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छतरपुर

खेती में महिलाओं का बड़ा रोल, फिर किसान की तस्वीर में पुरुष ही क्यों!

खजुराहो लिट फेस्ट : भारत व भारतीयता का मुद्दा रहा हावी

छतरपुरJan 21, 2020 / 01:28 am

नितिन सदाफल

Big role of women in farming, then why only men in the picture of farmer!

Big role of women in farming, then why only men in the picture of farmer!

छतरपुर. सांस्कृतिक चेतना और धारदार चर्चाओं के साथ तीन-दिवसीय खजुराहो लिटरेचर फेस्टिवल सोमवार को सफलतापूर्वक संपन्न हो गया। भारतीय संस्कृति का उत्सव पूरी तरह से भारत और भारतीयता के नाम रहा। सम्मेलन के पहले दिन जहां मीडिया के धर्म पर जोरदार बहस की गई, वहीं दूसरा दिन प्रसिद्ध लोक गायिका सुश्री मालिनी अवस्थी के नाम रहा। रात्रि सत्र में उन्होंने कुछ लोकगीत गाकर दर्शकों की तालियां बटोरीं और अनेक गीतों की प्रांसगिकता को अपने अंदाज में मुखर किया।
अंतिम दिन भारत के ऐसे पिछड़े राज्यों की छवि को लेकर चिंता जताई गई, जिन्हें अक्सर ही अपमानित या उपेक्षित किया जाता है। इनमें उत्तर प्रदेश, बिहार, पूर्वोत्तर और कश्मीर, लद्दाख आदि उल्लेखनीय हैं, जिन्हें राष्ट्र की मुख्यधारा में लाने की आवश्यकता को रेखांकित किया गया। राज्यों, उनकी पहचान व राष्ट्रीयता के चर्चा सत्र में सुश्री आरती ऑपइंडिया के संस्थापक राहुल रौशन, एशियानेट न्यूज नेटवर्क के सीईओ अभिनव खरे और नागा सीजफायर मॉनीटरिंग ग्रुप के अध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल शोकीन चौहान ने भाग लिया। आरती ने जहां कश्मीरी पंडितों के दर्द की बात की, तो अभिनव खरे ने बिहारी संस्कृति और बिहारियों की पहचान के संकट को प्रमुखता से सामने रखा।
बीती रात का अंतिम सत्र बेहद दिलचस्प रहा, जिसमेें लोकगायिका मालिनी अवस्थी से जानी-मानी टॉक शो होस्ट सुश्री ऋचा अनिरुद्ध और चर्चित फिल्क ताशकंद फाइल्स के निर्देशक विवेक रंजन अग्निहोत्री ने हल्के-फुल्के अंदाज में बातचीत की। मालिनी ने ग्रामीण अंचलों में प्रचलित लोकगीतों को चर्चा के बीच-बीच में न सिर्फ गाकर सुनाया, बल्कि उन गीतों के गहरे अर्थ और मायने भी समझाए। उन्होंने कहा कि महिला सशक्तिकरण की बात बहुत की जाती है, लेकिन किसान की तस्वीर में सिर्फ पुरुष ही क्यों दिखाया जाता है, जबकि खेती-बाड़ी के कार्यों में आधे से अधिक योगदान महिलाओं का रहता है। पुरुष घर-बार छोडकऱ चला जाये तो उसे संन्यासी कहा जाता है, जबकि पति की अनुपस्थिति में महिलाएं जब घर चलातीं और बच्चे पालती हैं, तो उन्हें सम्मान का दर्जा क्यों नहीं दिया जाता है।

लोकगीतों में गारी बहुत लोकप्रिय होती थी
लोकगायिका ने कहा कि पुराने समय के लोकगीतों में गारी बहुत लोकप्रिय होती थीं, जिनके माध्यम से महिलाएं अपने मन की पीड़ा और फस्ट्रेशन को बाहर निकाल देती थीं, जबकि आज लोग अपने मन की बात किसी को नहीं कह पाते और फलस्वरूप तनाव व अवसाद के शिकार हो जाते हैं। उनके हिसाब से महिलाओं ने ही अभी तक भारतीय संस्कृति को बचाए रखा है, वर्ना पुरुष वर्ग तो हमेशा से ही माताओं और पत्नियों का यह कह कर मजाक उड़ाता रहा है कि क्या पूजा पाठ लगा रखा है या लो, शुरू हो गया इनका व्रत-उपवास। कार्यक्रम के अंत में लोकनीति के संस्थापक एवं खजुराहो साहित्य उत्सव के संचालक सत्येंद्र त्रिपाठी ने सभी मेहमानों का शुक्रिया अदा किया और अगले वर्ष फिर से आने का आमंत्रण दिया।

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