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चेन्नई

जैसा ध्यान करेंगे वैसा ही होगा भविष्य

उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने ने मेडिटेशन और ध्यान के बारे में बताते हुए कहा ध्यान बीमारी को दूर करने का भी उपाय है।

चेन्नईDec 13, 2018 / 01:59 pm

Ashok

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जैसा ध्यान करेंगे वैसा ही होगा भविष्य

चेन्नई. थाउजंड लाइट स्थित अशोक गेलड़ा के निवास पर विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने ने मेडिटेशन और ध्यान के बारे में बताते हुए कहा ध्यान बीमारी को दूर करने का भी उपाय है। जितनी भी बीमारियां हमारे पास हैं परमात्मा के अनुसार इनका सबका कारण ध्यान है और इनकी मुक्ति का कारण भी ध्यान है। किसी बगुले का ध्यान होता है शिकार और किसी साधक का ध्यान होता है परमात्मा। जब-जब हम शिकारी बनते हैं और शिकार करते हैं, तब-तब हम स्वयं के लिए बीमारियों और मुश्किलों को आमंत्रण देते हैं। एक पल के लिए जितने भी जीव इस संसार में हैं ध्यान शून्य नहीं है। जिसका वह ध्यान करता है वह उसे अवश्य मिलता है। ध्यान और मेडिटेशन हमारी आत्मा का स्वभाव है। यह न हो तो किसी भी आत्मा के लिए कर्मबंध ही न होता। बिना सोच और तक और आवश्यकता के किया गया ध्यान संकट को आमंत्रण देता है। दुखी व्यक्ति का यही सबसे बड़ा दुख है कि वह दुख का ही ध्यान करता है। जिसका आप ध्यान करोगे वही सत्य होगा, वही आपको प्राप्त होगा।
जिस समय आप अपना वास्तविक स्वरूप भूलकर किसी हीरो या हीरोइन के रूप में स्वयं को देखते हो तो स्वयं को नरक में डालने का प्रयास करते हो। परमात्मा ने कहा है कि जो वो है ही नहीं उसके जैसा बनने का प्रयास करना और सोचना स्वयं के लिए नरक का रास्ते पर ले जाना है। बिना एक्शन के रिजल्ट पाने की तकनीक को मेडिटेशन कहते हैं।
यह बीमारी भी है और दवा भी। आपको कौन सा करना है यह पहचानना है। इसीलिए बार-बार कहा जाता है कि अपने अपमान, दुश्मन, असफलता और दुख को याद मत करो। जब जब ये याद आएंगे तो वे आपके जीवन में पुन: आएंगे ही। इसीलिए जीवन में बार-बार समस्याएं आती रहती है। परमात्मा इसीलिए कहते हैं कि आर्तध्यान और रौद्रध्यान करने वाले के जीवन में परेशानियां आती ही रहती हैं। किसी भी दुर्घटना को यादों में मत रखना।
जो स्वयं और दूसरों को परमात्मा के रूप में देखता है वही दूसरों को परमात्मा बनाने में समर्थ होता है। भगवान महावीर ने चंडकोशिक को पूर्वजन्म के योगी के रूप को देखा और चंडकोशिक का योगी का रूप उजागर हुआ और वह सुधर गया। यह नजर का सामथ्र्य है, इसका उपयोग करें। जीवन का यही सूत्र है कि अपनी दृष्टि को पवित्र और मंगलमय बनाएं। यह विज्ञान भी है और अध्यात्म भी है। ऐसी दृष्टि यदि स्वयं और परिवार के प्रति हो जाए तो उन्हें और कहीं जाने की जरूरत नहीं होगी। आपको चिंतन करने की जरूरत है कि ऐसा ध्यान करके आप अपना कैसा भविष्य निर्माण कर रहे हैं।

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