script5 हजार 800 किलो प्याज को फेका कचरे में  | 5 thousand 800 kg of onions drown in the garbage | Patrika News
छिंदवाड़ा

5 हजार 800 किलो प्याज को फेका कचरे में 

नगर पालिक निगम ने नान के अनुरोध पर दो दिन में कचरा घर में फेके सड़े प्याज। यह प्याज सरकार ने आठ रुपए किलो की कीमत पर किसानों से खरीदी थी। 

छिंदवाड़ाJul 22, 2017 / 12:26 pm

sandeep chawrey

Deteriorating onion preparing to be buried

Deteriorating onion preparing to be buried

छिंदवाड़ा . प्रदेश के दूसरे जिलों से छिंदवाड़ा में बेचने के लिए भेजी गई प्याज में से सड़ चुकी 58 टन यानि पांच हजार 800 किलो प्याज को अब नगर निगम ‘ठिकानेÓ लगा रही है। निगम का अमला पूरी तरह बेकार हो चुकी प्याज को टै्रक्टरों में भरकर कचराघर में डाल रहा है। बीते बीस दिनों में सिवनी रोड स्थित एक गोदाम में रखी यह प्याज अब किसी काम की नहीं रह गई थी। नागरिक आपूर्ति निगम के अधिकारियों ने इस सम्बंध में नगर निगम को एक पत्र लिखकर खराब हो चुकी प्याज को नष्ट करने की व्यवस्था के लिए पत्र लिखा था। 
गौरतलब है कि प्याज उत्पादक किसानों के आंदोलन के बाद प्रदेश सरकार ने किसानों की प्याज खरीदकर उसे दूसरे जिलों में भेजा था। छिंदवाड़ा में शाजापुर और उज्जैन से ट्रक और रेलवे की रैक में यह प्याज आई थी। उसमें से 58 टन प्याज बची हुई है। पहले से ही गीली प्याज बारिश के मौसम में और खराब हो गई। अब हाल ये है कि उसे अब कचरे में फेंकना पड़़ रहा है।
8 रुपए किलो खरीदी थी प्याज
सरकार ने प्याज उत्पादक किसानो से 8 रुपए किलो के हिसाब से प्याज खरीदी थीं। उसकी भराई परिवहन और अन्य खर्च मिलाकर एक किलो प्याज सरकार को 13 रुपए किलो पड़ी थी। सरकार से अधिकतम 4 रुपए किलो पर व्यापारियो ंने इसे खरीदी। जो नहीं बिकी उसे 2 रुपए किलो ंमे लोगों केा राशन से बेच दिया गया। इसमें सरकार को 8 से 11 रुपए का घाटा उठाना पड़ा । 
उत्पादकों को हुआ नुकसान
इधर बाहर से प्याज आने के कारण लोकल प्याज के भाव उतर गए। हाल ये हुआ कि यहां के किसानों का जो प्याज पहले सात से आठ रुपए किलो बिक रहा था वह चार रुपए किलो पर बाजार में व्यापारी मांगने लगे। कम दामों के कारण ये किसान अपना प्याज बेच ही नहीं सके। बाद में इस मामले में अखबारों में समाचार प्रकाशित होने और जिले में और प्याज की जरूरत न होने की बात अधिकारियों ने भी कही। इसके बाद प्याज भेजना यहां बंद कर दिया गया, लेकिन इस दौरान स्थानीय उत्पादकों को भारी नुकसान उठाना पड़ा। 
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