लॉकडाउन 1.0 के समय से ही जिले के कांग्रेस विधायकों ने अपने क्षेत्र में कोरोना से लड़ाने के लिए संसाधन जुटाने के लिए अपनी विधायक निधि से राशि दी, इसके साथ ही व्यक्तिगत राशि भी लड़ाई में सहयोग के लिए दी। जिले में कोरोना से निपटने के लिए फैसले लेने वाली जिला आपदा प्रबंधन समिति की बैठकों में भी कांग्रेस के विधायक शुरु में आते रहे हैं। बैठकों से पहले राजनगर से कांग्रेस विधायक विक्रम सिंह नातीराजा ने दूरी बनाई, फिर बड़ामलहरा से कांग्रेस विधायक प्रद्युम्न सिंह, महाराजपुर से कांग्रेस विधायक नीरज दीक्षित और अब छतरपुर विधायक आलोक चतुर्वेदी भी बैठकों में नहीं आ रहे हैं। हालांकि अपने-अपने स्तर पर अपने क्षेत्र में कोरोना से लड़ाई में अपना सहयोग पहले की तरह अभी भी कर रहे हैं। लेकिन प्रशासनिक बैठकों से दूरी बना ली है। कांग्रेस के नेताओं का आरोप है कि प्रशासन भाजपा के प्रतिनिधियों को तरजीह दे रहा है। विधायक आलोक चतुर्वेदी का आरोप है कि जिला प्रशासन का रवैया गैरजिम्मेदाराना है। जिला प्रशासन ने किल कोरोना कार्यक्रम का राजनीतिकरण कर दिया है।
टीमकगढ़ सांसद डॉ. वीरेन्द्र कुमार के प्रतिनिधि धीरेन्द्र शिवहरे का कहना है कि कांग्रेस के सभी विधायक जिला आपदा प्रबंधन समिति की बैठक में नहीं आते हैं, इतना ही नहीं उनके प्रतिनिधि तक बैठक में नहीं आते हैं। जिस जनता ने उन्हें चुना, उनकी सुरक्षा के लिए होने वाली अहम बैठक को ही तरजीह नहीं दी जा रही, जनता के प्रति जिम्मेदारी निभाने के लिए कम से कम जिले में क्या होना है, इसके निर्णय लेने वाली प्रबंधन समिति की बैठक में तो सभी को शामिल होना चाहिए।
कोरोना से निपटने के लिए जिले में स्वास्थ्य संसाधन जुटाने, जागरुकता, संक्रमण रोकने के उपाय-संसाधन लोगों तक पहुंचाने में भाजपा-कांग्रेस के जनप्रतिनिधियों ने न केवल अपनी निधि से बल्कि स्वयं की राशि से भी खर्च किया। प्रशासन ने भी शुरु में सबको साथ लेकर रणनीति बनाई और काम किया। जिसका नतीजा भी अच्छा निकला, जिले में 60 पॉजिटिव मिले, जिसमें से 55 स्वस्थ हो चुके हैं। स्थानीय स्तर पर संक्रमण फैल नहीं पाया। लेकिन अब जब कोरोना से जंग में लड़ाई जीतने की ओर है तो जनप्रतिनिध-प्रशासन एकजुट नहीं हैं।