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छतरपुर

चुनाव बाद फिर शुरु हुआ पलायन, रेलवे स्टेशन पर गृहस्थी की गठरी के साथ नजर आ रहे प्रवासी

गांव से बोरिया बिस्तर समेटकर काम-दाम और रोटी के लिए महानगरों की ओर पलायन का ये सिलसिला त्योहारों के बाद हर साल नजर आता है, लेकिन इस बार चुनाव के चलते मई माह में वापसी का ये सिलसिला चल रहा है।

छतरपुरMay 16, 2024 / 10:37 am

Dharmendra Singh

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गृहस्थी के साथ ट्रेन पकड़ते प्रवासी मजदूर

छतरपुर. लोकसभा चुनाव संपन्न होते ही प्रवासी मजदूर महानगरों की ओर परिवार सहित वापसी करने लगे हैं। रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड पर प्रवासी मजदूर अपने परिवार व गृहस्थी के सामान के साथ नजर आने लगे हैं। गांव से बोरिया बिस्तर समेटकर काम-दाम और रोटी के लिए महानगरों की ओर पलायन का ये सिलसिला त्योहारों के बाद हर साल नजर आता है, लेकिन इस बार चुनाव के चलते मई माह में वापसी का ये सिलसिला चल रहा है। ग्रामीण कानपुर, दिल्ली, मुंबई, चंडीगढ़, हैदराबाद, गुजरात के शहरों सहित अन्य महानगरों में अपने काम पर वापस लौट रहे हैं।

ट्रेनें, बसे चल रही फुल


दरअसल, बुंदलेखंड में बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा है। पानी की कमी के कारण खेती का भी सहारा नहीं है। ऐसे में ग्रामीण पेट पालने के लिए महानगरों के लिए पलायन करने को मजबूर है। चुनाव में वोट डालने परिवार सहित आए प्रवासी मजदूरों की वापसी शुरु हो गई है। हरपालपुर स्टेशन, छतरपुर बस स्टैंड से मजदूर बड़ी संख्या में रोजाना वापसी कर रहे हैं। ट्रेन हो या बसें, सभी ओवरलोड चल रही हैं। दिल्ली बस संचालक जावेद खान ने बताया कि चुनाव के बाद प्रवासियों की वापसी शुरु हो गई है, जिससे भीड़ अचानक बढ़ गई है। उनका अनुमान है कि इस तरह की भीड़ अभी एक सप्ताह तक जारी रहेगी। वही, मोंटू का कहना है चुनाव के लिए आए ग्रामीण वापसी कर रहे हैं, जिससे ट्रैफिक बढ़ा है।

पलायन के कारण बच्चों के स्कूल छूटे


गांवों में स्कूल की घंटी तो दिन में दो समय बजती है, लेकिन पलायन करने वाले ग्रामीणों के सूने घरों में खूंटी पर टंगे बस्ते कभी महीनों तो कभी साल भर से नहीं उतारे गए हैं। स्कूलों के साथ ही आंगनबाडिय़ों पर भी पलायन का असर पड़ा है। यहां दर्ज बच्चे छोटे हैं और माता- -पिता के साथ जाना उनकी मजबूरी है। अन्य राज्यों में गए इन बच्चों के पोषण पर भी असर पड़ रहा है। आवासीय हॉस्टल संचालक ने बताया कि नगर में संचालित इन हॉस्टलों में ज्यादा बच्चे ऐसे हैं, जिनके नाम तो गांव के सरकारी स्कूल में दर्ज हैं। लेकिन वे कभी स्कूल पहुंचे ही नहीं, क्योंकि वो माता-पिता के साथ अन्य राज्यों में गए हैं। कुछ मातापिता अपने बच्चों को हॉस्टल में छोडक़र चले जाते हैं। इसके अलावा सैकड़ों बच्चे ऐसे हैं, जो पलायन के कारण स्कूल से दूर हैं।

कई बार हो चुकी है मजदूरों को बंधक बनाने की घटनाएं, पुलिस छुड़ाकर लाई


अन्य राज्यों में इन मजदूरों के शोषण और बंधक बनाने की घटनाएं कई बार हो चुकी हैं। कई बार पुलिस इन मजदूरों को वहां से छुड़ाकर लाई है। मजदूर दीपावली, होली और शादी-विवाह सीजन में शामिल होने के लिए घर लौटते हैं। इसके बाद वे फिर पलायन कर जाते हैं।

ये कहना है ग्रामीणों का


नौगांव जनपद की ग्राम पंचायत चौबारा निवासी मनोज कुशवाहा अपनी पत्नी तीन बच्चों के साथ हरपालपुर स्टेशन पर दिल्ली जाने की ट्रेन के इंतजार में बैठे हैं। उन्होंने बताया कि उनको पीएम आवास योजना,मनरेगा, सहित किसी भी शासकीय योजना का लाभ नहीं मिला हैं। खेती की ज़मीन इतनी नही है कि वो अपना और अपने परिवार का भरण पोषण कर सकें। गांव में रोजगार नही मिलने से मजबूरी बस पलायान कर रहे हैं। कुछ ऐसा ही हाल ग्राम पंचायत भदर्रा निवासी शिवरतन का उनके बताया वो तीन भाई हैं एक बीघा जमीन उनके हिस्से में मिली हैं। ऐसे में कैसे गुजरबसर करें, इसलिए महानगरों में जाकर मजदूरी कर करेंगे।

मनरेगा नहीं रोक पा रही पलायन


सरकार ने आम गरीबों को गांव में ही रोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से वर्ष 2005 में पंचायतों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी यानि मनरेगा योजना लागू की है। दुनिया की सबसे बड़ी इस योजना का मूल उददेश्य आस्था व श्रम मूलक कार्य कराके लोगों को काम उपलब्ध कराके उनका पलायन रोकना था, मगर ऐसा हो नही सका। सही मायने में अधिकारियों से लेकर पंचायत प्रतिनिधियों तक सभी मनरेगा से मलाई खा रहे हैं, वहीं जरूरतमंद ग्रामीण परेशान हैं। सच्चाई ये है कि एक तो 90 प्रतिशत ग्राम पंचायतों में कार्य नहीं हो रहे हैं, जो कार्य होते भी हैं वे कागजों पर पूर्ण करके राशि आहरित कर ली जाती है। तालाब गहरीकरण, मिट्टीकरण, पौधरोपण, नाला सफाई के काम मनरेगा वाले अधिकांश काम मशीनों से कराए जा रहे हैं। वहीं कई काम कराए बिना ही मजदूरी तथा मटेरियल के नाम पर फर्जी मस्टर व फर्जी बिलों से राशि निकाल ली जाती है।
फैक्ट फाइल

जिले में गांव – 1210
आबादीअनुमानित- 2222975
पलायन प्रभावित गांव- 800 करीब
प्रवासी मजदूर – 80 हजार
चुनाव बाद पलायन- 50 हजार

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