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छतरपुर

ऐसे बनते है नागा बाबा, जाने इनके दिलचस्प रहस्य 

उज्जैन कुंभ के कारण इनकी तादात और भी बढ़ गई है। इन दिनों ये आपको ये कहीं भी नजर आ जाएंगे, लेकिन कभी आपने सोचा कि कौन हैं ये साधु, कहां से आते हैं नागा बाबा और त्योहार खत्म होते ही कहां चले जाते हैं…?

छतरपुरFeb 03, 2016 / 04:56 pm

Widush Mishra


सागर.संक्रांति आते ही धार्मिक स्थलों पर साधु-संत नजर आने लगे हैं। रामराजा सरकार की नगरी ओरछा, विश्व प्रसिद्ध खजुराहो, दो राजाओं की लड़ाई का साक्षी रहे रानगिर सहित बुंदेलखंड के तमाम धार्मिक स्थलों पर साधु-संत और नागाओं की संख्या में एकाएक इजाफा हो गया है। उज्जैन कुंभ के कारण इनकी तादात और भी बढ़ गई है। इन दिनों ये आपको ये कहीं भी नजर आ जाएंगे, लेकिन कभी आपने सोचा कि कौन हैं ये साधु, कहां से आते हैं नागा बाबा और त्योहार खत्म होते ही कहां चले जाते हैं…? आधुनिकता की ओर भागते समाज के लिए इस बात का अंदाजा लगाना मुश्किल है कि आखिर कोई इंसान साधुत्व की ओर क्यों चला जाता है? तो आइए हम आपको बताते हैं इनके रहस्य के बारे में…।


मूलत: नागा, अघोरी और अवधूत संत होते हैं। इनमें से ज्यादातर भगवान शिव को अपना आराध्य मानते हैं। अघोरी बाबाओं का मौत के साथ गहरा संबंध होता है तो नागा स्नान-ध्यान में ज्यादा विश्वास करते हैं। अवधूत संतों की जीवन लीला और भी रहस्यमयी होती है।



नागा साधु हिन्दू धर्मावलम्बी साधु हैं जो कि नग्न रहने तथा युद्ध कला में माहिर होने के लिये प्रसिद्ध हैं। ये विभिन्न अखाड़ों में रहते हैं जिनकी परम्परा आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा की गई थी। इनके आश्रम हरिद्वार और दूसरे तीर्थों के दूरदराज इलाकों में हैं जहां ये आम जनजीवन से दूर कठोर अनुशासन में रहते हैं। इनके गुस्से के बारे में प्रचलित किस्से कहानियां भी भीड़ को इनसे दूर रखती हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि यह शायद ही किसी को नुकसान पहुंचाते हों। हां, लेकिन अगर बिना कारण अगर कोई इन्हें उकसाए या तंग करे तो इनका क्रोध भयानक हो उठता है। कहा जाता है कि भले ही दुनिया अपना रूप बदलती रहे लेकिन शिव और अग्नि के ये भक्त इसी स्वरूप में रहेंगे।


अवधूत अवधूतोपनिषद् के आरंभ में अवधूत शब्द की जो व्याख्या दी गई है, उससे इस पद से संकेतित व्यक्ति के वैशिष्ट्य का विवरण हो जाता है। इस उपनिषद् के अनुसार इस शब्द में आए अ का अक्षरत्व अथवा अक्षरपद, व का अर्थ वरेण्य का सर्वश्रेष्ठ पद, धू का अर्थ धूत संसारवर्धन अथवा सांसारिक वासनाओं का उच्छेद और त का अर्थ है तत्वमस्यादिलक्ष्यत्व। इस पद से विशिष्ट व्यक्ति का व्याख्यान इस उपनिषद् के अतिरिक्त अवधूतगीता, गोरक्षनाथरचित सिद्ध-सिद्धांत-पद्धति, गोरक्ष-सिद्धांत-संग्रह आदि ग्रंथों में उपलब्ध है। मुख्य रूप से ब्रह्मावधूत, शैवावधूत, बीरावधूत और कुलावधूत अवधूत होते हैं।



अघोर पंथ के प्रणेता भगवान शिव माने जाते हैं। कहा जाता है कि भगवान शिव ने स्वयं अघोर पंथ को प्रतिपादित किया था। अवधूत भगवान दत्तात्रेय को भी अघोरशास्त्र का गुरू माना जाता है। अवधूत दत्तात्रेय को भगवान शिव का अवतार भी मानते हैं। अघोर संप्रदाय के विश्वासों के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और शिव इन तीनों के अंश और स्थूल रूप में दत्तात्रेय जी ने अवतार लिया। अघोर संप्रदाय के एक संत के रूप में बाबा किनाराम की पूजा होती है। अघोर संप्रदाय के व्यक्ति शिव जी के अनुयायी होते हैं। इनके अनुसार शिव स्वयं में संपूर्ण हैं और जड़, चेतन समस्त रूपों में विद्यमान हैं।




ऐसे बनते हैं साधु
नागा साधु बनने के लिए इतनी कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है कि शायद कोई आम आदमी इसे पार ही नहीं कर पाए। नागाओं को सेना की तरह तैयार किया जाता है। उनको आम दुनिया से अलग और विशेष बनना होता है। जब भी कोई व्यक्ति साधु बनने के लिए किसी अखाड़े में जाता है, तो उसे कभी सीधे-सीधे अखाड़े में शामिल नहीं किया जाता। अखाड़ा अपने स्तर पर ये तहकीकात करता है कि वह साधु क्यों बनना चाहता है? उस व्यक्ति की तथा उसके परिवार की संपूर्ण पृष्ठभूमि देखी जाती है। अगर अखाड़े को ये लगता है कि वह साधु बनने के लिए सही व्यक्ति है, तो ही उसे अखाड़े में प्रवेश की अनुमति मिलती है। अखाड़े में प्रवेश के बाद उसके ब्रह्मचर्य की परीक्षा ली जाती है। इसमें 6 महीने से लेकर 12 साल तक लग जाते हैं। अगर अखाड़ा और उस व्यक्ति का गुरु यह निश्चित कर लें कि वह दीक्षा देने लायक हो चुका है फिर उसे अगली प्रक्रिया में ले जाया जाता है।
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