एमआरपी के दिशा निर्देश नहीं
सरकार ने 1990 में लीगल मेट्रोलॉजी विधान के तहत अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) पेश किया। खुदरा बिक्री के लिए रखे जाने वाले उत्पाद की पैकेजिंग पर एमआरपी की छपाई अनिवार्य कर दी गई। खुदरा विक्रेता निश्चित रूप से एमआरपी से कम पर उत्पाद बेच सकता है लेकिन एमआरपी से अधिक कीमत पर उत्पाद बेचना अपराध है। विडंबना यह है कि एमआरपी कैसे तय की जानी चाहिए, इस बारे में किसी भी दिशा-निर्देश नहीं है।
निर्माता मनमाने ढंग से तय करते एमआरपी
आज निर्माता मनमाने ढंग से एमआरपी तय करते हैं। एमआरपी अपारदर्शी है और उपभोक्ता को एमआरपी की संरचना के बारे में कोई जानकारी नहीं है। हमें ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं जहां उपभोक्ता ऐसी कीमत चुकाता है जिसका उत्पाद की योग्यता से कोई संबंध नहीं होता। उपभोक्ता प्रतिनिधि के रूप में हम मांग करते हैं कि एमआरपी संरचना निष्पक्ष पारदर्शी और आसानी से समझी जाने वाली होनी चाहिए। चूँकि किसी उत्पाद की एमआरपी अनुचित राशि पर निर्धारित की जाती है।
दवाइयों के मामले में लागत व बिक्री मूल्य का कोई पैमाना नहीं
एमआरपी तय करने में सरकार की कोई भूमिका नहीं होती इसलिए खासकर दवाइयों के मामले में उपभोक्ताओं को जबरदस्त लूटा जाता है। उपभोक्ता न तो चुनने के अपने अधिकार का प्रयोग कर सकता है और न ही लूट के बारे में जागरूक हो सकता है। लगभग 140 करोड़ उपभोक्ताओं की ओर से एबीजीपी ने केंद्र सरकार से उत्पाद की लागत (सीओपी), उत्पाद की पहली बिक्री मूल्य (एफएसपी) और एमआरपी के संबंध में एमआरपी को कॉनफिगऱ करके सभी उपभोक्ताओं को लाभ पहुंचाने वाला कदम उठाने का अनुरोध किया है।
एफएसपी से मिल सकती है राहत
एमआरपी की संरचना तैयार करने और उस पर अमल करने में समय लग सकता है। इस बीच सरकार पैक्ड उत्पादों पर एमआरपी के साथ एफएसपी (फस्र्ट सेल्स प्राइज) भी छापने का आदेश दे सकती है। उपभोक्ता जब खरीदारी करता है तो वह तर्कसंगत विकल्प चुन सकता है यदि उसे एफएसपी के बारे में जानकारी हो। एफएसपी को लागू करने से निर्माताओं और आयातकों पर अत्यधिक लागत नहीं आती है एवं उपभोक्ताओं को वास्तविक लाभ होगा। यह उपभोक्ता की पसंद के अधिकार का समर्थन करेगा। एबीजीपी ने इस मुद्दे को उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय, वित्त मंत्रालय के साथ उठाया है। एबीजीपी ने इस मुद्दे का अध्ययन करने और संसद के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए एक मसौदा विधेयक तैयार करने के लिए संसद सदस्यों को भी एक पत्र लिखा है।
इनका कहना है
ग्राहकों के हितों के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। एमआरपी के मुद्दे को बड़े स्तर पर उठाने की तैयारी कर रहे हैं। प्रत्येक उपभोक्ता के हित का सबसे बड़ा मुद्दा है।
संजू मिश्रा, ग्राहक पंचायत, छतरपुर