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छतरपुर

कभी बसती थी खुशियां, आज बीरान है उमरी गांव

– अभिशापित ग्राम उमरी के खंडहर बता रहे अतीत की कहानी

छतरपुरSep 19, 2019 / 08:01 pm

Unnat Pachauri

कभी बसती थी खुशियां, आज बीरान है उमरी गांव

कभी बसती थी खुशियां, आज बीरान है उमरी गांव

चंदला। लगभग डेढ़ सौ वर्ष से भी अधिक समय पहले जिस गांव के लोगों की साख और जमीदारी पूरे अंचल में प्रसिद्ध थी। आज उस गांव में सिर्फ मातम ही नजर आता है, एक ब्राह्मण के श्राप से दफन हो गए ग्राम उमरी में अब सिर्फ अवशेष ही पुरानी यादें संजोए हुए हैं। इस गांव को देख कर प्राचीन काल की जमीदारी और सामंत शाही प्रथा की याद करते हुए लोग अघाते नहीं हैं। वक्त के थपेड़ों के साथ जमीन में दफन हो चुका यह गांव चंदला गौहानी मार्ग पर चंदला से 13 किलोमीटर दूर बड़ी-बड़ी पहाडिय़ों के नीचे बसा हुआ था। राजस्व नक्शे में आज भी यह क्षेत्र उमरी मौजा के नाम से दर्ज है, लेकिन ग्राम उमरी में अब सिर्फ खंडार और पुराने महलनुमा मकानों के दरवाजे ही दिखाई देते हैं। क्षेत्र के बुजुर्ग देवीदीन द्विवेदी निवासी नेहरा, जगदीश्र त्रिपाठी सिंहपुर, कल्लू रजक सिंहपुर ने बताया कि चंदला क्षेत्र के ग्राम उमरी में लगभग डेढ़ सौ बरस पहले जमींदार और सामंत शाही प्रवत्ति के लोग निवास करते थे। एक ब्राह्मण के श्राप ने महामारी का तांडव फैला दिया और जल्द ही यह गांव पूरा खाली हो गया था, समय गुजरता गया और गांव के प्राचीन काल के मकान जमीन में दफन होते गए वर्तमान समय में यहां बड़े-बड़े खंडहर व गुरजे नजर आते हैं जो प्राचीन काल के आलीशान मकानों की पहचान बताते हैं किदवंती है कि यहां चंदेल काल के लोग निवास किया करते थे। यहां खंडहर में अकूत धन संपदा भरी पड़ी है। जमीन में दफन हो गए इस गांव में 84 कुआं और चार तालाब महल नुमा मकानों के खंडहर आज ही देखे जा सकते हैं।
अटईयाबाबा बन गया सिद्ध स्थल
तालाब किनारे जिस पीपल के पेड़ से लटककर कालांतर में अटईया बाबा ने फांसी लगाई थी। वह स्थान अब अटईया बाबा के नाम से सिद्ध स्थल बन गया है। यहां पर हर सोमवार एक विशाल मेला लगता है, जहां पर सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं और इस वीरान और दफन हो चुके उमरी गांव को देखकर प्राचीन काल को याद करते हैं। इस सिद्ध स्थल की आस्था यह भी है कि जो भी जनमानस सच्चे मन से मनौती मांगता है और भागवत कथा का श्रवण करने का बोलता है उसकी हर मनोकामना पूरी होती है यही कारण है वर्ष के 12 महीनों में यहां भागवत कथाएं निरंतर होती रहती है। क्षेत्र के अलावा विभिन्न स्थानों से यहां लोग मनौती मांगने के लिए आते हैं और मन्नत पूरी होने पर भागवत कथा का श्रवण करते हैं। यहां सीताराम कीर्तन निरंतर चलती है जिसके लिए ग्राम बंशिया, नेहरा पचबरा, धाबा, महोई, गौहानी, व्यास बदौरा, चुकहेटा, हरबंशपुर, लुका, गुलौरा, अमहा सहित आसपास के 30 गांव के लोग एक दिन लेकर सीताराम कीर्तन में भाग लेकर धर्म लाभ लेते हैं।
उमरी गांव के विनाश के पीछे जुड़ा है यह कारण
