जैन समाज के डॉ. सुमति प्रकाश जैन ने बताया कि मुनिश्री का मंगल विहार कानपुर से छतरपुर की ओर 29 फरवरी को शुरू हुआ था। मुनिश्री के संघ की 14 मार्च को छतरपुर में आगवानी की गई। शोभा यात्रा में सभी पुरुष सफेद कुर्ता पजामा, अलग अलग महिला मंडल अपनी निर्धारित केसरिया, लाल और पीली साड़ी पहने चल रहे थे, जो आकर्षण का केंद्र बने रहे। बैंड पार्टियां भजनों की मधुर प्रस्तुतियां देती चल रहीं थीं। जबलपुर से आए युवाओं के रंगोली दल ने भी अपनी कला से सबका मन मोहित कर दिया। ये रंगोली दल शोभायात्रा के आगे आगे बेहद फुर्ती से अनेक चित्ताकर्षक रंगों से नयनाभिराम रंगोली बनाते चल रहे थे। इस पावन अवसर पर नगर को तोरण द्वारों, झंडियों, गुब्बारों आदि से दुल्हन की तरह सजाया गया ।
पुरानी तहसील परिसर में हुई विशाल धर्मसभा के प्रारंभ में आचार्य विद्यासागर महाराज के चित्र का अनावरण तथा दीप प्रज्ज्वलन विशिष्ट अतिथियों ने किया। इस अवसर पर महाराज सुधा सागर ने अपने मांगलिक प्रवचन में कहा कि साधु आपको कुछ देते नहीं है, पर आपके लिए शगुन बन जाते हैं। फिर शगुन से आपकी सफलता आसान हो जाती है। मुनि ने छतरपुर के जैन समाज की सराहना करते हुए कहा कि आप लोग साधु की आगवानी बहुत अच्छी करते हैं। आपकी अगाध श्रद्धा के कारण आधे घंटे का रास्ता दो घंटे में पूरा हुआ, ये साधु भक्ति की पराकाष्ठा है। मुनि ने कहा कि दर्पण की बजाय अपने भीतर की आत्मा को देखो, पहचानो और उसके कल्याण के लिए इस भव में भी अच्छे कार्य करो। साधु भी न्याय की देवी के समान आंखों में काली पट्टी बांध कर सबसे निष्पक्ष और समान व्यवहार करते हैं।
कार्यक्रम में मुनि के पाद प्रक्षालन का सौभाग्य समाज सेवियों स्वर्गीय बाबू प्रेमचंद जैन के पुत्रों अभय, विजय, कल्लू जैन आदि कुपीवाला परिवार तथा शिखर चंद जैन रमेशचंद जैन अहिंसा परिवार को मिला। कार्यक्रम का संचालन राजेश बडक़ुल ने किया। शाम के समय जैन मंदिर में मुनि ने प्रश्नोत्तरी सभा में सभी श्रद्धालुओं की जिज्ञासा तथा प्रश्नों का समाधान किया।