इस मानसिकता में कई दोष हैं। सबसे पहले तो बच्चों से उनका बचपन छिन जाता है। माता- पिता का तनाव बच्चों को हस्तांतरित हो जाता है। सभी बच्चों को परीक्षा में अच्छा करने का दबाव रहता है। जबकि सत्य यह है कि पढाई जीवन का मात्र एक आयाम। स्वस्थ शरीर, व्यायाम, खेल- कूद, सामजिक वार्तालाप, घुलना – मिलना, बात करना, रचनात्मकता, मनोरंजन और जीवन जीने का आनंद- ये सभी जीवन के महतवपूर्ण आयाम हैं। हमारे बच्चे परिवार का सुरक्षा कवच महसूस नहीं कर पाते हैं। उनके ऊपर लगातार दबाव बनाया जाता कि वे परीक्षा में सर्वोत्तम अंक प्राप्त करें। यदि बच्चा बहुत अच्छा गाता है अथवा बहुत अच्छा खेलता है तो उसे उतनी प्रसंशा नहीं मिलती है जितनी अच्छी अंक लाने पर मिलती है। इस प्रकार हमारे समाज ने इस पदानुक्रम का निर्माण कर दिया है, जहां पर परीक्षा के अंक सबसे ऊपर हैं और अन्य सभी गतिविधियां उसके नीचे हैं। ऐसा करना स्पष्ट रूप से अनुचित है। माता-पिता का ये रवैया व्यक्तित्व से सर्वागीण विकास में बाधक है। हमारे बच्चों को स्वतंत्र और उन्मुक्त वातावरण मिलना चाहिए ।
समाज की इस अवधारणा में एक दोष यह भी है कि खेती जैसे महतवपूर्ण व्यवसाय को नीचे पायदान पर रख दिया गया है। मनुष्य सदियों से खेती करता आ रहा है, भोजन सभी के लिए आवश्यक है। कीटनाशक रहित अच्छा अनाज हर मनुष्य की आवश्यकता है, साग-सब्जी और फल जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं हैं । फिर भी औपचारिक रूप से डिग्री न प्राप्त करने की अवस्था में किसान को नीचे पायदान पर रख दिया जाता है। ठीक इसी प्रकार लकड़ी, लोहा, बिजली, सफाई, कपड़े बुनाई, रंगाई इत्यादि जैसे महतवपूर्ण व्यवसायों को नीचे पायदान पर रख दिया जाता है। ये रुझान समाज के लिए हानिकारक हैं।
एक स्वस्थ परिद्रश्य में माता-पिता को अपने बच्चों को स्वतंत्र रूप से विकसित होने देना चाहिए। परीक्षा को जीवन मरण का प्रश्न नहीं बनाना चाहिए। चंद घंटों की लिखित परीक्षा से किसी के व्यक्तित्व का पूर्ण आंकलन नहीं होता है। जीवन में प्रसन्न रहने के लिए और एक सार्थक जीवन जीने के लिए परीक्षा ही एक उपाय नहीं है । जब हम इस बात को आत्मसात कर लेंगे तो परीक्षा देना हमारे बच्चों के लिए आसान हो जाएगा। परीक्षा को एक सामान्य गतिविधि मानना चाहिए।
इस भूमिका के साथ अब मैं परीक्षा सही प्रकार से देने के उपायों के ऊपर आती हूं। सबसे पहली बात यह है कि पढाई हमारे जीवन का नियमित हिस्सा होना चाहिए। एक या दो घंटे हमें लगातार प्रतिदिन अध्ययन को देना चाहिए। ऐसा करने पर परीक्षा के समय अतिरिक्त दबाव नहीं रहेगा। जैसे कि हम रोजाना खाते पीते हैं, सोते हैं, वैसे ही पुस्तक उठाकर एक या दो घंटे पढ़ लेना चाहिए। पढाई की सही विधि नोट्स बनाने में है। यदि हम पढऩे के साथ-साथ थोड़ा लिखते भी जाएं तो बात हमें लम्बे समय तक याद रहती है । पढाई का पहला 15 मिनिट हमें दोहराने पर देना चाहिए जो हमने विगत दिनों में पढ़ा है, उसे एक बार दोहरा लेना चाहिए। पढ़ाई को मानसिक रूप से कल्पना में भी लेना चाहिए। जैसे कि यदि हम किसी नदी के बारे में पढ़ रहे हैं तो अपने मानसिक पटल पर नदी के बहाव की कल्पना करना चाहिए। जब हम पढ़ाई में अच्छा करते है तो हमें खुद को शाबाशी भी देना चाहिए। हमें स्वयं को ये बताना चाहिए कि हमारे मजबूत बिंदु कौन से हैं। सभी विषयों की कॉपी अलग-अलग रूप से व्यवस्थित होनी चाहिए। पढ़ाई का आनंद लेना चाहिए । बीच-बीच में खेलना, संगीत सुनना, गुनगुनाना और अच्छा भोजन करना बहुत लाभकारी होता है। पढऩे का ये मतलब नहीं है कि हम एक शारीरिक मुद्रा में घंटों बैठे रहें। व्यायाम करते रहना चाहिए, अच्छी नींद लेना चाहिए, स्वयं की तुलना दूसरों से नहीं करना चाहिए। हर व्यक्ति अपने आप में अनोखा है। हमें ये याद रखना चाहिए। पौष्टिक आहार लेना पढाई के लिए सबसे अधिक आवश्यक है। इस प्रकार हम माता-पिता, परिवार और समाज के सही द्रष्टिकोण से परीक्षा को उत्सव के रूप में बदल सकते हैं। ऐसा संभव है कि हमारे विद्यार्थी परीक्षा कक्ष में जाते समय स्वस्थ, स्वतंत्र और प्रसन्नचित्त रहें। हमें इस ओर काम करना चाहिए।