परिवार की खुशियां धूमिल
महोबा जिले के श्रीगर के पास डिगरिया गांव की सुषमा यादव के परिवार के लिए तब खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब उन्हें सोनोग्राफी में जुड़वा बच्चे कोख में होने की जानकारी मिली। वे बच्चों के लिए हर दिन नए सपने देख रही थीं। लेकिन प्रसव की तय तिथि से 2 महीने पहले ही 10 जून को उनका सपना बिखरने लगा। प्रसव पीड़ा होने पर परिजन मिशन अस्पताल लाए जहां दो बच्चों का जन्म हुआ। लेकिन प्री मैच्योर डिलीवरी के चलते दोनों का वजन अत्यधिक कम था। कुछ ही समय बाद नर शिशु की मौत से परिवार सदमे में डूब गया। उम्मीद बच्ची को लेकर भी नहीं थी, फिर भी जिला अस्पताल ले आए और 800 ग्राम की यह बच्ची 45 दिन में सामान्य बच्चों के वजन के बराबर पहुंच गई है।
महोबा जिले के श्रीगर के पास डिगरिया गांव की सुषमा यादव के परिवार के लिए तब खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब उन्हें सोनोग्राफी में जुड़वा बच्चे कोख में होने की जानकारी मिली। वे बच्चों के लिए हर दिन नए सपने देख रही थीं। लेकिन प्रसव की तय तिथि से 2 महीने पहले ही 10 जून को उनका सपना बिखरने लगा। प्रसव पीड़ा होने पर परिजन मिशन अस्पताल लाए जहां दो बच्चों का जन्म हुआ। लेकिन प्री मैच्योर डिलीवरी के चलते दोनों का वजन अत्यधिक कम था। कुछ ही समय बाद नर शिशु की मौत से परिवार सदमे में डूब गया। उम्मीद बच्ची को लेकर भी नहीं थी, फिर भी जिला अस्पताल ले आए और 800 ग्राम की यह बच्ची 45 दिन में सामान्य बच्चों के वजन के बराबर पहुंच गई है।
डॉक्टर बोले- हमारे लिए यह चैलेंज था
डॉ. ऋषि द्विवेदी बताते हैं कि सामान्य बच्चों का वजन दो किलो 500 ग्राम होता है। लेकिन 800 ग्राम की यह बच्ची हम सबके लिए चुनौती थी, जिस पर सभी ने काम करने का मन बनाया। कितनी भी मेहनत हो जाए, लेकिन बच्चा स्वस्थ हो जाता है, तो हमें आत्म संतुष्टि मिलती है। बच्ची की जान बचाने में जिला अस्पताल के डॉ. श्वेता चौरसिया,. डॉ. एनके बरुआ, डॉ. सुदीप जैन की विशेष भूमिका रही। इनके साथ ही एसएनसीयू वार्ड की स्टाफ नर्स संगीता, रामरति, रजनी, भाग्यश्री, प्रतिक्षा, रुचि, प्रिया, पूजा साहू, रमा,ममता, पूजा, नीतू, रानी और प्रियंका ने बच्ची की जान बचाने के लिए 24 घंटे मेहनत की। वहीं, चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी सर्वेश, सुखदीन, उर्मिला, सायरा व राजकुमारी की सेवा से एसएनसीयू से बच्ची स्वस्थ होकर डिस्चार्ज हुई है।
डॉ. ऋषि द्विवेदी बताते हैं कि सामान्य बच्चों का वजन दो किलो 500 ग्राम होता है। लेकिन 800 ग्राम की यह बच्ची हम सबके लिए चुनौती थी, जिस पर सभी ने काम करने का मन बनाया। कितनी भी मेहनत हो जाए, लेकिन बच्चा स्वस्थ हो जाता है, तो हमें आत्म संतुष्टि मिलती है। बच्ची की जान बचाने में जिला अस्पताल के डॉ. श्वेता चौरसिया,. डॉ. एनके बरुआ, डॉ. सुदीप जैन की विशेष भूमिका रही। इनके साथ ही एसएनसीयू वार्ड की स्टाफ नर्स संगीता, रामरति, रजनी, भाग्यश्री, प्रतिक्षा, रुचि, प्रिया, पूजा साहू, रमा,ममता, पूजा, नीतू, रानी और प्रियंका ने बच्ची की जान बचाने के लिए 24 घंटे मेहनत की। वहीं, चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी सर्वेश, सुखदीन, उर्मिला, सायरा व राजकुमारी की सेवा से एसएनसीयू से बच्ची स्वस्थ होकर डिस्चार्ज हुई है।