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छतरपुर

पांच साल ही चली डबल सीट चुनाव की व्यवस्था, एक साल बाद ही जिले में में बन गईं थी 5 विधानसभाएं

– जिले की पांच विधानसभाओं के मतदाताओं को मिजाज हर बार बदलाव का रहा

छतरपुरNov 17, 2018 / 01:22 pm

Neeraj soni

 Chhatarpur

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नीरज सोनी छतरपुर। जिले में तीन विधानसभाओं से शुरू हुआ चुनावी इतिहास का सफर छह सीटों तक आकर ठहर गया है। जिले के इतिहास में तीन सीटों से छह विधायक चुने जाने की डबल सीट चुनाव व्यवस्था महज एक ही पंचवर्षीय तक टिक पाई थी। १९५७ में लागू यह व्यवस्था १९६२ के चुनाव के पहले समाप्त कर दी गई और जिले में एक सीट बढ़ा दी गई। जो बड़ामलहरा विधानसभा क्षेत्र पहले बक्स्वाहा से लेकर अलीपुरा तक लगता था, उसका नए सिरे से परिसीमन करते हुए एक नई बिजावर विधानसभा बना दी गई। इस सीट से पहली बार निर्दलीय गोविंद सिंह चुनाव जीते। वहीं बड़ामलहरा क्षेत्र को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दी गई। यहां पहली बार हंसराज अहिरवार कांग्रेस से जीते। यह व्यवस्था एक साल तक ही रही और १९६७ के चुनाव के पहले विधानसभाओं का फिर से पुनर्गठन हुआ और चार की जगह जिले में ५ सीटें बनाते हुए महाराजपुर को अनुसूचिज जाति वर्ग के लिए आरक्षित कर दिया गया।
आपातकाल के बाद पहली बार सभी सीटों पर जीती थी जनता पार्टी :
जिले की पांच विधानसभाओं में जनता पार्टी (जनसंघ) को सबसे ज्यादा बढ़त आपातकाल के बाद मिली। १९७७ में आपातकाल के बाद विधानसभा चुनाव हुए थे। इसमें जिले की पांचों सीटों से जनतापार्टी के प्रत्याशी एकतरफा चुनाव जीते थे। उस साल के चुनाव में कांग्रेस के बड़े-बड़े दिग्गज धराशायी हो गए थे। बड़ामलहरा सीट से जनता पार्टी के प्रत्याशी जंगबहादुर सिंह चुनाव जीते थे। उन्होंने कांग्रेस के कपूरचंद घुवारा को पराजित किया था। वहीं छतरपुर में जेपी निगम ने जनता पार्टी से चुनाव लड़कर कांग्रेस के बृजगोपाल डेंगा को हराया था। बिजावर से एमएस निवालकर जीते और उन्होंने कांग्रेस के दशरथ जैन को पराजित किया था। चंदला से रघुनाथ सिंह जनता पार्टी से जीते और कांग्रेस के गनी अंसारी पराजित हुए। वहीं आरक्षित महाराजपुर सीट से रामदयाल अहिरवार जनता पार्टी से जीते। कांग्रेस के लक्ष्मनदास यहां से पराजित हुए। मप्र में जनता पार्टी की सरकार बनने पर एमएस निवालकर को मप्र विधानसभा का अध्यक्ष बनाया गया था। जबकि जंगबहादुर सिंह को पीएचई मिनिस्टर बनाया गया था।
१९८० के चुनाव में सभी सीटें भाजपा के खाते से चली गई :
आपातकाल के विधानसभा चुनाव के बाद जिले की सभी सीटों पर भले ही जनता पार्टी के प्रत्याशी चुने गए हो, लेकिन जैसे ही १९८० का चुनाव आया तो इंदिरा गांधी की लहर में जिले की पांचों सीटें भाजपा के कब्जे से चली गई थीं। बड़ामलहरा से कपूरचंद घुवारा ने कम्यूनिस्ट पार्टी से चुनाव जीता और भाजपा के रामधार मिश्रा को पराजित किया। छतरपुर से कांग्रेस के शंकरप्रताप सिंह मुन्नाराजा पहली बार चुनाव जीते। भाजपा के सुरेंद्र तिवारी पराजित हुए। बिजावर से यादवेंद्र सिंह लल्लू राजा कांग्रेस से चुनाव जीते। भाजपा के एमएस निवालकर पराजित हुए। चंदला से सत्यव्रत चतुर्वेदी कांग्रेस से जीते और उपमंत्री बने। भाजपा के दादा मातादीन पराजित हुए। महाराजपुर सीट से कांग्रेस के लछमनदास अहिरवार चुनाव जीते। भाजपा के रामदयाल चुनाव हार गए थे। लेकिन जब १९८५ में चुनाव हुए तो आधी सीटें भाजपा को मिल गईं। इस पंचवर्षीय में भाजपा पांच में से दो सीटें ही हासिल कर पाई थी। एक सीट जनता पार्टी के खाते में चली गई थी, जबकि दो सीटें कांग्रेस के खाते में गईं।
१९९० में फिर लौटी भाजपा, सभी सीटों पर किया कब्जा :
देश में सोमनाथ रथयात्रा के बाद मतों का धुव्रीकरण जिले की पांचों सीटों पर भी हुआ था। भाजपा का समाजवादी दल से समझौता हुआ और छतरपुर सीट समाजवादी दल को मिली। यहां से जनता दल के जेपी निगम ने शंकरप्रताप सिंह मुन्नाराजा को पराजित कर चुनाव जीता। बड़ामलहरा में भाजपा के अशोक चौरसिया ने कम्युनिस्ट पार्टी के कपूरचंद घुवारा को पराजित किया। बिजावर में भाजपा के जुझार सिंह बुंदेला ने कांग्रेस के मानवेंद्र सिंह भंवर राजा को पराजित किया। उधर आरक्षित महाराजपुर सीट पर भाजपा के रामदयाल अहिरवार जीते। उन्होंने कांग्रेस के लछमनदास को पराजित किया।
मध्यावधि चुनाव में भाजपा के पास बची एक सीट :
१९९३ में अयोध्या में बाबरी ढांचा गिराए जाने के बाद मप्र में पटवार सरकार भंग हुई तो मध्यावधि चुनाव हुए। इस चुनाव में जिले की सभी पांचों सीटों में से केवल एक महाराजपुर सीट पर ही भाजपा के रामदयाल अहिरवार जीत पाए। बड़ामलहरा से कांग्रेस की उमा यादव जीतीं। भाजपा के शिवराज भैया पराजित हुए। छतरपुर से शंकरप्रताप सिंह बुंदेला ने भाजपा के उमेश शुक्ला को पराजित किया। बिजावर में मानवेंद्र सिंह ने जुझार सिंह बुंदेला को हराया। चंदला में सत्यव्रत चतुर्वेदी ने जीपी सिंह को पराजित किया। हालांकि सत्यव्रत चतुर्वेदी ने सरकार में रहते हुए चार साल बाद अपनी ही सरकार से नाराज होकर इस्तीफा दे दिया। उपचुनाव में यह सीट समाजवादी पार्टी के विजयबहादुर सिंह बुंदेला के खाते में चली गई।

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