ग्रामीणों के अनुसार कुम्हार टोली निवासी मुन्नीलाल रैकवार के चार संतान प्रकाश,कल्लू, गौरा और तिजीया हैं। कल्लू रैकवार ने अपनी पुत्री तिजिया की शादी छतरपुर जिले के बड़ामलहरा में की थी। शादी के बाद माता पिता सहित दोनों भाइयों की मौत हो चुकी थी और बहन गौरा से तिजीया के अच्छे संंबंध नहीं थे। तिजीया ने शादी के बाद दो पुत्रियों को जन्म दिया। तभी लड़का न होने पर ससुराल पक्ष के लोगों ने तिजीया को प्रताडि़त कर भगा दिया। तीजिया ससुराल से अपनी दोनों बेटियों सुमन और अर्चना को लेकर अपने मायके कुम्हार टोली में आकर रहने लगी और मेहनत मजदूरी कर दोनों बेटियों की शादी की। इसके बाद तिजीया कभी छोटी बेटी तो कभी बड़ी बेटी के पास रहकऱ गुजरबसर कर रही थी।
लगभग दो साल पहले तिजीया को लकवा लग गया था। तब उसकी पुत्रीयों ने कुम्हार टोली में छोड़ दिया। लकवा की बीमारी से पीडि़त बुजुर्ग महिला कुछ कर नही पाती थी। जिस कारण वह गांव में ही प्लास्टिक की झोपड़ी बनकर जिंदगी के बचे दिन गांव वालों के सहारे व्यतीत करने लगी। गांव के लोग सुबह शाम तिजिया को खाना देते थे। वहीं बच्चे बुजुर्ग महिला की मदद करते थे।
गरीब असहाय लोगों की मदद के लिए चलाई जा रही सरकारी योजनाओं का भी उसे लाभ नहीं मिला था। ग्रामीणों का कहना है कि तिजीया रैकवार ससुराल से प्रताडि़त होकर जब मायके में रहने आई, तबसे आज तक किसी भी सरकारी योजना का लाभ नही मिला। जहां कड़ाके की ठंड में पन्नी की झोपड़ी में जिंदगी के दिन गुजार रही थी तो वही पेट की भूख मिटाने गांव वालों का सहारा रहता था। ग्रामीण बताते हैं कि तिजीया ने अपने जीवित रहते हुए पंचायत से लेकर गांव में आए अधिकारियों को अपनी आप बीती और हालात बताए, इसके बाद भी आज तक किसी ने ध्यान नही दिया। आखिरकार तीजिया ने पन्नी की झोपड़ी में ही दम तोड़ दिया । जिसका अंतिम संस्कार सर्व समाज के लोगों टिंकू यादव,राधेश्याम,दीना,रिंकू,मत्ती, वैजनाथ,नंदू प्रजापति,तुलसी कुशवाहा, अनबार खान,देवेन्द्र,पप्पू,सरदार अहिरवार, संतु बरार सहित अन्य गांव वालों ने किया।