वर्ष 1956 में हमीरपुर जिले के कहरा गांव में जन्में डॉ. विन्ध्येश्वरी प्रसाद मिश्र की प्रारंभिक परीक्षा पैत्रक गांव छतरपुर जिले के पहरा गांव में हुई। उसके बाद उन्होंने महाराजा कॉलेज से इंटर मीडिएट विज्ञान विषय से किया और फिर संस्कृत के प्रति लगाव और को देखते हुए अचानक संस्कृत साहित्य, हिन्दी साहित्य और दर्शनशास्त्र से स्नातक में प्रवेश लिया। विषय बदलन के बावजूद उन्होंने अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय में स्नातक में टॉप किया। उसके बाद 1977 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से संस्कृत में स्नातकोत्तर करने के बाद श्रीमदभागवत में कृष्ण कथा विषय पर वर्ष 1092 में पीएचडी की।
पढ़ाई पूरी करने के बाद डॉ. मिश्र डेढ वर्ष तक डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय व्याख्याता रहे। उसके बाद 20 वर्षो तक उजजिैन के विक्रम विश्वविद्यालय में संस्कृत विभाग में प्रवक्ता और उपाचार्य के रुपे में अध्यापन व शोध निर्देशन करते रहे। फिर वर्ष 2006 में वे दोबारा बनारस पहुंचे और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्कृत विद्धाधर्म विज्ञान संकाय के अंतगर्तन वैदिक दर्शन विभाग के प्रोफेसर बन गए। डॉ. मिश्र इसी विभाग के अध्यक्ष के रुप में सेवानिवृत्त हुए।
डॉ. मिश्र ने संस्कृत हिन्दी में 16 पुस्तकें लिखीं है। 100 से ज्यादा शोध पत्र प्रकाशित हुए हैं। 35 से अधिक छात्रों ने उनके मार्गदर्शन में पीएचड़ी की। एक ग्रन्थ प्रकाशित हो चुका है, जबकि ङ्क्षचतन चिंतामणि नाम का ग्रंथ प्रकाशित होने जा रहा है। आधा दर्जन राष्ट्रीय व राज्य पुरस्कार विजेता डॉ. मिश्र अब भी साहित्य साधना में निरंतर लगे हुए हैं।