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छतरपुर

वर्षों से शहर में रह रहे फिर भी इनको नहीं पहचानता कोई, जानिए क्या है वजह

गरीबी के कारण नहीं हो पा रही पढ़ाई

छतरपुरAug 12, 2018 / 11:27 am

rafi ahmad Siddqui

Not official documents Benefits of not getting schemes

Not official documents Benefits of not getting schemes

उन्नत पचौरी
छतरपुर। शहर में कई ऐसे परिवार भी हैं जिन्हें अभी तक अधिकृत तौर पर कोई पहचान नहीं मिली है। जवाहर रोड सहित विभिन्न स्थनों पर पत्थर से रसोई की जरूरत का सामान बनाने वाले लोगों की भी यही कहानी है। इन लोगों के कुछ परिवार पिछले दो दशक से शहर में निवासरत हैं। लेकिन इनके पास ऐसा कोई दस्तावेज नहीं जिसे वे अपनी पहचान के प्रमाण के तौर पर पेश करके सरकारी योजनाओं का लाभ उठा सकें। पत्थर के चकला, सिलबट्टे, चक्की आदि बनाने वाले लोगों के कुछ परिवार शहर में करीब 25 वर्ष पहले आए थे। तब से यह एक ही स्थान पर निवासरत हैं। जिन हालातों में यह लोग अपनी आजीविका चला रहे हैं और जिस तरह का इनका बसेरा है। उस लिहाज से यह गरीबी रेखा से नीचे की श्रेणी में आते हैं। लेकिन इस बात का कोई अधिकृत प्रमाण इनके पास नहीं है। इसलिए किसी भी सरकारी योजना का लाभ इन्हें नहीं मिल रहा है। यह लोग अब स्थाई तौर पर शहर में बस चुके हैं। लेकिन सरकारी दस्तावेजों में इन्हें यहां का नागरिक स्वीकार नहीं किया गया है। इनके पास न तो वोटर कार्ड हैं, न आधार कार्ड और न ही इनके परिवार की समग्र आईडी बनी है। इन लोगों का कहना है कि कई बार उन्होंने संबंधित पालिका और मंत्री विधायकों से मिलकर बीपीएल कार्ड बनवाने का प्रयास किया गया। लेकिन उनकी गुहार को अनसुना कर दिया गया। मतदाता सूची में नाम जुड़वाने और आधार कार्ड जैसे जरूरी दस्तावेज बनवाने के संबंध में किए गए प्रयासों में भी इन्हें अब तक सफलता नहीं मिली। वहीं कुछ लोगों के बनाए गए हैुं लेकिन अभी तक उन्हें किसी योजना का लाभ नहीं दिया गया।

तीन पीड़ी से रह रहे शहर में
शहर के हनुमान औरिया के पास डेढ़ दर्जन परिवार के करीब ७५ सदस्य झोपडी बनाकर रह रहे हैं। यहां के रहने वाले श्यामबाबू, राकेश, तिलकराम, अर्चना, गायत्री, बर्षा, प्रीति आदिवासी ने बताया कि वह छतरपुर में करीब ८० वर्षों से रह रहे हैं। पहले वह खेरे की देवी के पास छेरा डाल रह रहे थे। लेकिन वहां पर मकान और शासकीय कार्यालय बनने से उन्हें वहां से भगा दिया गया और फिर उन्होंने करीब २० वर्ष पहले जवाहर रोड के किनारे हनुमान टौरियों के नीचे अपना डेरा जमा लिया। लेकिन उन्हें अभी तक न तो रहते के लिए घर नशीब हुआ है और न ही उन्हें घर बनाने के लिए जमीन दी गई है। यहां की रहने वाली ६० वर्षीय गायत्री आदिवासी ने बताया कि उन्होंने पट्टे दिलाने की मांग को लेकर जनप्रतिनिधी, राजनेता और अधिकारियों से गुहार लगा चुके हैं लेकिन अभी तक उन्हें न तो कोई सहायता मिली है और न ही पट्टा दिया गया।

