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छतरपुर

छतरपुर में बदहाली पर पहुंची उच्च शिक्षा, दो बड़े कॉलेजों में पढ़ाने के लिए नहीं प्रोफेसर

7 हजार छात्रों को पढ़ाने के लिए सिर्फ 56 प्रोफेसर- न कक्षाएं, न कुर्सियां फिर भी हर साल बढ़ रही सीटें
– दो हजार छात्राओं के एकलौते कॉलेज में भी सिर्फ 8 प्रोफेसर- लगभग 1 करोड़ की लागत के दो हॉस्टल भी हो गए बर्बाद

छतरपुरJul 13, 2019 / 08:07 pm

Neeraj soni

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Chhatarpur

कॉमन एंट्रो : छतरपुर में कहने के लिए विश्वविद्यालय की स्थापना हो गई है, लेकिन यहां उच्च शिक्षा का स्तर सुधरने की जगह और भी ज्यादा बदहाल हो गया है। दो बड़े कॉलेजों में छात्र-छात्राओं को पढ़ाने के लिए अब प्राध्यापक ही नहीं बचे है। मूलभूत सुविधाओं के आभाव में विद्यार्थियों को अलग से संघर्ष करना पड़ रहा है। ऐसे में नई पीढ़ी अपने कॅरियर को लेकर चिंताओं से घिरी है। शहर के शासकीय महाराजा कॉलेज और शासकीय गल्र्स कॉलेज की बदहाली को उजागर करती ग्राउंड रिपोर्ट

