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छतरपुर

9वीं-10वीं ईसवीं में बनाया गया शिव का अनूठा मंदिर, शिवलिंग पर चेहरे वाले दूल्हादेव शिव

950 से 1050 ईसवीं में चंदेल राजवंश के राजा कीर्तिवर्मन ने शिव को समर्पित मंदिर का निर्माण कराया था। जिसमें गर्भगृह के प्रवेश द्वार पर शिवलिंग पर शिव की आकृति उकेरी गई है। दूल्हा देव मंदिर भगवान शिव के 22 मंदिरों में से एक है।

छतरपुरMay 25, 2024 / 10:27 am

Dharmendra Singh

shiv temple

दूल्हा देव मंदिर खजुराहो का शिवलिंग

छतरपुर. दूल्हादेव मंदिर खजुराहो के विश्व प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। 950 से 1050 ईसवीं में चंदेल राजवंश के राजा कीर्तिवर्मन ने शिव को समर्पित मंदिर का निर्माण कराया था। जिसमें गर्भगृह के प्रवेश द्वार पर शिवलिंग पर शिव की आकृति उकेरी गई है। दूल्हा देव मंदिर भगवान शिव के 22 मंदिरों में से एक है। वसल नाम मंदिर के कई स्थानों पर खुदा हुआ है, यह अनुमान लगाया जाता है कि यह नाम मुख्य मूर्तिकार का है जिन्होंने मूर्तियां बनाई हैं। मंदिर को एक निर्वाणधारा मंदिर के रूप में वर्गीकृत किया गया है। चंदेलकाल के आखरी समय में बनाए गए इस मंदिर को खजुराहो की स्थापत्य और मूर्तिकला की अंतिम चमक कहा जाता है।इस मंदिर की विशेषता यह है कि अप्सराओं को दो- दो, तीन- तीन की टोली में दर्शाया गया है।

निरंधार प्रासाद शैली का मंदिर


निरंधार प्रासाद प्रकृति का यह मंदिर अपनी नींव योजना में समन्वित प्रकृति का है। मंदिर सुंदर प्रतिमाओं से सुसज्जित है। इसमें गंगा की चतुर्भुज प्रतिमा अत्यंत ही सुंदर ढ़ंग से अंकित की गई है। यह प्रतिमा इतनी आकर्षक एवं प्रभावोत्पादक है कि लगता है कि यह अपने आधार से पृथक होकर आकाश में उडऩे का प्रयास कर रही है। मंदिर की भीतरी बाहरी भाग में अनेक प्रतिमाएँ अंकित की गई है, जिनकी भावभंगिमाएं सौंदर्यमयी, दर्शनीय तथा उद्दीपक है। नारियों, अप्सराओं एवं मिथुन की प्रतिमाएं अंकित की गई है। मंदिर के बाहरी भाग की रथिकाओं में दक्षिणी मुख पर नृत्य मुद्रा में छ: भुजा युक्त भैरव, बारह भुजायुक्त शिव तथा एक अन्य रथिका में त्रिमुखी दश भुजायुक्त शिव प्रतिमा है। इसकी दीवार पर बारह भुजा युक्त नटराज, चतुर्भुज, हरिहर, उत्तरी मुख पर बारह भुजा युक्त शिव, अष्ट भुजायुक्त विष्णु, दश भुजा युक्त चौमुंडा, चतुर्भुज विष्णु गजेंद्रमोक्ष रूप में तथा शिव पार्वती युग्म मुद्रा में है।

भगवान शिव के रुपों को दर्शाता है खजुराहो का विश्वनाथ मंदिर


खजुराहो के पश्चिमी समूह के मंदिरों में विश्वनाथ मंदिर बेहद खास है। महाराज धंगदेव वर्मन द्वारा 1002-1003 ईसवीं में बनवाया गया यह मंदिर पंचायतन आकार में बना है, जिसमें चारों कोनों पर चार मंदिर बीच में स्थित मुख्य मंदिर को घेरे हुए हैं। भगवान शिव के समर्पित इस मंदिर का नामकरण शिव के एक और नाम विश्वनाथ पर किया गया है। मंदिर की लंबाई 89 फीट और चौड़ाई 45 फीट है। गर्भगृह में शिवलिंग के साथ-साथ केंद्र में नंदी पर आरोहित शिव प्रतिमा स्थापित की गई है। मंदिर की उत्तरी दिशा में स्थित शेर और दक्षिणी दिशा में स्थित हाथी की प्रतिमाएं काफ़ी सजीव लगती हैं। इनके अलावा एक नंदी की प्रतिमा भगवान की ओर मुंह किए हुए भी मौजूद है।

अनूठा है प्रतिमाओं का सौंदर्य


खजुराहो प्रतिमाओं का प्रथम परिचय विश्वनाथ मंदिर को देखने से मिलता है, क्योंकि सामने की ओर से आते हुए यह मंदिर पहले आता है। इस मंदिर में 620 प्रतिमाएं हैं। इस मंदिर में दो उप मंदिर, उत्तर-पूर्वी दक्षिण मुखी तथा दक्षिण पश्चिमी पूर्वोन्मुखी हैं। इन दोनों उप मंदिरों पर भी पट्टिका पर मिथुन प्रतिमाएं अंकित की गई हैं। इन मंदिरों के भीतर ही अद्र्धमंडप, मंडप, अंतराल, गर्भगृह तथा प्रदक्षिणापथ निर्मित है। त्रिभंग मुद्राओं में त्रिआयामी यौवन से भरपुर रसमयी अप्सराएं सारे विश्व की सुंदरियों को मुकाबले के लिए नियंत्रण दे रही हैं। मंदिर के द्वार शाखों पर मिथुन जागृतावस्था में है। इनके जागृतावस्था एवं सुप्तावस्था में कोई अंतर ही नहीं दिखाई देता है। मंडप की दीवार पर लगा अभिलेख चंदेल वंश के महान शासक धंग का है। इसमें संस्कृत में तैंतीस पंक्तियाँ हैं। यहाँ मंदिर में राजा धंग के समय से ही शिव मर्कटेश्वर प्राण प्रतिष्ठित हैं।

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