चंदला गौहानी मार्ग पर स्थित ग्राम उमरी के जमींदोज हो जाने के पीछे एक रोचक व यथार्थ कहानी भी जुड़ी हुई है। वृद्धजन बताते हैं कि सरबई क्षेत्र के चुरयारी ग्राम का एक अटईया ब्राम्हण अपनी बहू को लेकर पैदल अपने घर जा रहा था। रास्ते में चलते वक्त रात हो गई तो अटईया ब्राह्मण ने ग्राम उमरी के जमींदार परिवार के यहां उसके घर में शरण ली, पूरी रात जमीदार परिवार के यहां बिताने के बाद सुबह अटईया से ब्राह्मण अपने घर जाने को तैयार हुआ और अंदर से अपनी बहू को बुलाया बहू जमीदार के घर से बाहर निकली और बहू ने सीधे तौर पर अटईया ब्राह्मण के साथ जाने से मना कर दिया, तो ब्राह्मण ने बहू से कारण पूछा तो बहू ने बताया कि में अब आपके घर की इज्जत नहीं रही बेइज्जत होकर आपके साथ नहीं जा सकती। तब ब्राह्मण ने क्रोध बस इस गांव के तालाब किनारे पीपल के पेड़ पर चढ़कर अपने जनेउ से फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली थी। फांसी लगाने से पहले अटईया ब्राह्मण ने इस गांव को श्राप दिया था कि जो भी व्यक्ति इस गांव में निवास करेगा वह जीवित नहीं बचेगा।
खजाना चोरों को मिल जाती है सजा
चंदला क्षेत्र में प्राचीन काल के जमींदोज हो चुके ग्राम उमरी में अभी भी अकूत धन संपदा भरी पड़ी है। धन की लालच में खजाना चोरों का गिरोह खंडहर पड़े मकानों मंदिरों में कई बार धन खोदने का प्रयास कर चुका हैं। यहां से गिरोह या तो धन संपत्ति ले जाने में असफल रहा है या फिर जिन्हें कामयाबी मिल भी गई है तो वह परिवार दयनीय हालत में पहुंच गए हैं। इस क्षेत्र में ऐसे कई लोग हैं जो विक्षिप्त हालत में विचरण करते नजर आते हैं।
सिद्ध स्थल की कृपा से कैद हो गया था नरभक्षी तेंदुआ
प्राचीन काल के ग्राम उमरी में तालाब किनारे स्थित अटईया बाबा के सिद्ध स्थल की महिमा भी बेहद रोचक और हकीकत से जुदा नहीं है। वर्ष 1998 में चंदला और सरवई क्षेत्र में एक तेंदुए का आतंक इस कदर बढ़ गया था कि उसने क्षेत्र में लगभग 50 से भी अधिक पुरुष-महिला और बच्चों को अपना शिकार बना डाला था। उस समय वन विभाग की कई टीमें क्षेत्र में महीनों तक डेरा डाले रही। तेंदुए को पकडऩे के लिए बकरे और अन्य इंतजाम भी किए गए थे लेकिन वन विभाग को कोई सफलता नहीं मिल पा रही थी। इसी दौरान मई 1998 को वन विभाग चंदला के कार्यालय मैदान में तत्कालीन विधायक विजय बहादुर सिंह बुंदेला के साथ क्षेत्रीय ग्रामीण तेंदुए को पकडऩे को लेकर भूख हड़ताल पर बैठ गए थे। भूख हड़ताल के वक्त नगर चंदला के ग्रामीणों ने अटईया बाबा सिद्ध स्थल पर अर्जी लगाई कि नरभक्षी तेंदुआ अगर कब्जे में आ जाए तो भागवत कथा का आयोजन किया जाएगा। इसी अर्जी के दूसरे दिन अटईया बाबा के तालाब किनारे रखे पिंजरे में नरभक्षी तेंदुआ खुउ आकर बैठा पाया गया था। यह घटना जैसे ही क्षेत्र में आग की तरह फैली तो अटईया बाबा का स्थान सिद्ध हो गया और अब यह स्थल दूरदराज तक पूरे क्षेत्र के लिए आज भी आस्था का केंद्र बना हुआ है।
वन विभाग की निगरानी में है क्षेत्र
यह क्षेत्र वन भूमि में होने के चलते कुछ वर्ष पहले वन विभाग द्वारा सुरक्षा व्यवस्था के लिए आम लोगों का जाना बंद करा दिया है। वन विभाग क ेकक्ष क्रमांक ७२८ क्षेत्र में इस गांव का अधिकांस एरिया आता है और इसी कारण वन विभाग के टीम रहती है। जिससे वहां पर आम लोग नहीं जा पाते हैं और यहां की सुरक्षा रहती है।
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