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छतरपुर

जिले के पेट्रोल पंपों पर नहीं है वाहनों के प्रदूषण जांच सुविधा, नतीजा मानक से 7.8 गुना ज्यादा प्रदूषण

परिवहन विभाग ने वर्ष 2015 में नोटिफिकेशन जारी कर पेट्रोल पम्पों पर पीयूसी (प्रदूषण जांच केंद्र) अनिवार्य कर दिया। लेकिन 9 साल गुजर जाने के बाद भी जिले के पेट्रोल पंपों पर पीयूसी सेंटर खुल नहीं पाए हैं।

छतरपुरMay 19, 2024 / 10:53 am

Dharmendra Singh

air pollution

धडल्ले से काला धुआं फेंक रहे वाहन

छतरपुर. बढ़ते प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण सडक़ पर चलने वाले वाहनों से निकलने वाला धुआं है। वाहनों से होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए परिवहन विभाग ने वर्ष 2015 में नोटिफिकेशन जारी कर पेट्रोल पम्पों पर पीयूसी (प्रदूषण जांच केंद्र) अनिवार्य कर दिया। लेकिन 9 साल गुजर जाने के बाद भी जिले के पेट्रोल पंपों पर पीयूसी सेंटर खुल नहीं पाए हैं। आपूर्ति विभाग ने जिले के सभी पेट्रोल पंप संचालकों को पीयूसी खोलने को लेकर नोटिस जारी किया था, जिसके बाद 33 पेट्रोल पंपों के संचालकों ने लाइसेंस के लिए आवेदन दिया । लेकिन अभी तक जिले में किसी भी पेट्रोल पंप पर वाहनों की प्रदूषण चेकिंग का सिस्टम लगाया नहीं जा सका है। हालांकि जिले भर में पेट्रोलपंप के अलावा निजी सेक्टर में 9 प्रदूषण जांच केन्द्र संचालित है।

मानक से 7.8 गुना अधिक वायु प्रदूषण


शहर की हवा में प्रदूषण की मात्रा पीएम2.5 कणों की मौजदगी से नापी जाती है। आइक्यू एयर के आंकड़ों के मुताबिक छतरपुर शहर में पीएम2.5 विश्व स्वास्थ्य संगठन की वायु गुणवत्ता निर्देशिका के मान से 7.8 गुणा अधिक है। जो कि स्वास्थ के लिए हानिकारक है। पीएम2.5 ज्यादा होने से सबसे तात्कालिक लक्षणों में आंख, नाक और गले में जलन, खांसी, छींक आना और सांस लेने में तकलीफ शामिल हैं। जो लोग ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जहां पीएम2.5 का स्तर काफी अधिक है, उनके स्वास्थ्य को स्थाई नुकसान हो सकता है। बार-बार ज्यादा पीएम2.5 वायु के संपर्क में आने पर अस्थमा, पुरानी ऊपरी श्वसन संबंधी बीमारियां होती हैं।

नहीं होती जांच


प्रदूषण जांच न होने से यह समस्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है। जहां देखो वहीं वाहनों से काला धुआं निकलता रहता है। ऑटो, मालवाहक, ट्रक हों या बसें, इतना काला धुआं उड़ाते हैं कि सडक़ों पर चलने वाले दोपहिया वाहन चालकों को सांस लेना भी दुश्वार हो जाता है। शहर से ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी तादाद में जाने वाले वाहन प्रदूषण फैलाने में अव्वल हैं। हैरानी तो यह है कि इसका किसी भी महकमे पर कोई असर नहीं पड़ता है। शहर में लोकल ट्रांसपोर्ट सर्विस की कमी के कारण लोग अधिकतर ऑटो का सहारा लेते हैं। लेकिन ऑटो से निकलते धुएं पर कोई ध्यान नहीं देते। जिसके कारण वह प्रदूषण फैलाने के बाद भी वाहनों को चलाते रहते हैं।

सर्टिफिकेट नहीं होने पर दिल्ली में चालान


छतरपुर में प्रदूषण जांच केन्द्र नहीं होने से शहर व जिले के वाहनों का प्रदूषण सर्टिफिकेट नहीं होता है। ऐसे में जिले के वाहन जब दिल्ली, भोपाल, ग्वालियर, कानपुर, लखनऊ, जयपुर शहर जाते हैं, तो प्रदूषण जांच सर्टिफिकेट न होने से वाहनों के चालान हो जाते हैं। प्रदूषण सर्टिफिकेट नहीं होने से पहले 500 रुपए जुर्माना वसूला जाता है। सेंट्रल मोटर व्हीकल रूल्स 1989 के तहत भारत सरकार ने अंडर पॉल्यूशन कंट्रोल सर्टिफिकेट सभी वाहनों के लिए अनिवार्य किया हुआ है। राजाबाबू बुंदेला हाल ही में दिल्ली गए तो उन्हें प्रदूषण सर्टिफिकेट नहीं होने पर 500 रुपए का जुर्माना भरना पड़ा। इस दौरान उन्हें 20 मिनट तक अपनी यात्रा रोकना पड़ी। वहीं, चालान से बचने के लिए गोपाला श्रीवास्तव को मनाली जाने से पहले झांसी में प्रदूषण जांच कराकर सर्टिफिकेट लेना पड़ा।

हर छह माह में जांच जरुरी


वाहनों के प्रदूषण पर लगाम न लगने से दमा, चर्मरोग और खांसी के मरीजों की संख्या में भी दिनों दिन इजाफा होता जा रहा है। ऐसा तब है जबकि मोटर व्हैकिल एक्ट की धारा 115(2) के अनुसार हर छह महीने पर प्रदूषण जांच कराना अनिवार्य है। वाहनों के प्रदूषण जांच नहीं कराने पर एक हजार रुपए जुर्माना का प्रावधान भी एक्ट में किया गया है। लेकिन जिले में प्रदूषण जांच केन्द्र नहीं होने से प्रदूषण नियंत्रण की सारी कवायद बेमानी साबित हो रही है।

फैक्ट फाइल


जिले में पेट्रोल पंप- 70
भारत पेट्रोलियम- 07
हिन्दुस्तान पेट्रोलियम-15
इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन- 35
अन्य-13

फैक्ट फाइल


जिले के वाहनों की संख्या(लगभग)
बस-650
ट्रक-2000
कार-2 लाख
बाइक-20हजार
टैक्टर-18हजार
टैक्सी-2700

इनका कहना है


प्रदूषण जांच केन्द्र के लिए खाद्य विभाग को पत्र लिखकर पेट्रोलपंप संचालकों से आवेदन कराए गए थे। मैं दिखवाता हूं, इस मामले का फॉलोअप लेकर कार्यवाही की जाएगी।
विक्रमजीत सिंह कंग, आरटीओ

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