकार इसके माध्यम से हिन्दी और संस्कृत को थोपना चाहती है। निशंक ने इस विवाद पर रविवार को तमिल भाषा में ट्वीट कर कहा, ‘मैं एकबार फिर इस बात पर जोर देना चाहूंगा कि केन्द्र सरकार किसी राज्य पर कोई भाषा नहीं थोपेगी।’
इससे पहले एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली डीएमके पार्टी और कई विपक्षी पार्टी नई शिक्षा नीति का विरोध कर चुकी हैं और इसके प्रस्ताव पर एक बार और विचार करने के लिए कह रही हैं। शनिवार को डीएमके प्रमुख ने कहा कि इस नीति के जरिए गैर हिंदी राज्यों में गैर-कानूनी तौर पर हिंदी और संस्कृत भाषा को थोपने का काम किया जा रहा है।
स्टालिन का आरोप
एम.के. स्टालिन ने आरोप लगाया कि अगर यह नीति लागू की गई तो एक दशक में शिक्षा सिर्फ कुछ लोगों तक सिमट कर रह जाएगी। उन्होंने नई शिक्षा नीति बहुमुखी प्रतिभा का विकास सुनिश्चित करेगी के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दावे पर सवाल उठाते हुए, सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक से भी इसका विरोध करने को कहा है। वहीं, नई शिक्षा नीति को सरकार जल्द से जल्द इसे जमीन पर उतारना चाहती है। आने वाले दिनों में शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक खुद सभी राज्यों के शिक्षा मंत्रियों के साथ इसको लागू करने को लेकर चर्चा करेंगे।