पर्यावरणप्रेमी रहा है विश्नोई समाज
विश्नोई समाज प्राचीन समय से ही वन्य जीव प्रेमी रहा है। वन्य जीवों की हत्या किसी भी सूरत में होने नहीं देता। वन्य जीवों को अपने परिवार के सदस्यों की तरह पालन करता है। यही वजह है कि जहां विश्नोई बाहुल्य इलाके हैं वहां हिरण एवं अन्य वन्य जीव स्वच्छंद रूप से विचरण करते नजर आते हैं। वन्य प्राणियों की रक्षा में हमेशा तत्पर रहने वाला विश्नोई समाज पर्यावरणप्रेमी है। पर्यावरण से खास लगाव के चलते ही पेड़-पौधों की रक्षा में भी सदैव हाथ बंटाता रहा है। प्रवासी भले ही दक्षिण एवं अन्य प्रांतों में बिजनस कर रहे हैं लेकिन जब भी गांव आते हैं प्रकृति की गोद में खो जाते हैं।
– हनुमान खीचड़ विश्नोई, चेन्नई प्रवासी व राजस्थान के जालोर जिले के कोटड़ा मूल के।
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पेड़ों को बचाने में आगे रहा है विश्नोई समाज
आज अमृतादेवी विश्नोई के त्याग को कौन नहीं जानता। पेड़ों की रक्षार्थ अपनी जान दे दी। आज भी विश्नोई समुदाय में पेड़-पौधों एवं वन्य जीव-जंतुओं की रक्षा का भाव कूट-कूट कर भरा है। हिरणों को हम वन्य जीव की तरह नहीं बल्कि घरेलु सदस्य की तरह पालन करते आ रहे हैं। हमारे विश्नोई समाज के 29 नियमों में यह भी शामिल है। पर्यावरण व प्रकृति का विशेष ध्यान रखते हैं। पेड़ों को बचाने के लिए ही विश्नोई समाज के 363 लोगों ने अपना बलिदान दे दिया था।
– राजूराम सोऊ, सह सचिव, श्री गुरु जम्भेशवर विश्नोई ट्रस्ट, चेन्नई।