छतरपुर। जिला मुख्यालय पर मौजूद छात्राओं के लिए आरक्षित एक मात्र गल्र्स कॉलेज में भी सुविधाओं और संसाधनों की कमी का आलम है। यहां पढऩे वाली लगभग 2 हजार छात्राओं को पढ़ाने के लिए सरकार ने प्राध्यापकों के कुल 16 पद स्वीकृत किए हैं लेकिन इनमें से सिर्फ 8 पदों पर प्रोफेसर्स की नियुक्ति है। यही नहीं कॉलेज में पूरी छात्राओं के बैठने के लिए न तो कुर्सियां हैं और न ही अन्य संसाधन। बाहर से आई छात्राओं के रहने के लिए सरकार ने पिछले 15 वर्षों में लगभग एक करोड़ रुपए की लागत से दो हॉस्टल बनवाने का प्रयास किया लेकिन ये दोनों हॉस्टल आज तक उपयोग में नहीं आए हैं और धराशायी होने की कगार पर हैं।
हर साल बढ़ीं सीटें, हर साल घटीं सुविधाएं :
प्रतिवर्ष कॉलेज चलें अभियान जैसे कार्यक्रमों के जरिए सरकार महाविद्यालयों में प्रवेश लेने वाले विद्यार्थियों की संख्या तो बढ़ा रही है लेकिन संख्या के अनुपात में सुविधाएं देने पर किसी का ध्यान नहीं है। छतरपुर के गल्र्स कॉलेज में भी पिछले 8 साल से यही हो रहा है। 2011-12 में यहां अध्ययनरत छात्राओं की संख्या 392 थी जबकि पढ़ाने वाले प्रोफेसर की संख्या लगभग 8 थी। आज भी इस महाविद्यालय में 8 प्रोफेसर्स है जबकि छात्राओं की संख्या 2000 के निकट पहुंच गई है। प्रतिवर्ष के हिसाब से देखें तो 2012-13 में 467, 13-14 में 598, 14-15 में 850, 16-17 में 1047, 17-18 में 1336 और 18-19 में 1625 छात्राएं थीं। इस वर्ष भी 10 से 20 फीसदी सीटें बढ़ाई जा रही हैं। दूसरी ओर महाविद्यालय में अर्थशास्त्र, इतिहास, भौतिक शास्त्र, रसायन, अंग्रेजी, संगीत और गृह विज्ञान जैसे विषयों को पढ़ाने के लिए एक भी प्राध्यापक नहीं है। इन विषयों को पढ़ाने की जिम्मेदारी अतिथि विद्वानों को सौंपी जाती है।
1 हजार छात्राओं के लिए फर्नीचर, एडमिशन ले लिए 2 हजार :
महाविद्यालय में जब भी कोई प्रतियोगी परीक्षा आयोजित होती है तो प्रत्येक टेबिल पर एक छात्रा को बैठाया जाता है और इस हिसाब से कॉलेज में सिर्फ 370 छात्राओं के बैठने की जगह है यदि नियमित कक्षा मेें 1 टेबिल पर तीन छात्राएं भी बैठ जाएं तो कॉलेज के पास मौजूद फर्नीचर के हिसाब से कुल 1000 छात्राएं बैठाई जा सकती हैं लेकिन महाविद्यालय में पढऩे वाली छात्राओं की संख्या 2 हजार है। महाविद्यालय हमेशा यही चाहता है कि किसी भी दिन पूरी छात्राएं कॉलेज न आएं।
सरकारी कॉलेज में पढ़ाई के नाम पर हो रही खानापूर्ती:
जिला मुख्यालय के महाराजा महाविद्यालय एवं गल्र्स कॉलेज में प्रवेश लेने वाले विद्यार्थियों की भरमार है। इसका सबसे बड़ा कारण है सरकारी कॉलेजों में कम फीस लगना। असल हकीकत यह है कि यह महाविद्यालय विद्यार्थियों को सिर्फ फीस की राहत दे रहे हैं इसके बदले में कुछ नहीं दे रहे हैं। महाविद्यालयों में न तो पढ़ाने वाले प्राध्यापक हैं और न ही वर्ष भी नियमित कक्षाएं लगती हैं। प्रोफेसर कहते हैं कि विद्यार्थी नियमित रूप से कॉलेज नहीं आते और विद्यार्थी कहते हैं कि कॉलेज में पढ़ाई नहीं होती। जिले की उच्च शिक्षा कोङ्क्षचग वालों के भरोसे चल रही है।
एक करोड़ के हॉस्टल हो रहे बर्बाद :
बाहर से पढऩे आने वाली छात्राओं के लिए गल्र्स कॉलेज के अधीन पिछले 15 वर्षों में दो बार हॉस्टल के निर्माण कराए गए। वर्ष 2006-07 में यूजीसी के अनुदान पर 15 लाख रुपए की लागत से 20 सीटर हॉस्टल बनाया गया लेकिन आरईएस निर्माण एजेंसी के साथ हुए विवाद के कारण यह हॉस्टल एक दिन के लिए भी उपयोग में नहीं आ सका और बनकर धराशायी हो गया। इसके बाद 2007-08 में 80 लाख 30 हजार की लागत से दोबारा एक 50 सीटर हॉस्टल का निर्माण पीडब्ल्यूडी को करना था। इसमें 27 कमरे बनने थे लेकिन पीडब्ल्यूडी ने 16 कमरे बनाए। यह हॉस्टल भी 2016-17 में कंपलीट होने के बाद आज तक गल्र्स कॉलेज को हस्तांतरण नहीं हुआ। जबकि इस हॉस्टल के ऊपरी मंजिल में बने 6 कमरे बरबाद हो चुके हैं। ग्राउंड फ्लोर पर मौजूद 10 कमरों में इव्हीएम मशीनें रखी हुई हैं। इन लापरवाहियों से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि प्रदेश में किस तरह सरकार बेटियों की शिक्षा के लिए चिंतित है और किस तरह सरकारी धन की बरबादी हो रही है।