scriptफोरलेन के लिए अधिग्रहित सरकारी जमीन पर बना दिया निजी लोगों के नाम 1 करोड़ 70 लाख का मुआवजा | Compensation of 1 crore 70 lakh in the name of private people made | Patrika News
छतरपुर

फोरलेन के लिए अधिग्रहित सरकारी जमीन पर बना दिया निजी लोगों के नाम 1 करोड़ 70 लाख का मुआवजा

छतरपुर पटवारी मौजा में पन्ना रोड पर झांसी खजुराहो फोरलेन के लिए अधिग्रहित हुई जमीनमहाराजा भवानी सिंह जू देव के नाम का बेजा इस्तेमाल कर घास जमीन लोगों ने बना ली थी निजी

छतरपुरFeb 17, 2020 / 09:02 pm

Dharmendra Singh

Land acquired for Jhansi Khajuraho Fourlane on Panna Road in Chhatarpur Patwari Mauja

Land acquired for Jhansi Khajuraho Fourlane on Panna Road in Chhatarpur Patwari Mauja

छतरपुर। शहर से गुजर रहे झांसी खजुराहो फोरलेन के लिए पन्ना रोड पर सरकारी जमीनों के अधिग्रहण के लिए निजी लोगों के नाम मुआवजा बना दिया गया है। सरकारी जमीन के बदले निजी लोगों के नाम 1 करोड़ 70 लाख का मुआवजा बनाया गया है। ये वे लोग हैं जिन्होंने महाराजा भवानी सिंह जू देव की वसीयत व दान पत्र के आधार पर शासन की घास जमीन को वर्ष 2005 के बाद निजी भूमि सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज कराया है। जबकि महाराजा 14 दिसंबर 1989 में तहसीलदार छतरपुर को लिखित में दे चुके थे, कि उन्होंने कोई जमीन न बेची, न बेचने के लिए किसी को अधिग्रहित किया और न लेख कराई है। इसके अलावा ये जमीनें राजस्व मंडल ग्वालियर के 1984 के आदेश व हाईकोर्ट के 1996 के फैसले में सीलिंग के तहत शासन के नाम दर्ज करने के आदेश भी है। इसके वाबजूद वर्ष 2015 में निजी लोगों के नाम मुआवजा बनाया गया है। जिसका अब वितरण शुरु हो गया है।
ये है जमीन का इतिहास
वर्ष 1939-40 में छतरपुर पटवारी मौजा में हुए बंदोवस्त के रिकॉर्ड के अनुसार खसरा नंबर 3664 कुल रकबा 156 एकड़ घास दर्ज है । वहीं खसरा नंबर 3704 कुल रकवा 21 एकड़ घास दर्ज है। रिसायतकाल में इस जमीन पर महाराजा छतरपुर भवानी सिंह जू-देव की गो-शाला थी। जो राजपाट खत्म होने के बाद कुछ हिस्सा चरोखर व कुछ हिस्सा घास मध्यप्रदेश शासन के रूप में दर्ज हुई। कुल रकबा 270 एकड़ जमीन गोवंश के लिए के लिए मध्यप्रदेश शासन के नाम बंदोबस्त में दर्ज की गई थी, उसी जमीन का हिस्सा खसरा नंबर 3664 व 3704 भी है। वर्ष 1958-59 की खतौनी की नकल की सत्यापित कॉपी में भी जमीन चरनोई मध्यप्रदेश शासन के नाम दर्ज है। लेकिन वर्ष 2005 के बाद महाराजा भवानी सिंह जू देव के अपंजीकृत दान व वसीयत पत्रों के आधार पर सरकारी रिकॉडऱ् में चरोखर जमीन को निजी लोगों के नाम दर्ज किया गया। दान व वसीयत वर्ष 1972, 1993 में लेख होना बताकर वर्ष 2005 के बाद सरकारी रिकॉर्ड में लोगों ने अपने नाम चढ़वाए।
सरकारी जमीन के बनाए पांच प्रकरण
झांसी खजुराहो फोरलेन के लिए जमीन अधिग्रहण के लिए खसरा नंबर 3664/1, 3664/मिन/1/क, 3664/1/मिन/5/1, 3664/1/मिन/३/1 और 3664/3 कुल रकबा 10 एकड़ केे लिए 1 करोड़ 70 लाख 29 हजार 306 रुपए का मुआवजा बनाया गया है। जबकि बंदोवस्त रिकॉर्ड के अनुसार इन खसरा नंबर की जमीनें शासन की हैं। राजस्व मंडल ग्वालियर व हाईकोर्ट भी सीलिंग के प्रकरणों में इन जमीनों को शासन के नाम चढ़ाने के आदेश दिए थे। ऐस में सवाल ये उठता है जब ये जमीनें सीलिंग के प्रकरण के बाद महाराज भवानी सिंह जू देव की मिलकीयत नहीं मानी गई तो उनके नाम व अपंजीकृत दान व वसीयत का बेजा इस्तेमाल करके लोगों के नाम दर्ज क्यों की गई। निजी लोगों के नाम सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज करने की गड़बड़ी का लाभ उठाकर ही निजी लोगों के नाम मुआवजा बनाया गया और कुछ मुआवजा राशि का वितरण शुरु कर दिया गया है।
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