scriptसिर सांठे रूंख रहे तो भी सस्तो जांण… | vishnoi | Patrika News
चेन्नई

सिर सांठे रूंख रहे तो भी सस्तो जांण…

अनूठा है विश्नोई समाज का वन्य जीव प्रेम, प्रवासी गृह क्षेत्र जाने पर लग जाते हैं वन्य प्राणियों की सेवा में- सदियों से चली आ रही परम्परा व आस्था को निभा रहे- परिवार की तरह पालते हैं वन्य जीवों को- विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष

चेन्नईJun 04, 2021 / 09:59 pm

ASHOK SINGH RAJPUROHIT

vishnoi

vishnoi

चेन्नई. सिर सांठे रूंख रहे तो भी सस्तों जांण। यानी अगर सिर कटने से वृक्ष बच रहा हो तो ये सस्ता सौदा हैं। जम्भेश्वर भगवान ने विश्नोई समाज की शुरुआत की थी। विश्नोई समाज के लोग 29 नियमों का पालन करते हैं जिसमे जीवरक्षा और पर्यावरण रक्षा प्रमुख हैं और आज तक विश्नोई समाज नियमों का पालन करता आया है। अमृता देवी का बलिदान और विश्नोई समाज का पर्यावरण के लिए बलिदान विश्नोई समाज के लिए गर्व का विषय है। विश्नोई समाज के लोग देश- दुनिया में जहाँ भी हैं पर्यावरण के प्रति उनमें विशेष स्नेह हैं। मुख्यरूप से विश्नोई समाज के लोग राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा ,पंजाब, गुजरात, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में बसे हैं लेकिन सबका मूल राजस्थान ही है। हिरणों को अपने परिवार का सदस्य मानकर वर्षों से सेवा करने वाले बिश्नोई समाज का वन्यजीव प्रेम देखने के लिए सात समंदर पार से लोग विशेष तौर पर आने लगे हैं। वन्यजीवों की रक्षा और पेड़ पौधों के संरक्षण के लिए देश और दुनिया में विख्यात बिश्नोई समाज में हिरणों को परिवार के बच्चों की तरह रखना उनकी दिनचर्या का हिस्सा है। बिश्नोई समाज के लोग कहते हैं कि अन्य समाजों को भी वन्यजीवों की रक्षा और पेड़-पौधों के संरक्षण की प्रेरणा लेकर काम करना चाहिए। बिश्नोई समाज के लोग बकायदा इन जीव जंतुओं से ना केवल अपार प्रेम करते हैं बल्कि इनकी रक्षा के लिए खुद की जान तक देने से नहीं चूकते।
खेजड़ी के पेड़ों को बचाने के लिए 363 विश्नोइयों ने दिया था बलिदान
18वीं सदी की बात है जब मारवाड़ यानी जोधपुर रियासत में महाराजा अभय सिंह का राज था। राजा ने अपने महल के लिए सिपाहियों को लकड़ी लाने को भेजा। सिपाही खेजड़ली गांव पहुंच गए और खेजड़ी के वृक्ष काटने लगे। वहां मौजूद विश्नोई समाज की एक महिला अमृतादेवी ने उन्हें रोका। सिपाही नहीं माने तो वह महिला पेड़ से चिपक गई, लेकिन सिपाहियों ने उस पर भी कुल्हाड़ी चला दी। यह देखकर महिला की बेटियां भी अन्य पेड़ों से चिपक गई, जिन्हें भी सिपाहियों ने मार डाला। एक-एक करके समाज के 363 लोग पेड़ों से चिपकते रहे और सिपाही उनकी जान लेते रहे। यह बात जब राजा को पता चली तो वे दुखी हुए और खेजड़ली आए और गांव वालों से माफी मांगी। साथ ही यह वादा भी किया कि अब जिस इलाके में भी विश्नोई समाज के लोग रहेंगे वहां पेड़ नहीं काटे जाएंगे। तब से पेड़-पौधों के संरक्षण की यह परंपरा चली आ रही है। अमृता विश्नोई जिसने पेड़ के बदले सिर कटाना बेहतर समझा। एक साधारण महिला की असाधारण कहानी जिसने दुनिया को पर्यावरण संरक्षण का ऐसा सन्देश दिया जिसे दुनिया कभी भुला नहीं पाएगी। खेजडली आज विश्व में पर्यावरण संरक्षण के लिए एक मिसाल है। पूरी दुनिया में पर्यावरण संरक्षण को लेकर इतनी बड़ी कुर्बानी का उल्लेख और कहीं नहीं मिलता।
……………..

पर्यावरणप्रेमी रहा है विश्नोई समाज
विश्नोई समाज प्राचीन समय से ही वन्य जीव प्रेमी रहा है। वन्य जीवों की हत्या किसी भी सूरत में होने नहीं देता। वन्य जीवों को अपने परिवार के सदस्यों की तरह पालन करता है। यही वजह है कि जहां विश्नोई बाहुल्य इलाके हैं वहां हिरण एवं अन्य वन्य जीव स्वच्छंद रूप से विचरण करते नजर आते हैं। वन्य प्राणियों की रक्षा में हमेशा तत्पर रहने वाला विश्नोई समाज पर्यावरणप्रेमी है। पर्यावरण से खास लगाव के चलते ही पेड़-पौधों की रक्षा में भी सदैव हाथ बंटाता रहा है। प्रवासी भले ही दक्षिण एवं अन्य प्रांतों में बिजनस कर रहे हैं लेकिन जब भी गांव आते हैं प्रकृति की गोद में खो जाते हैं।
– हनुमान खीचड़ विश्नोई, चेन्नई प्रवासी व राजस्थान के जालोर जिले के कोटड़ा मूल के।
……………………….

पेड़ों को बचाने में आगे रहा है विश्नोई समाज
आज अमृतादेवी विश्नोई के त्याग को कौन नहीं जानता। पेड़ों की रक्षार्थ अपनी जान दे दी। आज भी विश्नोई समुदाय में पेड़-पौधों एवं वन्य जीव-जंतुओं की रक्षा का भाव कूट-कूट कर भरा है। हिरणों को हम वन्य जीव की तरह नहीं बल्कि घरेलु सदस्य की तरह पालन करते आ रहे हैं। हमारे विश्नोई समाज के 29 नियमों में यह भी शामिल है। पर्यावरण व प्रकृति का विशेष ध्यान रखते हैं। पेड़ों को बचाने के लिए ही विश्नोई समाज के 363 लोगों ने अपना बलिदान दे दिया था।
राजूराम सोऊ, सह सचिव, श्री गुरु जम्भेशवर विश्नोई ट्रस्ट, चेन्नई।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो