दरअसल आज़ादी के बाद लोकतंत्र में भी ये राज परिवार सरकार द्वारा मिली संपत्तियों से धनी ही बने रहे। इसके साथ ही अपने अपने क्षेत्र में प्रभाव के चलते बड़ी संख्या में आम लोगों का जुड़ाव इनसे रहा। इसी का इस्तेमाल करते हुए इन परिवारों ने राजनीति में जब भी कदम रखा तो ज़्यादातर सफल ही हुए। क्षेत्र की जनता इन परिवारों के लोगों के लिए राजा साहब, महाराज, हुकुम, कुंवर सा और रानी सा जैसे संबोधनों का इस्तेमाल करती है। लेकिन ज़माना बदला भी है। खास तौर पर बीते एक दशक में मोबाइल क्रांति से ग्रामीण क्षेत्र की जनता में जागरूकता आई है। अब यही जनता इन राजपरिवारों को सियासत में तो देखना चाहती है लेकिन आम नेता की तरह। लोकतंत्र में आए इस बदलाव में खास तौर पर युवा कहते हैं, अगर कोई राज परिवार या पुराने ज़मींदार परिवार से है तो भी वह सामान्य राजनैतिक व्यक्ति की तरह जनता से मिले न कि अपने इतिहास की वजह से रुबरु हो।
छतरपुर से जुड़े राजघराने से ताल्लुक रखते हैं विक्रम सिंह नाती राजा, लेकिन नाती राजा की जनता से कनेक्टिविटी इतनी तेज है कि 2003 से लगातार विधायक हैं। पहली बार समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव जीते। इसके बाद लगातार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत रहे हैं। इनकी विधानसभा में अब भी इन्हें जनता नातीराजा ही कहते हैं और राजा की तरह इनसे अपने दुख दर्द बताती है। वहीं, बिजावर और महाराजपुर विधानसभा की सियासत मानवेंद्र सिंह उर्फ भंवर राजा के हवेली की ड्योढ़ी ही तय करती रही है। मंत्री रहे मानवेंद्र सिंह के बेटे कामाख्या सिंह इस बार महाराजपुर से विधानसभा चुनाव मैदान में है। कामाख्या जिला पंचायत सदस्य रह चुके हैं। मानवेंद्र सिंह उर्फ भंवर राजा कहते हैं कि हम जनता से संबंध बनाए रखते हैं। यही वजह है कि लोग हमें अपना स्नेह दे रहे हैं।
टीकमगढ़ जिले में जमींदार परिवार से रहे पृथ्वीपुर के पूर्व विधायक बृजेन्द्र सिंह राठौर इसी भाव को लंबे समय पहले परखते रहे हैं। उन्होंने राजनीति की शुरुआत से ही उस तबके को बराबर बैठाना शुरू किया। जब उनके बेटे नितेन्द्र बाहर से पढ़ाई करके लौटे तो उन्होंने उसे भी जनता से जुडऩे के लिए स्थानीय बोली बुंदेली में बात करने की सलाह दी। वहीं खरगापुर राज परिवार के सदस्य हरदेव सिंह कहते हैं कि जनता में अपने परिवार की प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए उनके परिवार का सामूहिक निर्णय है कि वो शराब को हाथ नहीं लगाते। वो बताते हैं, वर्षो पुरानी ये परंपरा आज की युवा पीढ़ी भी कायम रखे हुए है। हम नहीं चाहते कि लोग हमें पुराने ज़माने के राजाओं की भावना से देखें। ये अलग बात है कि राज परिवार का सदस्य होने से आज भी जनता में एक अलग किस्म का सम्मान मिलता है। लेकिन इस भाव को बनाए रखने के लिए हमें अपने व्यवहार को काफी हद तक मर्यादित रखना पड़ता है।