पीडि़त धुर्वे ने बताया कि छिंदवाड़ा पहुंचने के लिए वह सुबह पंाच बजे अपने घर से बिना कुछ खाए पैदल निकला तथा घंटों की पैदल यात्रा कर जुन्नारदेव रेलवे स्टेशन पहुंचा। वहां से उसने टे्रन पकड़ी। राशन कार्ड नहीं होने से उसे शासकीय उचित मूल्य की दुकान से राशन नहीं मिल पाता है और न ही उसके पास रहने के लिए अपना कोई मकान है। पत्रिका से अपनी समस्या बताते-बताते विजय की आंखें छलक पड़ीं। उसने बताया कि गांव में रोजगार नहीं मिलने पर वह पत्नी और डेढ़ वर्ष के बच्चे को छोडकऱ अन्यत्र बड़े शहरों में मजदूरी करने जाता है।
सम्बल योजना में भी पंजीयन
मध्यप्रदेश असंगठित शहरी एवं ग्रामीण कर्मकार कल्याण मंडल अंतर्गत मुख्यमंत्री की सम्बल योजना में पीडि़त विजय धुर्वे के नाम का दर्ज है, इसके बाद भी उसे स्थानीय स्तर पर संचालित शासकीय उचित मूल्य की दुकान से पिछले पांच साल से राशन नहीं दिया जा रहा है। बड़ी मुश्किल से वह अपने परिवार का भरण-पोषण कर पाता है।
शासन की कोई भी सुविधा अथवा योजना का लाभ उसे नहीं मिला है। उल्लेखनीय है कि आदिवासियों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए हर साल करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर योजनाओं का लाभ हितग्राहियों को नहीं मिल पाता है। इसकी जिम्मेदारी भी तय करने वाला कोई नहीं है।