– महाराजा कॉलेज में वर्षों से खाली पड़े प्रोफेसर्स के 30 पद
छतरपुर। उच्च शिक्षा के लिए जिले में विद्यार्थियों की पहली पसंद बने महाराजा कॉलेज में हालात चिंताजनक हैं। यहां एडमीशन लेने वालों की कतार लगी है लेकिन पढ़ाई के लिए सरकार ने जो इंतजाम किए हैं उन्हें देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि हमारी उच्च शिक्षा कितनी कागजी हो चुकी है। महाराजा कॉलेज में इस वर्ष छात्र संख्या 7 हजार के करीब पहुंच जाएगी। इतने विद्यार्थियों के बैठने के लिए भी इस महाविद्यालय के पास न तो कक्षाएं हैं और न ही कुर्सियां। यही नहीं 7 हजार विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए सिर्फ 56 नियमित प्रोफेसर हैं। कॉलेज में वर्षों से प्रोफेसर्स के 30 पद खाली पड़े हैं जिन्हें भरने के लिए न तो भाजपा सरकार ने कभी चिंता की और न ही कांग्रेस सरकार कर रही है।
इन विषयों के प्रोफेसर्स पद खाली पड़े :
महाराजा कॉलेज में नियमित प्रोफेसर्स के 30 पद खाली हैं। कॉलेज को केमेस्ट्री के 8, अंग्रेजी के 5, प्राणी शास्त्र के 2, भौतिक के 4, दर्शन के 2 प्रोफेसर्स की आवश्यकता है इसके अलावा इतिहास, वाणिज्य, गणित, उर्दू, क्रीड़ा, हिन्दी, अर्थशास्त्र, संस्कृत में भी एक-एक प्रोफेसर्स का स्थान रिक्त पड़ा है। वर्षों से इन पदों पर अस्थायी अतिथि विद्वानों की तैनाती की जा रही है।
दो साल से सरकार के पास अटका नवीन भवन का प्रस्ताव
महाविद्यालय में बढ़ती छात्रों की संख्या के हिसाब से बैठक व्यवस्था बनाने के लिए महाराजा कॉलेज प्रशासन ने लगभग दो वर्ष पूर्व तत्कालीन शिवराज सरकार को 45 करोड़ की लागत से बनने वाले एक नए भवन का मांग पत्र भेजा था लेकिन इस मांग पत्र को अब तक पूूरा नहीं किया जा सका। पूर्व की भाजपा सरकार ने भी इस पर ध्यान नहीं दिया और वर्तमान कांग्रेस सरकार को भी इसकी फिक्र नहीं है।
10 साल में दोगुने हो गए विद्यार्थी, नहीं बढ़ी सुविधाएं
महाराजा कॉलेज में छात्र संख्या के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता लगता है कि सरकार हमारी उच्च शिक्षा के लिए कितनी चिंतित है। वर्ष 2008-09 में इस कॉलेज में पढऩे वाले छात्रों की संख्या 3055 थी। 2010 में यह 3439 हुई। इसी तरह 2011 में 3768, 2012 में 4589, 2013 में 4532, 2014 में 4206, 2015 में 4061, 2016 में 4511, 2017 में 4914, 2018 में 5810 एवं 2018-19 में छात्र संख्या 6516 हो चुकी थी। इस वर्ष प्रवेश प्रक्रिया चल रही है। यदि छात्र संख्या 10 प्रतिशत भी बढ़ी तो यह 7 हजार के पार निकल जाएगी। जबकि पिछले 10 वर्षों में महाराजा कॉलेज में पढ़ाने वाले प्रोफेसर्स की संख्या लगभग ज्यों की त्यों बनी हुई है। इसी तरह कुर्सी, पानी, लैब आदि की सुविधाएं भी नहीं बढ़ सकीं।
4 हजार छात्रों के बैठने की सुविधा, पढ़ते हैं 7 हजार :
महाराजा महाविद्यालय में जब भी किसी प्रतियोगी परीक्षा का आयोजन किया जाता है तो यहां लगभग दो हजार विद्यार्थी बैठाए जाते हैं। यानि एक टेबिल पर एक विद्यार्थी के हिसाब से परीक्षा दिलाई जाती है। आमतौर पर कक्षाओं में एक टेबिल पर दो विद्यार्थी बैठ सकते हैं। इस लिहाज से देखा जाए तो महाराजा कॉलेज में मौजूद इंफ्रास्ट्रक्चर सिर्फ चार हजार विद्यार्थियों के बैठने की इजाजत देता है लेकिन यहां पढऩे वाले छात्र-छात्राओं की संख्या 7 हजार से अधिक है।
घटिया इंतजामों को लेकर यूजीसी ने बी ग्रेड थमाया था :
पिछले वर्ष महाराजा महाविद्यालय में छात्र संख्या के अनुरूप पर्याप्त इंतजाम न होने एवं यहां फैली अनियमितताओं के कारण यूजीसी की राष्ट्रीय मूल्यांकन समिति ने जब कॉलेज का निरीक्षण किया था तो इसे बी ग्रेड थमाया था। उस समय कॉलेज की लाईब्रेरी, कम्प्यूटर लैब, पेयजल इंतजाम, कुर्सियों और कक्षाओं के हालात पर यूजीसी ने कड़ी फटकार लगाई थी।
इनका कहना-
संसाधनों की कमी है। हम सरकार से लगातार संसाधनों को बढ़ाने की मांग कर रहे हैं।
– एलएल कोरी, प्राचार्य, महाराजा कॉलेज, छतरपुर
बेटियों की शिक्षा के झूठे नारे लगाती है सरकार
