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छिंदवाड़ा

पातालकोट में सदियों पुराने शैलचित्र..जानिए क्या बताते हैं ये

अम्बेडकर यूनिवर्सिटी महू की शोधार्थी छात्रा ने हारमऊ के पास पहाड़ पर खोजा

छिंदवाड़ाApr 12, 2019 / 11:17 am

manohar soni

chhindwara

पातालकोट में सदियों पुराने शैलचित्र..जानिए क्या बताते हैं ये

छिंदवाड़ा.पातालकोट की वादियों में हजारों साल पुराने जीवाश्म मिलने के बाद एक और खोज ने वैज्ञानिकों औरशोधार्थियों की जिज्ञासा बढ़ा दी है। डॉ.बीआर अंबेडकर यूनिवर्सिटी महू की शोधार्थी छात्रा प्रज्ञा बोध ने अपनी टीम के साथ ग्राम हारमऊ की दुर्गम पहाड़ी में ऐसे शैलचित्र ढूंढ निकाले हैं,जिनसे एतेहासिक काल में आदिवासियों की संस्कृति और कला का पता चलता है। इसके समयकाल की पहेली को सुलझाने जल्द ही उच्च स्तरीय अध्ययन होगा।
तामिया मुख्यालय से 20 किमी दूर गैलडुब्बा से पैदल इस पहाड़ी तक जाने का रास्ता शुरू होता है। पथरीली जमीन और उबड़-खाबड़ पगडण्डी पर करीब साढ़े तीन किमी चलने के बाद इस स्थल पर पहुंचा जा सकता है। इस पहाड़ी पर घोड़ा-घोड़ी और सवार के शैलचित्र अंकित है। इस पहाड़ी पर पहुंची छात्रा ने शैलचित्र का बारीकी से अध्ययन किया। छात्रा ने स्थानीय 50 साल के भैयालाल भारती से पूछताछ की तो उसने स्वीकार किया कि उसके अलावा दादा-परदादा ने भी इस शैलचित्र का जिक्र अपने समय में किया था। जनश्रुति के मुताबिक यह डेढ़ से दो सौ साल पुराना हो सकता है। भारती यह भी कहते हैं कि अक्सर वनोपज संग्रहण के दौरान इस पहाड़ी पर आना होता हैं। नजर पडऩे पर ये शैलचित्र दिखते हैं। पुरातात्विक दृष्टि से यह इतने महत्वपूर्ण होंगे,उसे इसका अंदाजा नहीं था।
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ये शैलचित्र एक खोज,सुलझाएंगे पहेली
फिलहाल छात्रा ने अपने अध्ययन के लिए फोटोग्राफ लिए। उसका कहना है कि ऑर्कोलॉजी सर्वे ऑफ इंडिया बुक में तामिया के पास ग्वालगढ़ के पहाड़ों के शैलचित्र का जिक्र है लेकिन हारमऊ के नजदीक इस पहाड़ी के शैलचित्र उनकी खोज है। इस इलाके में और भी चित्र हो सकते हैं। यह शोधार्थी छात्र और वैज्ञानिकों के लिए समय की पहेली है। इसे सुलझाने के प्रयास किए जाएंगे। इससे एतेहासिक काल में आदिवासी संस्कृति और कला प्रदर्शित होती है।
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ट्राइब्स केप की मदद से पहुंची छात्रा
इस छात्रा को पहाड़ी तक पहुंचाने में ट्राइब्स केप के डायरेक्टर पवन श्रीवास्तव ने मदद की। श्रीवास्तव ने स्थानीय स्तर के पांच लोगों का ग्रुप बनाकर छात्रा को पैदल पहाड़ी क्षेत्र में भ्रमण कराया। तब जाकर यह शैलचित्र खोजे जा सकें। श्रीवास्तव के अनुसार यह स्थल पातालकोट की सबसे ऊंची चोटी तिखलिया पहाड़ के नजदीक है। इसे छिंदवाड़ा जिले की सबसे ऊंची चोटी भी कहा जा सकता है। उन्होंने बताया कि वे पातालकोट में एजुकेशन ट्रेवलिंग को बढ़ावा देने प्रयासरत है। इससे पातालकोट के रहस्य खुलेंगे और शोधार्थी छात्र व वैज्ञानिक आकर्षित होंगे। ये छात्रा प्रज्ञा लखनऊ विवि की गोल्ड मैडलिस्ट रही है।

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