scriptमहज 800 ग्राम वजन, फेफड़े नहीं कर रहे थे काम, थैरेपी से 45 दिन में जीती जिंदगी की जंग | Weight only 800 grams, lungs were not working, battle of life was won | Patrika News
छतरपुर

महज 800 ग्राम वजन, फेफड़े नहीं कर रहे थे काम, थैरेपी से 45 दिन में जीती जिंदगी की जंग

प्रि मैच्योर डिलीवरी के चलते खतरे में थी जानइतने कम वजन में जीवित रहने का रेयर ऑफ रेयरेस्ट केस

छतरपुरJul 28, 2021 / 10:00 pm

Dharmendra Singh

डॉक्टरों की मेहनत रंग लाई

डॉक्टरों की मेहनत रंग लाई

छतरपुर. समय पूर्व प्रसव और जुड़वा होने के कारण बच्ची का वजन इतना था कि हथेली में आराम से संभल जाए। सांस तो दूर फेफड़े खुल तक नहीं रहे थे। सामान्य बच्चों से आधा भी वजन नहीं होने के बाद भी एसएनसीयू में भर्ती यह बच्ची डॉक्टरों की अथक मेहनत और थैरेपी से महज 45 दिन में जिंदगी की जंग जीत गई। अब वह स्वस्थ है और मां के साथ घर लौट चुकी है।
महज 800 ग्राम वजन की इस बच्ची का जीवित रहना किसी चमत्कार से कम नहीं है। हालांकि आगे का जीवन अभी उसके लिए कठिन है। क्योंकि प्रतिरोधक क्षमता विकसित होने में अभी और समय लगेगा। जिला अस्पताल के एसएनसीयू चिकित्सक डॉ ऋषि द्विवेदी ने बताया कि इस बच्ची का जन्म 10 जून को हुआ था। तभी से वह गंभीर स्थिति में थी। प्री-मैच्योर व अंडर वेट होने के कारण सेहत पहले दिन से ही बिगड़ती जा रही थी। डॉक्टर ने बच्ची को शिशु रोग गहन चिकित्सा इकाई में रखा और शुरुआत के 12 से 15 घंटे तक बच्ची सेहत की सघन निगरानी करने के बाद उसे सरफेक्टेन्ट थैरेपी दी गई। इस थैरपी के जरिए बच्ची के लंग्स में सरफेक्टेन्ट नामक लिक्विड देकर लंग्स को डैमेज होने से बचाया जाता है। प्री मैच्योर होने के कारण बच्चों के लंग्स कमजोर होने से रिकवरी के अवसर कम होते हैं। ऐसे में बच्ची की जान बचाने के लिए लगातार दवाइंयों के साथ-साथ उसे स्टाफ ने विशेष केयर की। बच्चे की खुराक के लिए भी विशेष इंतजाम किए गए। डॉक्टर व नर्सो की विशेष केयर के चलते 45 दिन बाद अब बच्चे का वजन 1.5 किलो के आसपास हो चुका है और वह पूर्णत: स्वस्थ है।
परिवार की खुशियां धूमिल
महोबा जिले के श्रीगर के पास डिगरिया गांव की सुषमा यादव के परिवार के लिए तब खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब उन्हें सोनोग्राफी में जुड़वा बच्चे कोख में होने की जानकारी मिली। वे बच्चों के लिए हर दिन नए सपने देख रही थीं। लेकिन प्रसव की तय तिथि से 2 महीने पहले ही 10 जून को उनका सपना बिखरने लगा। प्रसव पीड़ा होने पर परिजन मिशन अस्पताल लाए जहां दो बच्चों का जन्म हुआ। लेकिन प्री मैच्योर डिलीवरी के चलते दोनों का वजन अत्यधिक कम था। कुछ ही समय बाद नर शिशु की मौत से परिवार सदमे में डूब गया। उम्मीद बच्ची को लेकर भी नहीं थी, फिर भी जिला अस्पताल ले आए और 800 ग्राम की यह बच्ची 45 दिन में सामान्य बच्चों के वजन के बराबर पहुंच गई है।
डॉक्टर बोले- हमारे लिए यह चैलेंज था
डॉ. ऋषि द्विवेदी बताते हैं कि सामान्य बच्चों का वजन दो किलो 500 ग्राम होता है। लेकिन 800 ग्राम की यह बच्ची हम सबके लिए चुनौती थी, जिस पर सभी ने काम करने का मन बनाया। कितनी भी मेहनत हो जाए, लेकिन बच्चा स्वस्थ हो जाता है, तो हमें आत्म संतुष्टि मिलती है। बच्ची की जान बचाने में जिला अस्पताल के डॉ. श्वेता चौरसिया,. डॉ. एनके बरुआ, डॉ. सुदीप जैन की विशेष भूमिका रही। इनके साथ ही एसएनसीयू वार्ड की स्टाफ नर्स संगीता, रामरति, रजनी, भाग्यश्री, प्रतिक्षा, रुचि, प्रिया, पूजा साहू, रमा,ममता, पूजा, नीतू, रानी और प्रियंका ने बच्ची की जान बचाने के लिए 24 घंटे मेहनत की। वहीं, चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी सर्वेश, सुखदीन, उर्मिला, सायरा व राजकुमारी की सेवा से एसएनसीयू से बच्ची स्वस्थ होकर डिस्चार्ज हुई है।
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