छतरपुर। जिला मुख्यालय पर मौजूद छात्राओं के लिए आरक्षित एक मात्र गल्र्स कॉलेज में भी सुविधाओं और संसाधनों की कमी का आलम है। यहां पढऩे वाली लगभग 2 हजार छात्राओं को पढ़ाने के लिए सरकार ने प्राध्यापकों के कुल 16 पद स्वीकृत किए हैं लेकिन इनमें से सिर्फ 8 पदों पर प्रोफेसर्स की नियुक्ति है। यही नहीं कॉलेज में पूरी छात्राओं के बैठने के लिए न तो कुर्सियां हैं और न ही अन्य संसाधन। बाहर से आई छात्राओं के रहने के लिए सरकार ने पिछले 15 वर्षों में लगभग एक करोड़ रुपए की लागत से दो हॉस्टल बनवाने का प्रयास किया लेकिन ये दोनों हॉस्टल आज तक उपयोग में नहीं आए हैं और धराशायी होने की कगार पर हैं।
हर साल बढ़ीं सीटें, हर साल घटीं सुविधाएं :
प्रतिवर्ष कॉलेज चलें अभियान जैसे कार्यक्रमों के जरिए सरकार महाविद्यालयों में प्रवेश लेने वाले विद्यार्थियों की संख्या तो बढ़ा रही है लेकिन संख्या के अनुपात में सुविधाएं देने पर किसी का ध्यान नहीं है। छतरपुर के गल्र्स कॉलेज में भी पिछले 8 साल से यही हो रहा है। 2011-12 में यहां अध्ययनरत छात्राओं की संख्या 392 थी जबकि पढ़ाने वाले प्रोफेसर की संख्या लगभग 8 थी। आज भी इस महाविद्यालय में 8 प्रोफेसर्स है जबकि छात्राओं की संख्या 2000 के निकट पहुंच गई है। प्रतिवर्ष के हिसाब से देखें तो 2012-13 में 467, 13-14 में 598, 14-15 में 850, 16-17 में 1047, 17-18 में 1336 और 18-19 में 1625 छात्राएं थीं। इस वर्ष भी 10 से 20 फीसदी सीटें बढ़ाई जा रही हैं। दूसरी ओर महाविद्यालय में अर्थशास्त्र, इतिहास, भौतिक शास्त्र, रसायन, अंग्रेजी, संगीत और गृह विज्ञान जैसे विषयों को पढ़ाने के लिए एक भी प्राध्यापक नहीं है। इन विषयों को पढ़ाने की जिम्मेदारी अतिथि विद्वानों को सौंपी जाती है।
1 हजार छात्राओं के लिए फर्नीचर, एडमिशन ले लिए 2 हजार :
महाविद्यालय में जब भी कोई प्रतियोगी परीक्षा आयोजित होती है तो प्रत्येक टेबिल पर एक छात्रा को बैठाया जाता है और इस हिसाब से कॉलेज में सिर्फ 370 छात्राओं के बैठने की जगह है यदि नियमित कक्षा मेें 1 टेबिल पर तीन छात्राएं भी बैठ जाएं तो कॉलेज के पास मौजूद फर्नीचर के हिसाब से कुल 1000 छात्राएं बैठाई जा सकती हैं लेकिन महाविद्यालय में पढऩे वाली छात्राओं की संख्या 2 हजार है। महाविद्यालय हमेशा यही चाहता है कि किसी भी दिन पूरी छात्राएं कॉलेज न आएं।
सरकारी कॉलेज में पढ़ाई के नाम पर हो रही खानापूर्ती:
जिला मुख्यालय के महाराजा महाविद्यालय एवं गल्र्स कॉलेज में प्रवेश लेने वाले विद्यार्थियों की भरमार है। इसका सबसे बड़ा कारण है सरकारी कॉलेजों में कम फीस लगना। असल हकीकत यह है कि यह महाविद्यालय विद्यार्थियों को सिर्फ फीस की राहत दे रहे हैं इसके बदले में कुछ नहीं दे रहे हैं। महाविद्यालयों में न तो पढ़ाने वाले प्राध्यापक हैं और न ही वर्ष भी नियमित कक्षाएं लगती हैं। प्रोफेसर कहते हैं कि विद्यार्थी नियमित रूप से कॉलेज नहीं आते और विद्यार्थी कहते हैं कि कॉलेज में पढ़ाई नहीं होती। जिले की उच्च शिक्षा कोङ्क्षचग वालों के भरोसे चल रही है।
एक करोड़ के हॉस्टल हो रहे बर्बाद :
बाहर से पढऩे आने वाली छात्राओं के लिए गल्र्स कॉलेज के अधीन पिछले 15 वर्षों में दो बार हॉस्टल के निर्माण कराए गए। वर्ष 2006-07 में यूजीसी के अनुदान पर 15 लाख रुपए की लागत से 20 सीटर हॉस्टल बनाया गया लेकिन आरईएस निर्माण एजेंसी के साथ हुए विवाद के कारण यह हॉस्टल एक दिन के लिए भी उपयोग में नहीं आ सका और बनकर धराशायी हो गया। इसके बाद 2007-08 में 80 लाख 30 हजार की लागत से दोबारा एक 50 सीटर हॉस्टल का निर्माण पीडब्ल्यूडी को करना था। इसमें 27 कमरे बनने थे लेकिन पीडब्ल्यूडी ने 16 कमरे बनाए। यह हॉस्टल भी 2016-17 में कंपलीट होने के बाद आज तक गल्र्स कॉलेज को हस्तांतरण नहीं हुआ। जबकि इस हॉस्टल के ऊपरी मंजिल में बने 6 कमरे बरबाद हो चुके हैं। ग्राउंड फ्लोर पर मौजूद 10 कमरों में इव्हीएम मशीनें रखी हुई हैं। इन लापरवाहियों से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि प्रदेश में किस तरह सरकार बेटियों की शिक्षा के लिए चिंतित है और किस तरह सरकारी धन की बरबादी हो रही है।

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