बीमारी का नहीं करा पा रहे इलाज
शहर के विभिन्न स्थानों पर रहने वाले आदिवासी परिवार अपने रोजी रोटी चलाने के लिए पत्थर के चकला, सिलबट्टे, चक्की व लोगों के बर्तन आदि बनाने का कार्य करते हैं और घर घर जाकर बेचते हैं। जिससे इन परिवारों को दो वक्त की रोटी ही नशीब हो पा रही है। ऐसी स्थिति में परिवार के किसी सदस्य को बीमारी होने पर इलाज नहीं करा पाते हैं। जिससे परिवार बिखर जाता है। शहर के हनुमान टौरिया के पास रहने वाले नेपाल आदिवासी, सागर रोड में रहने वाले दनकू आदिवासी ने बताया कि उसे करीब दो तीन वर्ष से गंभीर बीमारी है। लेकिन इलाज कराने के लिए रुपए नहीं हैं। काम करने से जो भी कमाई होती है उससे केवल पेअ ही भर पाता है और कोई पहचान नहीं होने से शासन द्वारा भी कोई सहायता नहीं मिल पा रही है।

एक सैकडा से अधिक है परिवार
शहर के बिजावर नाका, हनुमान टौरियों के नीचे, सिविल लाइन थाना के पास, सागर रोड, महोबा रोड स्थित पेट्रोल पंप के पास, नौगांव रोड स्थित ट्रांसपोर्ट नगर के पास सहित करीब एक दर्जन से अधिक स्थानों पर कई वर्षों से करीब एक सैकडा से अधिक परिवार झोपड़ पट्टी में निवास कर रहे हैं। हालाकि इन लोगों को कभी प्रशासन द्वारा तो कभी अन्य लोगों द्वारा डेरा वाले स्थान से हटाया गया। जिसके बाद उन्होंने दूसरे स्थान पर झोपडी बनाका अपना आधियाना बना लिया जाता है। लेकिन कई वर्षों से रहने के बाद भी उसे सरकार द्वारा किसी योजना का लाथ नहीं दिया जा रहा है।

नहीं पढ़ पा रहे बच्चे
इन परिवारों के पास पहचान संबंधी प्रमाण नहीं होने और गरीबी होने के कारण इन लोगों के बच्चे पढ़ नहीं पा रहे हैं। पत्थर का काम करने वाले लोगों ने बताया कि वे भी चाहते हैं कि उनके बच्चे भी पढ़ें। लेकिन स्कूल में प्रवेश के लिए सबसे पहले समग्र आईडी व अन्य दस्तावेजों की मांग की जाती है। लेकिन इस तरह के कागजात उनके पास नहीं हैं। इसलिए बच्चों को स्कूलों में प्रवेश नहीं मिल पा रहा है।

दुकानदारी और कबाड़ के बीच बीत रहा बचपन
पत्थर और लोगों के बर्तन बनाने का काम करने वाले लोगों के बच्चों का बचपन दुकानदारी और कबाड़ बीनते हुए गुजर रहा है। इनके परिजनों से बातचीत की तो उनके माता-पिता ने अपनी मजबूरी की दास्तां सुनाई। पत्थर का काम करने वाले परिवारों की स्थिति दयनीय है। उनके पास अपनी पहचान साबित करने के लिए कोई सरकारी दस्तावेज भी नहीं है।

इनका कहना है
मुख्यमंत्री की द्वारा एक योजना चलाई गई है जिसके तहत जिनके पास जमीन नहीं है और वह झोपड़ पट्टी में रह रहे हैं ऐसे लोगों से आवेदन मांगे गए हैं। जैसे ही अवेदन मिलते हैं उनको आवासीय पट्टे आवंटित कर दिए जाएगें और जिनके अभी तक पहचान पत्र नहीं बन सके है वह अपना पहचान पत्र बनवाकर आवेदन कर सकते हैं।
ललिता यादव राज्य मंत्री मध्य प्रदेश

इनका कहना है
जो घुमक्कड जाति और आदिवासियों को योजनाओं का लाभ दिया जाता है। जिनका अभी तक कोई पहचान पत्र आदि नहीं है। उनका सर्वे कराया जाएगा और ऐसे लोगों को चिंहित कर शासकीय योजनाओं का लाभ दिलाया जाएगा।
रमेश भंडारी कलेक्टर छतरपुर

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